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सत्ता के लिए ….कुछ भी !

AAKARSHAN
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वाह! रे ,,,,,हमारे देश की राजनीति……और हमारे राज नेता .आज जो कुछ देश में हो रहा है ,वह अत्यंत ही निराशाजनक और राष्ट्र के लिए घातक है.एक हारा हुआ भी सिपाही ,अपने राष्ट्रीयता को ताक पर रख कर ,यदि दुश्मन की….. हाँ में हाँ…. मिलाये या राष्ट-विरोधी नारा लगाये ,तो उसे देश द्रोही कहा जाएगा.लेकिन अगर हमारे राजनेता उसे ……अभिव्यक्ति की आज़ादी…. के नाम पर समर्थन करें तो उसे क्या कहा जाएगा?सत्ता के लिए राज नेता ,….चाहे वह किसी दल के हों ………..किसी हद तक गिर सकते हैं यह तो देखा गया था …..लेकिन राष्ट्र-विरोधी ताकतों से हाथ मिला लेंगे या प्रत्यक्ष रूप से खुल कर समर्थन करेंगे यह तो अब ही देखने को मिल रहा है.भटके हुए युवाओं को सही रास्ते पर लाने के बजाय उनके साथ खड़े होकर ……उनका समर्थन करेंगे यह तो जन-मानस की आत्मा को झकझोर देने के सिवाय कुछ नहीं है.नितीश कुमार जैसे नेता भी प्रमाण मांग रहे हैं.
आज हर प्रान्त में ,जो भी विरोधी दल के नेता हैं ,वे एक जुट होकर वहां की सरकारों को गिराने ,बात-बात पर ,इस्तीफ़ा मांगने और केवल विरोध करने का कार्य कर रहे हैं . जन-हित को दरकिनार करते हुए, सत्ता की ओर……गिद्ध-दृष्टि लगाये हुए हैं.जहाँ भाजपा की सरकार है,वहां कांग्रेस और अन्य दल तथा जहाँ कांग्रेस या अन्य किसी दल की सरकार है वहां भाजपा और अन्य विरोधी दल.भाजपा जम्मू-काश्मीर में अपने धुर विरोधी नीति वाली पी. डी. पी.के साथ सरकार में रही और अब नयी परिस्थितियों में महबूबा की मोह का संवरण नहीं कर पा रही है. वहां की सत्ता में पुनः वापसी के लिए अपने …राम और माधव को ही दूत बना कर भेज रही है .वहीं महबूबा के नखरे दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं और भाजपा है कि उनके हर नखरे सहने को आतुर लग रही है.बस …महबूबा के इशारे का इंतज़ार है.दूसरे कोने से कांग्रेस भी लालायित तिरछी नज़र से उनकी ओर देख रही है,और हर अपमान का घूँट पीने के लिए आतुर हो रही है.इंतज़ार है तो बस उनकी नज़रों के …मुखातिब होने का.सही कहा गया है……..सत्ता के लिए कुछ भी………..करेगा.और किया भी है.अभी बिहार का चुनाव हुआ है और परिणाम सबके सामने है.नितीश कुमार और लालू यादव ,सारे घाव भूलकर ,एक दूसरे के गले मिल गए.कांग्रेस भी पिछलग्गू बन गयी.राबड़ी देवी के भी चेहरे खिल गए और तेजस्वी तथा तेज़ प्रताप का तेज़ सबके सामने है.यह बात और है कि आज जो कुछ भी बिहार में हो रहा है …..नितीश कुमार के चेहरे की हंसी गायब है और कांग्रेस के साथ दोनों के लिए……..आगे कुआँ पीछे खाई की खुदाई हो रही है.एक ही रास्ता बच गया है कि…2017 से पहले ही भाग लें….अन्यथा भगवान ही मालिक है.
अभी जे.एन.यू. प्रकरण चल रहा है.ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस ने बंगाल में कम्युनिस्टों से हाथ मिलाने का निर्णय ले लिया है…..तभी तो हताश कम्युनिस्टों के साथ मंच को साझा किया है.हो सकता है कि उनके ……कुछ विनाशक सलाहकारों…. ने सुझाव दिया हो कि …….इसका समर्थन करने से युवा वर्ग और कम्युनिस्ट उनके साथ हो जाएंगे तो उन्हें बंगालऔर अन्य राज्यों में आगामी चुनावों में विजय हासिल होगी.लेकिन यह उनका भ्रम है.…..क्योंकि पिछली सरकार में इन्ही कम्युनिस्टों ने कांग्रेस की सरकार गिराने का पूरा प्रयास किया था,बीच में गठबंधन छोड़कर.कम्युनिस्टों ने अपने वरिष्ठ.नेता सोमनाथ चटर्जी को भी पार्टी से बाहर कर दिया था.केरल में इनका क्या हाल है ,यह कांग्रेस को भी मालूम है.इसका फायदा कम्यनिस्टों को ज्यादा हो सकता है.कांग्रेस की गुजरात व कुछ अन्य राज्यों में छिटपुट व स्थानीय निकायों में विजय से राहुल गांधी अति उत्साहित होकर फिर से पुरानी गलतियों को दुहराने की भारी भूल कर रहे हैं.शायद उन्हें यह एहसास नहीं है कि…….जे.एन.यू.प्रकरण में देश-विरुद्ध नारे को …..अभिव्यक्ति की आज़ादी…..कह कर समर्थन करना भारी भूल होगी ….ऐसे में उनका समर्थन करने से करोड़ों युवाओं के तथा बहुतायत जनता के मन जो सहानुभूति पनप रही थी उससे भी हाथ धोना पड़ सकता है.कहीं ऐसा न हो कि…….आधी मिले न सारी पावे और चौबे जी की तरह छब्बे बनने की बजाय दूबे बन जाय और इसकी सम्भावना अधिक है कि दूबे भी न बन सके.लोग कम्युनिस्टों के साथ साथ कांग्रेस को भी गद्दार पार्टी कहने लगें और भाजपा का सपना……कांग्रेस -मुक्त भारत कहीं सच न हो जाय.
यह सभी दलों को सोचना पड़ेगा कि ….किसका समर्थन करना या लेना चाहिए और किसका नहीं?जे.एन.यू .जैसे प्रकरण पर विरोधियों का बोलना क्या आवश्यक था?देश-विरोधी नारे का ,चाहे वह श्रीनगर में हों या जे.एन.यू.में,प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से ,क्या समर्थन जायज़ है?देश-विरोधी नारे को ….अभिव्यक्ति की आज़ादी का आवरण देना क्या जरूरी है?जे.एन.यूू. के छात्र, जिसकी शिक्षा पर सरकार पैसे खर्च करती है,क्या देश के विरोध में नारे लगाने को उचित ठहरा सकते हैं?वहां के शिक्षक, जो जनता की गाढ़ी कमाई से दिए गए कर से वेतन पाते हैं ,को यह अधिकार प्राप्त होना चाहिए कि वह देश-द्रोही नारे को अभिव्यक्ति की आज़ादी की संज्ञा देकर छात्रों का समर्थन करें?क्या पुलिस को यह अधिकार होना चाहिए कि वह एक छात्र को गिरफ्तार करे और बाकी को इसलिए गिरफ्तार करने में टाल-मटोल करे क्योंकि वह मुस्लिम हैं या महिला?क्या गृह-मंत्री को यह सोच कर विलम्ब होने देना चाहिए कि बाकी छात्र-छात्रा काश्मीर के हैं और वहां उनकी सरकार बनाने की सम्भावना है?यदि हार्दिक पटेल पर देश-द्रोह की धारा लगाई जा सकती है तो इस मामले में विलम्ब क्यों?इस प्रकार की सोच और विलम्ब से भारत का अपमान ही होगा.यदि भारत के हित में सोचना हैं तो केवल इसमें ही नहीं ,ऐसे हर मामले में त्वरित और सख़्त से सख़्त कार्यवाही की आवश्यकता हैं…..सत्ता के लिए कुछ भी ….की सोच से हर दशा में दूर रहना होगा,चाहे कोई भी दल विपक्ष में हो या सत्ता में.
जय हिन्द! जय भारत!!

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