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बड़का चाचा ….I संस्मरण I ….II कांटेस्ट II

AAKARSHAN
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क्या देख रहे हैं …चाचा!…बार-बार,,,, अपनी हथेली को क्यों देख रहे हैं?…. बार-बार हथेली को देख कर क्या सोचने लगते हैं?…कोई चिंता की बात है क्या?सब जानते हुए भी मैं…अनजान बनने का दिखावा करने लगा.उन्होँने…..कुछ रुकते हुए !!!.रुंधे हुए गले से …..कहने का प्रयास किया….”.बेटा !! मैं यह देख रहा हूँ कि…..राम जी पंडित ने तो यह कहा था कि …..’पहले… तुम्हारी अम्मा मरेंगी ….और उसके…. दो साल के बाद…..मैं जाऊंगा !!मैंने तुरंत कहा …’यही सच होगा चाचा!…इसमें सोचना क्या है?..बड़का चाचा ने लम्बी साँस लेते हुए कहा…..’.लेकिन ऐसा हो नहीं ..रहा है न ‘.मैंने उन्हें …रोकते हुए यह कहते हुए कि…. .’ऐसा ही…… होगा…….’…” मैं अपना वाक्य पूरा नहीं कर सका और वहाँ से अपने आंसू रोकने का असफल प्रयास करते हुए …अपने कमरे कि तरफ तेजी से बढ़ गया और खूब रोया.इस वाकया के बीस साल पूरे हो गए लेकिन ऐसा लगता है कि…आज भी …उस किराये के मकान के उसी बैठके में …वह उसी सोफे पर बैठ कर …ये बातें मुझ से कह रहे हैं और मैं उनके सामने खड़ा हो कर सुन रहा हूँ.

सयुंक्त परिवार में रहने और मेरे ताऊ जी के बच्चों की सुनासुनी…हम लोग भी अपने पिता जी को .. बड़का चाचा ही बुलाते थे और वही सम्बोधन उनके जीवन-पर्यन्त चलता रहा और आज भी उनका संस्मरण उसी नाम से होता है.घटना यह हुई थी कि…..उन दिनों मैं वाराणसी में तैनात था.अम्मा और बड़का चाचा मेरे छोटे और चिकित्सक भाई के साथ ..देवरिया में ही रहते थे.१९९३ की दीपावली के बाद अम्मा जब बनारस आयी तो उन्होंने यह बताया कि…..’तुम्हारे चाचा …एक दिन चलते-चलते लड़खड़ा कर गिर गये ..उनके साथ मोहल्ले के ही …रिज़वान भाई..थे वही उनको सहारा दिये और घर ले आये .घर पर उन्होंने बताया कि…..चक्कर आ गया था.मैंने साथ बनारस आने को कहा ..तो ऐसी कोई घबड़ाने की बात नहीं है,कह कर टाल गये.’ मैंने सोचा …. कि ..लकवे का हल्का असर तो नहीं है?उन्हें तुरंत ही भाई के साथ बनारस बुलवाया.बी.एच.यू.के एक चिकित्सक को दिखाया,उन्होंने तुरंत ही ..सी टी स्कैन ..कराकर शाम को ही घर पर दिखाने को कहा और कुछ भी बताने से मना कर दिया.स्कैन की रिपोर्ट लेकर जब मैं अपने जीजा जी,जो एक चिकित्सक भी हैं, के साथ उनके घर पहुंचा तो……उन्होंने जीजा जी से कुछ बात किया और तुरंत …लखनऊ के पी.जी .आई. के डाक्टर छाबड़ा को रेफर कर दिया और कहा कि …हो सके तो कल ही दिखाइये.डा.साहब ने केवल ..ब्रेन ट्यूमर ..बताया.दूसरे दिन ही हम लोग लखनऊ पहुँच गये.संयोग से डा.छाबड़ा उसी दिन विदेश से लौटे थे,हम लोग आशान्वित हो गये कि…भाग्य अच्छा है,लगता है कि अब…बड़का चाचा ठीक हो जायेंगे.डा.छाबड़ा ..ने देखा और उसी दिन ….एम.आर.आई. करने को कहा.उनके अनुसार जब रिपोर्ट उसी दिन उन्हें दिखाया गया ,तो उन्होंने ,पिता जी को बाहर बैठाने को कहा और जो बाते उन्होंने अंग्रेजी में कहा उसको हिंदी में प्रस्तुत करना उचित होगा….डा.साहब ने छूटते ही पूछा …”.इनके कितने बेटे हैं?हमने बताया…चार I.डा.ने कहा……जाइये अपने पिता जी की सेवा करिए.मैंने अपने को सँभालते हुए पूछा…डा.साहब!…इन्हे हुआ क्या है,क्या आपरेशन या अन्य इलाज़ नहीं है?डा. छाबड़ा ने कहा—‘इन्हें ब्रेन ट्यूमर है जो कैंसरस है और चौथे स्टेज में है. इनका जीवन अधिकतम दो माह का है.आपरेशन से जीवन-अवधि नहीं बढ़ेगी.हाँ,..जीवन-गुणात्मकता बढ़ सकती है,लेकिन अधिक चांस है कि…यह अंधे हो जांय या लकवा-ग्रस्त हो जांय.’..लेकिन डा.साहब ! इनकी दिनचर्या इतनी नियमित थी,कभी दर्द या बुखार तक की शिकायत नहीं किया इन्होने और अचानक !…इतनी बड़ी बीमारी? हमें इलाज का अवसर भी नहीं मिला!डा.साहब ने कहा …’६० वर्ष के बाद इसमें दर्द नहीं महसूस नहीं होता .केवल वही हिस्सा प्रभावित होता है,जिसके नियंत्रण-विन्दु पर इसका दबाव पड़ता है.इसलिए आप लोग इनकी भरपूर सेवा करें.यदि कोई आवश्यकता पड़े तो वाराणसी में ही…..फलां डाक्टर को दिखा सकते हैं…….और हाँ! केवल दो माह का समय है ,इनके पास.

डा.साहब की बाते सुनकर हमारे पास आँसू के सिवाय कुछ नहीं था.कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि…चाचा को क्या और कैसे बताया जाय?अभी उन्हें सेवा-निवृत्त हुए सात साल ही हुए थे.जब उनके आराम के दिन आये ,तो वे हमें छोड़ कर जा रहे हैं..बता नहीं सकते कि ……हमारे दिल पर क्या गुजर रही थी.यह सब इतना जल्दी-जल्दी हो रहा था कि…अचानक बाहर आते ही…..उनसे सामना हो गया और उनके पूछे बिना ..मैंने उन्हें बता दिया…….’डा.साहब ने कहा कि…ट्यूमर है.ठीक हो जायगा.’लेकिन पिता जी ने हमारे चेहरे को पढ़ लिया था,उनकी ख़ामोशी …सब कुछ बयाँ कर रही थी.हम लोग सम्हलते हुए…..उन्हें लेकर २६ नवम्बर १९९३ को वापस आ गये.मन नहीं माना….तो कुछ दिन बाद …वाराणसी के कुछ अन्य चिकित्सकों को भी दिखाया.सब ने ..वही दुहराया.लेकिन एक चिकित्सक.ने …उनके सामने ही…..अंग्रेजी में कहना शुरू किया.मैं तुरंत उन्हें लेकर बाहर आ गया.लेकिन जो कुछ उन्होंने सुन लिया था…..उन्हें समझते देर नहीं लगी.और मन ही मन चिंतित रहने लगे.अम्मा …जब उनके पास रहती ….तो उन्हें देख कर भावुक हो जाते थे. एक दिन अपनी रिपोर्ट देखने की जिद करने लगे तो…मेडिकल-टर्म्स होने के कारण….उन्हें देना पड़ा.लेकिन शायद उन्हें …समझ में आ गया.वह देवरिया जाने की जिद कर रहे थे,लेकिन हम लोग सोच रहे थे कि…अंतिम दिनों में .’काशी’ छोड़ कर कहीं न जाय.धीरे-धीरे रिश्तेदार आने-जाने लगे.अम्मा को कुछ भी नहीं बताया गया था.

सबसे बड़ी दिक्कत यह थी कि …..अम्मा के साथ उनकी कोई फोटो हमारे पास नहीं थी.बड़ी मुश्किल से पास के स्टूडियो उन्हें अकेले भेजा गया.फिर अम्मा को भी भेजा गया.तब जा के उन लोगों की साथ की फोटो हमें मिली.इसके एक सप्ताह बाद ,२६ जनवरी ९४ को वह बिस्तर पर पड़े .दर्द बढ़ता जा रहा था.कोई दवा असर नहीं कर रही थी.,रात होते-होते वह ..’कोमा’..में चले गये.परिवार के सभी सदस्य और रिश्तेदार आ गये.डा.छाबड़ा …की एक-एक बात याद आने लगी.अंततः ..वह समय भी आ गया ,जब अम्मा को बताना ही पड़ा.क्योंकि ….उपस्थित चिकित्स्कों ने बता दिया कि……अब इनके पास….आधे घंटे का समय भी नहीं है.सभी भाई-बन्धु और परिजन पास में ही बैठे थे.अम्मा का रो-रो कर बुरा हाल था.सबके सामने ही ….२८ जनवरी १९९४ को ..उन्होँने अंतिम साँस लिया …और…..बड़का चाचा … हमें छोड़ कर चले गये!!!! लगता है कि ….आज भी वह हमारे आस-पास ही हैं ….और उनके आशीर्वाद से ही…..हम सभी लोग आगे बढ़ रहे हैं….और…फल-फूल रहे हैं.कैसे भूल सकते हैं हम…..बड़का चाचा को.

जय हिन्द! जय भारत !!

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