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दीपोत्सव आप सभी के जीवन में ,निराशा का तिमिर दूर करे आशाओं का संचार कर सबके जीवन को जगमग कर दे. इस शुभ अवसर पर कविवर गोपाल दास नीरज की ये रचना जो मुझको बहुत प्रिय है,आप सबके साथ ……………………..
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
नयी ज्योति के धर नये पंख झिलमिल,
उडे मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झडी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
उषा जा न पाये, निशा आ ना पाये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
स्रजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूं ही,
भले ही दिवाली यहां रोज आये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अंधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अंधरे घिरे अब,
स्वय धर मनुज दीप का रूप आये |
जलाओ दिये पर रहे ध्यान इतना
अन्धेरा धरा पर कहीं रह न जाये |
(दीप पर्व पर आप सबके समक्ष एक स्वरचित रचना प्रस्तुत करना चाह रही थी,परन्तु मंच पर एक से बढ़कर एक कवियों की रचनाओं के समक्ष अपनी बेचारी रचना को प्रस्तुत करने का साहस नहीं हुआ अतः देश की वर्तमान परिस्थितियों में नीरज जी की ये सामयिक रचना.)
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