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बचपन में एक कहानी पढी थी “हार की जीत” कहानी के प्रमुख पात्र बाबा भारती नामक एक संत थे जिनके पास एक बलिष्ट,तीव्रगामी अश्व था जिसको वे बहुत प्रेम करते थे.एक डाकू की नज़र उस घोड़े पर थी अनेक प्रयास करने पर भी वह संत से घोडा नहीं ले सका.उसने बाबा को चेतावनी दी कि घोडा उनके पास नहीं रहने देगा.एक दी प्रात बाबा घोड़े पर सवार घूमने जा रहे थे,एक घायल,अपंग भिखारी कि पुकार सुन रुके .भिखारी ने याचना की कि बाबा उसको उसके गंतव्य तक पहुंचा दें.दयालु संत ने उसको घोड़े पर बैठाया तथा स्वयं रास पकड़ चलने लगे, अचानक ही भिखारी ने एक झटके से रस्सी छुड़ाई तथा घोडा ले भागा बाबा दुखी तो बहुत हुए परन्तु उन्होंने डाकू को पुकार कहा “घोडा ले जाओ पर ये घटना किसी को बताना नहीं,अन्यथा लोग जरूरतमंदों पर विश्वास करना छोड़ देंगें”.डाकू का हृदय परिवर्तन हुआ,अंतत वह रात को उनका घोडा अस्तबल में बंधकर चला गया.
इस कहानी के माध्यम से मेरा उद्देश्य प्रबुद्ध जनों का ध्यान देश कि एक समस्या भिक्षावृत्तिकी ओर आकृष्ट करना है. आज ऐसे डाकुओं का कोई अंत नहीं है.आप किसी धर्मस्थल पर जाएँ,भीड़ वाले चोराहे पर हो,नया नए रूप में मांगते लोग दीखते हैं.धर्मस्थलों पर तो कोई अंत ही नहीं दिखाई देता.नित नए तरीके ढूंढ ,घरों में भीख मांगने वालों और अवसर मिलते ही लूटमार की घटनाएँ प्राय सुनने को मिलती हैं. कभी बीमारी के नाम पर ,कभी भूकंप या अन्य प्राकृतिक आपदाओं का शिकार होने के नाम पर,कभी धर्म का नाम लेकर मांगने वालों की सीमा नहीं.सर्दी में ठिठुरते पूरे परिवार के साथ याचना करते भिखारी को आप यथाशक्ति दें और जरा सा आगे चलते ही वह उसी रूप में पुनः मांगने लगे तो विश्वास तो उठेगा ही .आखिर किस पर विश्वास किया जाये?
वास्तविकता तो ये है कि भिक्षावृत्ति एक व्यवसाय बन चुका है.इसकी आड़ में समाजविरोधी कार्य होते हैं.बच्चों को चुराकर अपंग बना कर भीख मंगवाना इस व्यवसाय का एक अंग है.भीख मांगने के अतिरिक्त गलत से गलत काम कराना चाहे वो नशे का सामान का व्यापार हो या तस्करी.सरकार किस प्रकार इस समस्या का अंत कर सकती है ये तो चिंतन का विषय है ही स्वयं भी सावधान रहना आवश्यक है.
मेरे कहने का अभिप्राय ये नहीं कि हम संवेदनहीन हो किसी की सहायता न करें. परन्तु इस समस्या से मुक्ति पाना है तो सोचविचार ही काम करना होगाजिससे .सहायता का दुरूपयोग न हो सके.तथा अपराध को भी रोका जा सके.
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