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‘नवरात्रि’के दिन वर्ष में दो बार आते हैं ….वासंतिक नवरात्रि ..एवं शारदीय नवरात्रि. सभी ,देश -वासी ,जो धर्म-कर्म में विश्वास रखते हैं और ..माँ की पूजा में विश्वास रखते है, अपने- अपने ढंग से तैयारियों में लग जाते हैं. दूर-दराज रहने वाले अपने परिवार के साथ मनाने की योजना में लग जाते हैं.कोई ….’माँ के धाम ‘ जाना चाहते हैं,कोई…. किसी पास के मंदिरों में, दर्शन करने की इच्छा रखते हैं,…लेकिन ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं होती,जो अपने-अपने घरों में ही कलश-स्थापना करके , या वैसे ही पूजन में विश्वास रखते हैं. जिसकी जितनी श्रद्धा ,उसका उतना तरीका .कुल मिला कर यह कहना है कि सब अपनी शक्ति के अनुरूप पूजा करते हैं और यह मान लेते हैं कि ….माँ ….उनके पूजा को स्वीकार कर ली और प्रसन्न हो गयी , और माँ के …’आशीर्वाद ‘ के असली हकदार वही हैं…माँ का आशीर्वाद ,उन्हें किसी न किसी रूप में मिलता भी है.
लेकिन क्या किसी ने यह भी सोचा कि ..माँ ..के ऊपर क्या गुजर रही है या क्या गुजरेगी ?..माँ ….के तो सभी बच्चे हैं आखिर माँ….. कैसे उन्हें अलग -अलग आशीर्वाद देगी?डाकू मान सिंह रहे हो या सुल्ताना डाकू, सभी देवी के भक्त थे. आज भी जो डाकू लुटेरे है,उन्ही की संतान है.जो माता की पूजा में विश्वास नहीं रखते हैं ,वह भी उन्हीं की संतान हैं .जो नास्तिक हैं क्या वह उनकी संतान नहीं हैं?जो दूसरे धर्म या संप्रदाय के हैं और उनकी पूजा नहीं करते क्या वह उनकी संतान नहीं है?अन्य धर्म के लोग जो,माँ के लिए मुकुट या चुनरी बनाते या बुनते है,क्या उन्हें माँ ….आशीर्वाद नहीं देंगी ? अन्य संप्रदाय के लोग ,जो उनकी पूजा के लिए बाजा बजाते हैं क्या वह उनकी संतान नहीं है और क्या उन्हें आशीर्वाद नहीं मिलना चाहिए ?क्या करेंगी माँ ,यदि राज ठाकरे के साथ …राशिद-अल्वी (जिसकी सम्भावना नहीं के बराबर है) माँ के दरबार में मत्था टेकने पहुँच जांय?सोनिया जी और मनमोहन सिंह जी के साथ ,सुषमा स्वराज,गडकरी जी और मुलायम सिंह जी ,माँ के दरबार में एक ही साथ पहुँच जाय,तो माँ किसे …” विजयी-भव”का आशीर्वाद देंगी? ऐसी अनेक परिस्थितयां आती हैं,जब ….माँ भी ,दुविधा में पड़ सकती हैं,…..यदि उनके दरबार में ,अचानक …घोटालों का पुलिंदा लेकर ,अरविन्द केजरीवाल अपनी सुरक्षा एवं सफलता के लिए ,याचना कर रहे हों और ठीक उसी समय प्रियंका गाँधी ,वाड्रा के साथ अपने सुहाग और उनकी संपत्तियों की सुरक्षा की मांग करने पहुँच जाती हैं.सभी ….माँ की संतान है और सबको एक दृष्टि से देखना मजबूरी है ,और कोई उनके दरबार से खाली हाथ नहीं लौटता है , …ऐसे में माँ क्या करे और क्या न करे?लेकिन माँ ….दोनों को …….सुखी रहने का आशीर्वाद देती है……लेकिन इसका परिणाम समय आने पर ही सामने आएगा कि …..कौन कैसे और कितने दिन सुखी रहता है?लालू यादव और नितीश कुमार दोनों को ही ,..माँ ने सुखी रहने का आशीर्वाद दिया….देखिये आज तक दोनों सुखी हैं कि नहीं ? एक,सत्ता से बाहर होने के बाद भी आज तक ,चारा घोटाले में ,जेल नहीं गया और दूसरा सत्ता पाकर सुखी है .लेकिन उसकी कोई समय सीमा निर्धारित नहीं किया ….माँ ने.
हम लोग सुनते हैं कि …..जो भी राक्षसी प्रवृत्ति के रहे हैं,या जितने भी असुर रहें हैं,सभी ने पहले ….अनवरत कठिन तपस्या करके देवी -देवताओं से वरदान प्राप्त किया .,और फिर उसी वरदान के सहारे ,घमंड से चूर होकर ,जनता पर और यहाँ तक कि ….देवी -देवताओं पर भी अत्याचार करके उन्हें अपने अधीन करने का प्रयास किया .लेकिन उन्हें क्या पता कि….देवी देवताओं ने पहले से ही ….उसकी मंशा को भांप लिया था , और एक न एक उपाय सोच कर अपने पास रिज़र्व रख लिया था ,?जिसका प्रयोग अंतिम समय …..अमोघ – अस्त्र के रूप में किया . सभी मारे गए ,चाहे बाणासुर हो या ताड़कासुर ,भस्मासुर हो या महिषासुर .हिरण्यकश्यप हो या रावण ,कोई जिंदा नहीं बचा .
ठीक उसी प्रकार से माँ ने सभी पापियों और अत्याचारियों को.सजा देने और मारने का तरीका अपने पास रिज़र्व रखा होगा .हमें इस बात की कोई चिंता नहीं होनी चाहिए .माँ… ने इसीलिए अलग -अलग समय और काल में अलग -अलग अवतार लिया .दुष्टों और राक्षसों को दमन करने के लिए अलग और रौद्र -रूप धारण किया ,तो कल्याण करने लिए अलग रूप .सबके पीछे केवल यही उद्देश्य था कि दुष्टों का नाश और भक्तों का कल्याण .वैसे तो माँ ,बावन शक्ति -पीठों में अलग -अलग रूप में विराजमान हैं .चार आदिशाक्तियों के रूप में भी उनकी महत्ता है.मान्यता है कि, माता सती के,..दक्षिण -काली (कोलकता) में मुख -खंड ,तारा -तारिणी ( बहरामपुर ,ओड़िसा )में स्तन -खंड ,….कामाक्षी /कामख्या (असम)में योनी -खंड और बिमला -देवी (पुरी)में पद-खंड ,गिरे थे .इन चारों स्थानों पर माँ की पूजा आदि -शक्ति के रूप में होती है. शरदीय नवरात्री में माँ की….. नौ -दुर्गा और वासंतिक नवरात्र में नौ -गौरी की पूजा होती है.इसके अलावा भी अनेक नामों से अनेक रूप में उनका पूजन तो हर समय होता ही रहता है.
पूजा चाहे जिस रूप में की जाय ,सभी के पीछे मानव -कल्याण की भावना होनी चाहिए .माँ ने अनेक रूपों में चंड -मुंड ,शुम्भ -निशुम्भ , महिषासुर , रक्तबीज आदि रुपी अहंकार का बध किया .मान्यता है कि शैल -पुत्री के रूप में हिम -नरेश के घर जन्म से लेकर ब्रह्म -चारिणी ,चन्द्र -घंटा ,कुष्मांडा ,स्कन्द -माता ,कात्यायनी ,काल -रात्रि ,महागौरी एवं सिद्धि -दात्री तक के सभी रूपों को ‘शक्ति -रूप ‘ में ही पूजा जाता है. ….भगवती महालक्ष्मी ,महाकाली और महासरस्वती के रूप में पूरे विश्व का कल्याण ही करती है.यद्यपि धर्म,अर्थ काम और मोक्ष ,भी ईश्वरीय देन ही है,लेकिन केवल अर्थ के लिए पूजन का कोई मतलब नहीं है..धर्मार्थ …किये गए कार्य से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है.आज नेता हों, कर्मचारी या अधिकारी हों,या व्यापारी हों ,केवल अर्थ के पीछे भाग रहे हैं .अन्य जन भी उनका अनुसरण कर रहे हैं,और कम से कम समय में या न्यूनतम प्रयास से अधिक अधिक धन-प्राप्ति की ….लालसा रखते हैं..बाबा हों या साधू -सन्यासी,…..यदि मोह-माया में फंसे है तो केवल दिखावे के लिए ,माँ का पूजन करने से आत्म-संतोष भले मिल जाय,प्रसिद्धि भले प्राप्त कर ले,…..इससे उनका कल्याण नहीं होने वाला है.माँ …सबकी मंशा अच्छी तरह जानती हैं.वैसे भी …..अपनी संतान को ..माँ से अधिक ….भला कौन जान सकता है?
जय माता दी!! जय हिन्द! जय भारत!!
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