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बहू!…मायके गई है!!

AAKARSHAN
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हाँ तो पाठकों….आप सभी जानते हैं कि पश्चिमी -विक्षोभ के कारण, किस क़दर , सारा उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत ने, जो और जितनी बार कष्ट झेला है,उसे सोच कर भी ,हम उत्तर- भारतीय एक बार सिहर उठते हैं.कोई इसे सफ़ेद-क़हर,तो कोई सफ़ेद-आफत के नाम से पुकारता था.लेकिन एक ऐसा विक्षोभ ,जिसने हमारे समाज और हमारे परिवार के संगठन पर उत्तर से दक्षिण हो या पूरब से पश्चिम ,सारी दिशाओं से चौतरफा हमला किया है ,ईश्वर जाने उसके प्रभाव से हमें निज़ात मिलेगी भी या नहीं,या पूरे समाज को अपने आगोश में ले लेगा .हमारा देश ,अपनी संस्कृति और सामाजिक मान्यताओं ,के कारण पूरे विश्व में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. एक ओर तो पश्चिमी देश हमारी संस्कृति का अनुकरण कर रहे हैं,वहीं हम अपने को एडवांस दिखने के चक्कर में पश्चिमी देशों का अंधाधुंध अनुकरण करने लगे हैं.स्वाभाविक है की इसका गहरा प्रभाव हमारी सोच और संस्कृति पर पड़ेगा.
हमारे देश में,स्त्रियों को बहुत ही आदर की दृष्टि से देखा जाता है.मैं उन दुष्टों और पापियों की बात नहीं कर रहा ,जिनके वजह से हमारी महिलाओं को,हमारे समाज को , अपमानित होना पड़ा है,और हमारी गरिमा शर्म-सार हुई है.मैं उन लोगों की बात कर रहा हूँ ,जो अपनी परम्पराओं और संस्कृति को अक्षुण रखना चाहते हैं और इसके लिए महिलाओं को सम्मान देने में पीछे नहीं हटते ,क्योंकि वे जानते हैं कि ,वह घर ,घर नहीं होता जहाँ नारी को सम्मान नहीं दिया जाता है.स्त्री को गृह -लक्ष्मी कहा जाता है.नारी को सहन -शीलता की प्रतिमूर्ति के रूप में देखा जाता है.नारी में वह शक्ति है,जो बिगडैल से बिगडैल पुरुष को भी सही रस्ते पर ला दे .लेकिन विगत कुछ वर्षों से जो कुछ देखा और सुना जा रहा है,उसे देख -सुन कर कष्ट होता है.बहू के चयन में आप चाहे जितनी सावधानी बरते,घर तभी स्वर्ग बन सकता है,जब ससुराल और मायके वाले तथा बहू और बेटे समझदारी से काम लें.
जरा सोचिये! ….कि ससुराल आने के कुछ ही घंटे बाद ,मुँह-दिखाई के पैसे (गाँव की एक-रश्म)फ़ेंक कर ,यदि बहू ,दहेज़ में लायी हुई गाड़ी ,स्टार्ट करके मायके चली जाय,वह भी केवल इसलिए कि,……उसके ससुराल में बिजली का पंखा नहीं चल रहा था,तो क्या गुजरेगी उस घर के लोगों के और पति-देव के ऊपर?जबकि ,शादी के पूर्व मायकेवालों को यह मालूम था कि …शादी एक गाँव में प्राइमरी स्कूल के अध्यापक के (कच्चे) घर में की जा रही है,और गुरु जी ने डी.एस.पी.साहब को पहले ही बता दिया था कि….उनकी बेटी के लायक उनका घर-परिवार नहीं है.लेकिन मायके वालों को …शादी के पूर्व सब-कुछ मंज़ूर था,क्योंकि वह किसी भी कीमत पर ..प्रथम श्रेणी अधिकारी को हाथ से नहीं जाने देना चाहते थे.जरा सोचिये ! एक रात दो बजे ,के करीब ,रेलवे कालोनी के एक ..अधिकारी के घर ..फोन की घंटी बजती है….दूसरी तरफ से कोलकता के एक वरिष्ठ अधिकारी की आवाज़ आती है…..”मैं….बोल रहा हूँ ,ज़रा सामने वाले बंगले में पता लगाओ …. कोई बात तो नहीं हो गयी….क्योंकि मेरी बेटी ने रोते हुए कहा…..पापा! मैं यहाँ नहीं रह सकती,आप मुझे अभी आकर ले जाइये ,नहीं तो मैं …उसके बाद से फोन ही नहीं उठ रहा है …”यह सुनते ही उस अधिकारी के हाथ-पांव फूल गए.नींद में ही उठकर बाहर भागे .बंगले की ओर झांके …..कोई शोर-गुल या रोने की आवाज़ नहीं आ रही थी.केवल एक बत्ती जल रही थी ….और….सब कुछ सामान्य सा लगा…..सो उन्हें वस्तु-स्थिति से अवगत करा दिया.फिर उन्हें भी नींद कहाँ आती है.रात-भर …अपनी खिड़की से आहट लेते रहे.लेकिन सुबह ही ..वरिष्ठ -अधिकारी महोदय ,पहली फ्लाईट से ,पहुंचे और अपनी लाडली और नतिनी को लेकर ,वापस चले गए.इस सम्बन्ध में ,जो जानकारी मिली …..”बहू रानी किसी भी दशा में अपनी विधवा सासु को घर से हटाना चाहती थी,लेकिन बेटा अपनी माँ को हटाने को तैयार नहीं था,यह बात बेटे ने शादी के पूर्व भी बता दिया था.लेकिन वही बात …शादी के बाद देखा जायेगा,रेलवे के प्रथम-श्रेणी अधिकारी को हाथ से कैसे जाने देते?…..दोनों ही मामले में,……कई वर्षों तक यही सुना जाता रहा कि …….बहू! मायके गई है………अंत भी कष्ट-दायी ही रहा.विशम्भर जी ने अपने मित्र की बेटी को बहू बनाकर दोस्ती को सम्बन्ध में बदल कर बेटी की तरह रखे.एक साल तक सब ठीक रहा.लेकिन एक साल के बाद जब पुनः मायके गयी,तो ….मायके में ही रह गयी.विशम्भर जी अपनी धर्म-पत्नी के साथ कई माह तक जेल में रहे,क्योंकि बहू ने उनको अलग खाना बनाने को कहा ,जो उन्हें मान्य नहीं था,अपने पति पर दबाव बनाने के लिए ,उसने सास-ससुर पर दहेज़ के लिए परेशान करने का आरोप लगाया,लेकिन पति का नाम नहीं लिया.अभी मामला न्यायलय में है..
आप अपने इर्द-गिर्द भी झांक कर देखें ,ऐसी कोई न कोई घटना जरूर देखने को मिलेगी.यदि,सौभाग्य से ,दिखाई नहीं पड़ी तो सुनाई अवश्य पड़ जाएगी.पहले ऐसा लगता था कि यह तो केवल पश्चिम और दक्षिण में ही होता है.लेकिन उत्तर और पूर्वी भारत में भी यह एक …..संक्रामक रोग की तरह फ़ैल रहा है.कुछ माह पहले एक विवाह समारोह में …पूरब के एक कर्नल साहब,जो मेरे परिचित थे,शिष्टाचार के नाते नमस्ते करने के बाद मैंने उनका और बेटों का हाल पूछ दिया.लेकिन छूटते ही ,उनका जबाब सुनकर ,कि …..उनका बड़ा बेटा मर गया…..सा…!.मैंने ….सारी बोलना चाहा….तब-तक आगे बोल पड़े…कि …मैंने समझ लिया कि अब मेरा केवल एक ही बेटा है,छोटावाला…..मनीष.बड़े को तो मैंने घर से ही निकाल दिया .शादी के बाद …अब वह और उसकी बीबी ,दोनों या तो दिल्ली रहते हैं या …..मैनेजर साहब (बेटे के ससुर)के घर ही जाते हैं.उनके चेहरे पर ….दर्द के भाव साफ झलक रहे थे.एक पोश कालोनी में रहने वाली …..मिसेज खन्ना ने ….मिसेज वर्मा को बताया कि ……मिसेज सिन्हा की बहू……भाग गयी.अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि…..मिसेज सिन्हा दिखाई पड़ गयी….मि.वर्मा ने पूछ ही लिया……..क्या बात है आज कल आप की बहू….दिखाई नहीं दे रही,बीमार तो नहीं है?मिसेज सिन्हा ,…सम्हलते हुए बोली ……बहू ! मायके गयी है.मि.वर्मा भी कहाँ चुप रहने वाली थी.अरे!…..अभी सात-एक रोज़ पहले तो मायके से आई थी…..मि.सिन्हा ने कहा…..तो क्या?उसके पिता की तबियत अचानक ख़राब हो गयी थी.उसका भाई ….परसों ही रात को आया और लेकर चला गया.बात सच थी,कि …उनकी बहू !..मायके ही गयी थी.हुआ ये था कि आते ही ….अपने पति से बोली…..कि सात दिन के अन्दर…कोई और मकान ले लो ,नहीं तो वह मायके चली जाएगी,और…..अल्टीमेटम की अवधि बीतते ही वह,……अकेले ही …मायके चली गयी,उसने अपना वचन पूरा कर दिखाया.कुछ वर्षों के बाद ही …मि.वर्मा कि दोनों बहुयें …और मि.खन्ना की….इकलौती बहू भी…..मायके चली गयीं.ऐसा नहीं है की सभी बहुए ऐसी ही हों.अभी हाल ही में दिल्ली की यात्रा के दौरान….ट्रेन में …एक शर्मा जी अपनी धर्म-पत्नी के साथ चढ़े.उनकी बहू और बेटे छोड़ने आये थे.रस्ते भर ..वह अपने तीनो बहुओं और बेटों की तारीफ करते रहे.सुनकर बहुत अच्छा लग रहा था.लेकिन वहीँ सामने बैठी एक महिला अपने इकलौती भाभी द्वारा ….अपने सास-ससुर को दिए जा रहे प्रताड़ना की बात सुना कर रो रही थी.सुखद और दुखद का अजीब …मिश्रित माहौल!
क्या हो गया है हमारी बहुओं को?जहाँ कोई कष्ट नहीं है वहां भी आखिर ऐसी सोच या ऐसा व्यवहार क्यों ?आखिर मायके का…हस्तक्षेप क्यों बढ़ता जा रहा है,इन बेटियों के ससुराल में?आखिर इसका अंत क्या होगा?मायके वालों का दोहरा चरित्र क्यों?अपनी बहू के मायके वालों का हस्तक्षेप ,बर्दास्त नहीं लेकिन अपनी बेटी के ससुराल की एक-एक पल की रिपोर्ट और उस पर त्वरित -हस्तक्षेप की बात समझ से परे नहीं है?क्या ऐसा नहीं लगता की बेटियों के लालन-पालन या संस्कार में कोई चूक अवश्य हो रही है?क्यों हर माँ-बाप यह सोचते हैं की ,हमारी बेटी उस परिवार में जाय,जहाँ कोई ननद या देवर नहीं हों?सास-ससुर न हों तो ,उसकी बेटी जाते ही सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त रहे?क्यों कोई ननद,यह चाहती है की ,उसकी भाभी ,उसके माँ-बाप की पूरी सेवा करे ,लेकिन उसके स्वयं के सास-ससुर या परिजन से वह दूर रहे?क्या यह सोच हमारी संस्कृति और हमारे संयुक्त परिवार की नींव को खोखली नहीं करती जा रही है?क्यों पति पर दबाव डालने के लिए ,किसी कानून का सहारा लिया जा रहा है?दहेज़-लोभियों के विरुद्ध निश्चित ही कार्यवाही होनी चाहिए,लेकिन क्या किसी माँ-बाप को अपनी बेटी की निजी ज़िन्दगी में ,बहुत ज़रूरी या अपरिहार्य न होने पर भी हस्तक्षेप करना चाहिए?क्यों न ससुराल या मायके वाले मिल-बैठ कर किसी समस्या का निदान ढूढें,और कोर्ट-कचहरी से दूर रहें ,और दोनों परिवारों की बदनामी से बचें?अभी कल की ही बात है,वाराणसी की ‘ममता’ सास-बहू के बीच लहसुन-प्याज़ के विवाद की ‘भेंट’चढ़ गयी.आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.
यह ऐसा विषय बन गया है की इस पर वाद-विवाद का कोई अंत नहीं है.सबसे अच्छा होगा की सास-ससुर भी परिस्थितियों को समझते हुए विवेक-पूर्ण निर्णय लें और जहाँ तक संभव हो,बेटे-बहू की निजी ज़िन्दगी को नर्क न बनने दे . माँ-बाप का भी यह दायित्व बनता है,की बेटी -दामाद और उनके परिवार को स्वर्ग बनाने में अपना योगदान करें.किसी की भी बेटी या बेटा यदि सुखी रहेंगे,तो निश्चय ही उन्हें भी प्रसन्नता होगी.
जय हिन्द I जय भारत I I

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