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अमरनाथ जी यात्रा… कठिन लेकिन सुखद

AAKARSHAN
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आज सावन का अंतिम सोमवार है.बाबा विश्वनाथ से लेकर अमरनाथ जी (बाबा बर्फानी) तक एवं सभी ज्योतिर्लिंगों सहित छोटे बड़े सभी शिव-मंदिरो पर श्रद्धालुओं का ,जलाभिषेक,और दर्शनों के लिए ताता लगा हुआ है.जो भी हिन्दू विचारधारा में विश्वास रखते हैं,उनकी यही इच्छा रहती है की एक बार सावन में बाबा भोलेनाथ का दर्शन अवश्य हो जाय.जिसकी जितनी श्रद्धा और सामर्थ्य हो और समय मिले,तो जरूर करना चाहेगा.यह मेरा मत है.तभी तो हमारे देश के प्रधान-मंत्री ने ऐसे समय में काठमांडू की यात्रा का निर्णय लिया,और वह भी अपने को इस लालसा से अलग नहीं कर सके. आज उन्होंने …पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन,पूजन और अभिषेक किया.इसके पीछे जो भी ,राजनैतिक या कूटनीतिक ,उद्देश्य हो,लेकिन उन्ही के अनुसार, उन्हें वहां पहुचने में सत्रह-वर्ष लग गए.यद्यपि कुछ विरोधियों ने इसे धर्मनिरपेक्षता के विरुद्ध बताना शुरू कर दिया है,लेकिन कुछ तो लोग कहेंगे……लोगों का काम है कहना .
वैसे तो मैं काशी में ही रहता हूँ और सभी बारह ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है,पशुपति नाथ के दर्शन भी मैं कर चुका हूँ,लेकिन 1988 से ही मेरी इच्छा थी …बाबा अमरनाथ जी के दर्शन की.कभी समयाभाव,कभी आतंकवाद ,और कभी कठिन यात्रा को लेकर मेरे मन में ऊहापोह रहता था.लेकिन मुझे 25 वर्ष लगे,जब इस यात्रा का योग बना.इस वर्ष मार्च में जब यात्रा का पंजीकरण शुरू हुआ तभी,मेरे बड़े भाई साहब ने जोर दिया और मुझे लगा कि बाबा का बुलावा आ गया है,और सभी बुरी संभावनाओं को दरकिनार करते हुए मैंने दर्शन करने की ठानी.ज्योंही यह बात लोगों को मालूम हुई,धीरे-धीरे सह -यात्रियों की संख्या बढ़ने लगी और कुल मिला कर ग्यारह लोग हो गए.सबसे बड़ी बात यह थी की केवल दो लोग पचास वर्ष के आस-पास के थे,शेष सभी सेवानिवृत्त और उनका परिवार.मेरे सह- यात्री शर्मा जी ,मेरे मित्र हैं,बाक़ी रिश्तेदार.शर्मा जी और उनकी धर्म-पत्नी ,के साथ हम लोगों ने देश-विदेश की बहुत सी यात्रा किया है.सबसे बड़ा संयोग यह था कि…मेरी दीदी जो 69 वर्ष की हैं और जीजा जो 75 वर्ष के होनेवाले हैं,ने पहले साफ़ इंकार कर दिया तो मुझे बुरा नहीं लगा ,लेकिन मेडिकल कराने के लिए अनमने भाव से पहुँच गए.उसके बाद तो जाने के लिए तैयार हो गए,तब मुझे कुछ न कुछ अनहोनी की आशंका होने लगी.दीदी को स्लीप-डिस्क और जीजा,जो पेशे से चिकित्सक रहे हैं,शुगर और हाई ब्लड-प्रेशर.मेरे भाई साहब को भी हाई ब्लड-प्रेशर और कुछ शुगर.मेरी धर्म-पत्नी को जोड़ो का दर्द और भाभी जी को चक्कर.सब मिलाकर ….चिंता का विषय.लेकिन कोई भी न जाने को तैयार नहीं……मेडिकल टेस्ट में पास होने का हवाला देते हुए,अंततः हेलीकाप्टर से जाने का तय हुआ.जो कुछ भी यात्रा के विषय में सुना गया था,उसे लेकर यही हो रहा था कि…….अगर कोई साथ वापस नहीं आया तो क्या होगा?……जून 2013 में भाई साहब,भाभी जी, केदारनाथ जी की यात्रा के बाद बच कर आये थे.ये लोग आगे-आगे और मौत पीछे-पीछे.लेकिन बाबा अमरनाथ के दर्शन की चाह के आगे सब मंजूर था.सबके मन में अलग-अलग भय.सबने मन ही मन भविष्य की योजना भी बना लिया था……कि यदि कोई नहीं आया तो क्या किया जायगा?लेकिन सबके मन में …..’बाबा -बर्फानी’ के ऊपर अटूट विश्वास था.पहले पंद्रह जुलाई को हेलीकाप्टर की बुकिंग हुई,लेकिन कुछ कारणों से 13 जुलाई का टिकट मिला.’13 ‘ के अंक से कुछ लोग भयभीत हुए,लेकिन …..मन को समझाया गया कि ‘ईश्वर जो करता है,…वह भले के लिए करता है’.
सशंकित मन,लेकिन इरादा पक्का.फिर तो सब कुछ सामान्य सा लगने लगा,क्योंकि भविष्य की योजनाएं,जो बना ली गयी थी.मन में तरह-तरह के विचार……क्या लाखों लोग दर्शन करने जाते हैं,तो सभी लोग वहीँ रह जाते हैं?क्या सभी लोगों को आतकवादी निशाना बना लेते हैं?क्या सभी लोग ऑक्सीजन की कमी से मर जाते हैं?क्या रास्ता कठिन है तो ,तो सभी लोग खाई में गिर जाते हैं?क्या इतनी ठंढ पड़ेगी कि सभी ठंढे हो जाएंगे?फिर जिसका पूरा हो जायगा वह कहीं भी और कभी भी जा सकता है.यही सोचते-सोचते यात्रा शुरू हो गयी.जम्मू से श्रीनगर होते हुए सोनमर्ग में रात्रि-विश्राम.सुबह बाल-टाल और फिर वहां से हेलीकाप्टर से …पंज -तरणी.वहां से घोड़े से यात्रा शुरू हुई.शुरू में ही लगने लगा कि यात्रा कठिन है,क्योंकि रास्ता बहुत ख़राब और कहीं कहीं इतना सकरा और कीचड़ भरा कि घोड़े भी लड़खड़ा जांय.बर्फ को काटकर तैयार किये गए रस्ते पर इतना कीचड़?लेकिन यात्रियों के जोश में कोई कमी नहीं.सभी घोड़ेवाले ,पालकीवाले मुस्लिम लेकिन …रास्ते भर …..’भोले….भोले’ का जयकारा लगाते हुए,और यात्रियों में उत्साह भरते हुए….सुन्दर और मनोहारी पर्वत श्रृंखला ,कुछ बर्फ से ढकी….बारिश और ठंढ से बचने के लिए सारे सामान….लेकिन मौसम में धूप की तल्खी से सबबेकार…हेलीकाप्टर से जाने के कारण महत्वपूर्ण पड़ाव …जैसे पहलगाम,शेषनाग आदि हम लोग नहीं जा सके.धीरे-धीरे पड़ाव आ गया.लेकिन पवित्र-गुफा से लगभग डेढ़ कि.मी.दूर घोड़े वालों ने उतार दिया.सामने लेकिन….. दूर पवित्र-गुफा.नीचे बर्फ और ऊपर धूप.रास्ते में भीड़….सकरे रस्ते पर …पालकीवालों से बच कर चलना दूभर.साथ के लोगों में सभी लोग परेशान लग रहे थे.गुफा के कुछ देर पहले…लोग दो-तीन के ग्रुप में अलग -अलग बिखर गए थे.लेकिन उत्साह में कमी नहीं ,क्योंकि बाबा बर्फानी के दर्शन शीघ्र होने वाले थे.रस्ते में फिसलन से कई बार गिरे भी.साथ के एक व्यक्ति को साँस की थोड़ी परेशानी और भाभी को बार-बार चक्कर आने से कुछ दिक्कत हुई,लेकिन बाकी लोग दर्शन की अभिलाषा में आगे बढ़ते गए.गुफा के पास की सीढ़ियों पर भीड़ बढ़ जाने के कारण…..धक्का-मुक्की,लेकिन ….बर्फ से बने उस भव्य शिवलिंग के दिव्य-दर्शन होते ही अजीब सा भावुक हो गया.आँखों में आंसू छलक आये,पचीस वर्ष पुरानी अभिलाषा जो पूरी हो गयी थी.सहसा विश्वास नहीं हुआ….कि आज बाबा के दरबार में हूँ.पास में ही ….दूसरा शिवलिंग ,जो माँ पार्वती का प्रतीक और दोनों के बीच छोटी-छोटी दो आकृतियां जिसे ….श्री गणेश और श्री कार्तिकेय बताया गया.ऊपर ….उन दोनों कबूतर के भी दर्शन हुए.हम सभी लोग अपने को धन्य समझ रहे थे.सारे कष्ट भूल गए…और एक सुखद एहसास !!!!!बार-बार कानों में एक ही स्वर …गूंज रहा था……’जय बाबा बर्फानी’!!…….’जय बाबा अमरनाथ’!!!.

सब मिलाकर यह एक कठिन यात्रा का सुखद एहसास रहा.सभी लोग काश्मीर घूमे औरजम्मू, कटरा से माँ वैष्णो देवी के भवन पहुंचे और माँ के दर्शन के उपरांत वापस अपने-अपने घर .सारे संशय और भविष्य की उन योजनाओं की बात भूल गए और यही कहे कि…….,’जब उनका बुलावा आता है ,तभी दर्शन मिलता है’.अभी 10 अगस्त 14तक यात्रा चलेगी.

जय हिन्द! जय भारत!!

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