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लालकिले से बलूचिस्तान दिखता है !

हैरत
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“भारत का युवा तैश में बलूचिस्तान और कश्मीर पर सेना का पराक्रम देखना चाहता है वहीं पाकिस्तान चीन के साथ कूटनीतिक बाजी खेलने की जुगत में है”

वैसे तो हमारा मुल्क अक्सर पाकिस्तानी साजिशों से परेशान रहता है. लेकिन स्वतन्त्रता दिवस के मौके पर लालकिले की प्राचीर से इस बार का प्रधानमन्त्री का भाषण पड़ोसी देश में हलचल पैदा करने वाला रहा. केवल बलूचिस्तान, पीओके और गिलगित का नाम लेना ही ना सिर्फ पाकिस्तान बल्कि भारत के कई लोगों का मूड बदलने की वजह बन गया. दोनों देश का आम नागरिक एक दूसरे के विपरीत चिंता और खुशफहमी के झूले में झूलने लगा है. उभरती शक्ति के रूप में भारत के बढ़ते दबदबे से पाकिस्तान की चिन्ता स्वाभाविक हो सकती है. मोदी की इस चाल के जवाब में पाकिस्तान भी अपनी पूरी सक्रियता दिखा रहा है. एक राष्ट्र के रूप में उसके ये सारे प्रयास कहीं से भी अचंभित नहीं करते हैं. दूसरी तरफ भारत के राष्ट्रवादियों को खुश होने का एक नया मौका जरुर मिल गया है. कश्मीर में हिंसा से पैदा हुई अनेकों आशंकाओं के बीच भारत द्वारा दुश्मन की दुखती नब्ज पर हाथ रखने और उसको मिल रहे स्थानीय समर्थन से सरकार को तात्कालिक तौर पर फायदा मिलता दिख रहा है. किसी भी आम भारतीय को पाकिस्तान के टूटने की भनक भर ओलिंपिक मेडल टैली में टॉप करने से भी ज्यादा ख़ुशी दे सकती है. जिसके लिए सरकार को अगले 12 सालों के मद्देनजर टास्क फ़ोर्स का गठन तक करना पड़ रहा है.
प्रधानमंत्री मोदी का बलूचिस्तान स्ट्रोक केवल इसी ख़ुशी के लिए लगाया गया है या उनके बयान के पीछे कोई ठोस वजह भी है यह मेरे दिमाग में इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल है. तमाम बुद्धजीवियों के विश्लेषण और शीर्ष मीडिया रिपोर्ट्स को देखने के बाद इसका जवाब मिलने के बजाय सवाल और जटिल होता जा रहा है. फ़िलहाल खुशफहमी वाली सम्भावना ज्यादा लगती है क्योंकि मौजूदा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य, भारत के उन आम तमाम लोगों को दुश्मनी वाली ख़ुशी देने से ज्यादा कुछ नही दिखाता है. अगर दूसरी सम्भावना की बात करें तो यह भारत की रणनीति से जुड़ी है. इसमें कोई शक नहीं कि मोदी सरकार ने अपने अब तक के कार्यकाल में पाकिस्तान को पहले दिन से ही तवज्जो देकर भारत की विश्वविख्यात उदार और सहयोगात्मक छवि की परम्परा को बढ़ाने का प्रयास किया है. पठानकोट और कश्मीर के अनेकों मामले के सामने आने के बाद भी धैर्य बनाये रखा है. इससे पहले मोदी का पाकिस्तान जाना भी वार्ता की मेज को सजाने की कोशिश ही थी. लेकिन ये मेज सजती उससे पहले ही इसकी पठानकोट वाली टांग टूट गई. इसके बाद तो मानो वार्ता की सम्भावनाएं शर्तों और मुद्दों के बीच झूलती रहीं.
अगर 15 अगस्त के बाद के घटनाक्रम को ध्यान से देखें तो भारत की ओर से पीएम के भाषण के बाद बलूचिस्तान पर कोई अधिकारिक हलचल नहीं हुई है. लेकिन पाकिस्तान और दुनिया भर में रह रहे बलूच समर्थित सैकड़ों लोगों ने प्रदर्शन का सिलसिला शुरू कर दिया है. बलोच स्टूडेंट्स एंड यूथ एसोसिएशन और बलोच ह्यूमन राइट्स काउन्सिल जैसे संगठनों ने जर्मनी और ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देशों में अपनी आवाज़ बुलंद कर रखी है. खास बात ये है कि ऐसे सारे घटनाक्रम पीएम मोदी के नाम और चित्र के साथ घट रहे हैं और स्वाभाविक रूप से भारत के तमाम मीडिया चैनल और अखबारों ने इन खबरों को प्रमुखता से जगह दी है. बलूचिस्तान के इतिहास और मौजूदा हालातों को समझने के बाद ये तो जरुर कहा जा सकता है कि वहां सबकुछ ठीक नहीं है. वैसे तो पूरे पाकिस्तान की स्थिति कमोबेश एक जैसी ही है लेकिन देश का यह दक्षिण पश्चिमी राज्य विकास समेत सभी मोर्चों पर सबसे पीछे है इसमें कोई शक नहीं. बंटवारे के वक्त से ही बलोच पाकिस्तान में विलय के खिलाफ थे उसके पीछे उनकी अपनी आशंकाएं थीं. इस्लामिक मान्यताओं के बावजूद बांग्लादेश की तरह पाकिस्तान की जबर नीतियों ने बलूचिस्तान के लोगों में भी विद्रोह को हवा दी.
वजह चाहे कोई भी हो, भारत और पाक दोनों देशों में बलूचिस्तान इस समय एक मुद्दा है. पाकिस्तान के लिहाज़ से ये मुद्दे से बढ़कर है. ये कितना वाजिब है जब पाकिस्तान अपने मौजूदा नक्शे को बचाने में जूझ रहा है तब वह भारत के नक्शे को बिगाड़ने की कोशिश में है. नवाज़ शरीफ द्वारा 22 देशों में सांसदों को भेजकर विश्वपटल पर कश्मीर के मुद्दे पर भारत को घेरने की योजना बनाई गई है. भारत द्वारा भी पीओके को लेकर अरसे बाद सक्रियता देखने को मिल रही है. कश्मीर हिंसा ने भारत की कश्मीर और पाकिस्तान नीति को प्रभावित किया है. राजनाथ पैलेट गन बंद करने की बात कह रहे हैं वहीं सरकार प्रवासी भारतीय सम्मेलन में पीओके के प्रतिनिधियों को निमंत्रित करने की तैयारी में है. मतलब सबकुछ थोड़ा नया हो रहा है. भारत का युवा तैश में बलूचिस्तान और कश्मीर पर सेना का पराक्रम देखना चाहता है वहीं पाकिस्तान चीन के साथ कूटनीतिक बाजी खेलने की जुगत में है. इसी सन्दर्भ में चीन के सरकारी अख़बारों ने भी अपनी चिंता जाहिर कर दी है. बलूचिस्तान के मामले में भारत की योजनाओं को लेकर मेरे दिमाग का सवाल अभी भी बिना किसी जवाब के अटका है. भारतीय होने के नाते पाकिस्तान पर बलूचिस्तान के दबाव से यही उम्मीद कर सकता हूँ कि शायद उसे कश्मीर को लेकर भारत की प्राथमिकतायें थोड़ी बहुत समझ में आयेंगी. मुझे ये भी पता है कि ये बस उम्मीद है लेकिन पाकिस्तान को पता होना चाहिए कभी कभार लालकिले से बलूचिस्तान भी दिखता है. .
-नूतन कुमार गुप्ता

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