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कैसे कहूँ मेरा देश आज भी महान हैं,
जब उसमें पल रहे ऐसे शैतान हैं
,जो हिन्दुस्तान का खाते हैं,यहाँ मौज मस्ती की जिन्दगी व्यतीत करते हैं,लेकिन हमारे देश भक्तों का अपमान करते हैं,आतंकवादियों का जय जय कार करते हुए पाकिस्तान का झंडा लहराते हैं,देश विरोधी नारे लगाते हैं.
आश्चर्य उन राजनैतिक दलों पर ,उनके सिपहसालारों पर जो देशद्रोहियों के मरने पर शोक मनाते हैं,देश की सम्पत्ति को क्षति पहुंचाते हैं,परन्तु ऐसी घटनाओं पर उनके होंठ सिल जाते हैं,चूं भी नही करते ,शायद गुप्त रूप से उत्सव मनाते हैं ,ऐसी देशद्रोही कार्यवाही पर .
किसी भी आतंकवादी को समर्थन देने को तत्पर रहना,उनके समर्थन में खड़े हो जाना ,निरंतर मीडिया पर हल्ला मचाना,विदेशों में जाकर उनके समर्थन में बयानबाजी करना आखिर किस महानता का परिचायक है ?
जवाहर लाल नेहरु विश्वविध्यालय में घटित घटना क्रम सरासर देश द्रोह का परिचायक है,जहाँ एक आतंकवादी को शहीद घोषित करते हुए विशिष्ठ आयोजन हुआ,काश्मीर की स्वाधीनता के नारे लगे ,भारत की बर्बादी के और साथ ही मुर्दाबाद के भी .
इशरत जहाँ जिसको मीडिया ने तथा विभिन्न राजनैतिक दलों ने भोली भाली देवी बताते हुए आसमान सर पर उठा रखा था ,अबसत्य सामने आने पर क्योँ मौन धारण कर लिया .?
पहली बार ऐसा नही हो रहा है,इससे पूर्व भी जब भी कोई आतंकी पकड़ा जाता है ,या आतंकवादी घटना होती है तो हमारे देश में ऐसे आस्तीन के सर्पों की कमी नही जो उनका विरोध या तो करते नही या दबे शब्दों में करते हैं .चाहे वह काश्मीर में बड़ी बड़ी आतंकवादी घटनाएँ हों ,,मुम्बई का आतंकी हमला,हेमंत करकरे जैसे शहीद की शहादत ,कसाब ,,अफज़ल गुरु जैसे दुर्दांत को फांसी..
इसके लिए मेरे विचार से मीडिया का नकारातमक दृष्टिकोण उत्तरदायी है ,क्यूंकि वो सदा ऐसे लोगों को महिमा मंडित करता है.साथ ही उस समय सत्ता से बाहर राजनैतिक दल जिनके लिए उन लोगों का समर्थन ही मुख्य एजेंडा होता है .
सत्ता धारी दल या सरकार से सबसे अधिक आक्रोश ऐसे लोगों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान क्योँ नही बनाया जाता जो देश द्रोही हैं,और ये भूल जाते हैं ,उनका ये आतंकवाद या देश के शत्रुओं को समर्थन देना ही देश को विनाश के कगार पर ले जा रहा है.राजनीति का अर्थ देश का अहित तो नही होता ,क्या ऐसी गतिविधियों से आतंकवाद को प्रोत्साहन नही मिलता
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