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आरक्षण !…परमो धर्मः!! (जागरण जंक्शन फोरम)

AAKARSHAN
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आखिर ,समर्थको द्वारा ,प्रोन्नति में आरक्षण की लड़ाई में…. फ़तह के राह …….की आधी दूरी तय की जा चुकी,और नेता रुपी …भगवानों ने चाहा ……तो दिल्ली दूर नहीं रह जाएगी…….वोट के लिए ,कुछ भी चलेगा.देश के विकास के लिए इतनी जागरूकता …..शायद ही कभी दिखाई पड़ी हो.जहाँ तक मुझे याद है …..१९७७ के बाद सभी नेताओं में इतनी एकता कभी नहीं देखी गयी.यह बात और है कि उस समय …..कांग्रेस (आई) को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए ,ये सभी एकजुट हुए थे ,और इस समय कांग्रेस के ,प्रोन्नति में आरक्षण,के प्रस्ताव के समर्थन में, या यूँ कहें कि …..माननीय सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को उखाड़ फेंकने के लिए.दूसरे शब्दों में यह भी कहा जा सकता है कि माननीय उच्च या सर्वोच्च न्यायालयों को यह समझाने के लिए कि उनकी …हदें कहाँ तक है?क्या ऐसी एकजुटता आप ने कभी देखी है?कृपया मुझे बताएं या यूँ कहें कि मुझे याद दिलाएं.
जहाँ तक आरक्षण का प्रश्न है ,वह कोई नया नहीं है.इसमें राज्य सरकारों की मन-मानी हमेशा से ही चलती आ रही है.कोई डंके की चोट पर ,कोई अनुसूचित -जाति या जन -जाति के वोट पर.कोई मुस्लिमों को रिझाने के लिए तो कोई सत्ता बचाने के लिए.कभी-कभी,भूले-भटके,… ईसाईयों के लिए भी.एक बात तो सराहनीय रही है कि कम से कम ….आरक्षण के मामले में …..न तो भाजपा साम्प्रदायिक रहती है और न ही कोई पार्टी गैर-साम्प्रदायिक.इसे आप …….अनेकता में एकता का प्रतीक भी कह सकते हैं.ऐसा नहीं है कि ….समाजवादी -पार्टी ने इस विधेयक का विरोध यूँ ही किया है.कम से कम मुलायम सिंह जी ,ऐसे हलके नेता नहीं हैं,जो दूर की सोचे बिना ही इसका विरोध करें.यह बात तो आप जान ही लीजिये कि …..आज की राजनीतिक हस्तियों में मुलायम सिंह जी से ज्यादा ……राजनैतिक -गणितज्ञ ….कोई नहीं है.जरूर उनके द्वारा २०१४ सामने रहा होगा.लाभ-हानि का जो खाका ,उनके सामने था,उसमे उन्हें …..७८% दिखाई दे रहा था.सपा के प्रवक्ताओं ने ….संकेत….भी दे दिए कि …२२%को खुश करने के लिए ७८%की क़ुरबानी नहीं दी जा सकती.उन्होंने प्रोन्नति में पिछड़े-वर्गों एवं मुसलमानों को भी आरक्षण देने की तरफ इशारा भी किया.आप भी गणित के जानकार हैं.गुणा-भाग कर लीजिये.खैर! जो भी है,नेतागिरी करनी है,तो सत्ता की ओर दृष्टि लगानी ही पड़ती है और जब किसी नेता की दृष्टि ,सत्ता की ओर रहती है तो उसे सिर्फ….मछली की आँख (प्रधान-मंत्री या मुख्य-मंत्री की कुर्सी)दिखाई पड़ती है,अन्यथा निशाना चूक जाने पर…..अगले पांच साल या अगले चुनाव-तक की लम्बी और कष्ट-दायीप्रतीक्षा करनी पड़ती है,वह भी यदि ….यमराज की दृष्टि से बचे तो.इस समय किसी दल के पास विकास का कोई मुद्दा नहीं है,तो आरक्षण के समर्थन और विरोध के मुद्दे को जीवित रखने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है.खैर! आरक्षण तो …उस अनंत -कथा की तरह है ,जो राज-तंत्र के आदि-काल से चला आ रहा है,और लोक-तंत्र में अनंत-काल तक चलता रहेगा.
यदि आरक्षण के इतिहास पर ध्यान दे तो यह आज़ादी के पहले भी किसी न किसी रूप में था.वैदिक -काल में वर्ण और व्यवसाय के आधार पर समाज में भेद था.कालांतर में इसने जाति का रूप धारण कर लिया.
भारत में सर्व-प्रथम ,अंग्रेजों ने ,इसे …विवाद की जड़ बनाया.समाज या वर्ग को बांटो……… और राज करो, इसका मूल आधार, यही था.कुछ सम्प्रदायों को सुरक्षा के नाम पर प्रतिबन्ध के रूप में उसी प्रकार लागू किया गया,जैसे मुगलों ने हिन्दू व्यापारियों पर …जाजिया-टैक्स लगाया था.आज़ादी के पहले १८८२ में ज्योतिबा राव फुले ने …समान एवं अनिवार्य शिक्षा तथा आरक्षण की वकालत किया .इसे १९०१ में इसे कोल्हापुर(महाराष्ट्र ) के राजा ने लागू किया .१९०२ में छत्रपति शाहू जी महाराज ने गैर-ब्राम्हणों के लिए ५०%का आरक्षण लागू करने की बात कही. १९०८ में अंग्रेजों ने कुछ जातियों के लिए लागू करके समाज को बाँटने का कार्य किया.आज़ादी के बाद हमारे संविधान निर्माताओं ने,आर्थिक व सामाजिक रूप सेपिछड़े वर्गों(सम्प्रदाय नहीं) के लिए केवल दस वर्षों के लिए लागू किया.लेकिन इसे बार -बार बढाया जाता रहा .
धीरे-धीरे इसे जाति की चादर ओढ़ा दिया गया,और आज़ादी के बाद जब हमारे नेताओं को इसका मज़ा मिलने लगा तो…मानो उनकी मुरादें ही पूरी हो गयीं.उनके संज्ञान में जब आया कि …..जैसे कोई संयुक्त परिवार टूटने लगता है ,तो उसका कोई अंत नहीं होता है ,तो समाज के टूटने का तो कोई अंत ही नहीं होगा.निःसंदेह! आर्थिक रूप सेऔर सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता थी,लेकिन इसे कुछ जाति-विशेष के साथ ,हमेशा-हमेशा के लिए,जोड़कर समाज व राष्ट्र का हित नहीं ,अहित किया जा रहा है.धीरे-धीरे ,जाति को लोग भूलने लगे थे,लेकिन समय-समय पर इस मुद्दे को उछाल कर ,नेता अपना हित साधने के लिए ,उन्हें एहसास दिलाते रहते हैं कि…..तुम जो थे वही आज भी हो,और आगे भी वही रहोगे.चाहे कांग्रेस हो या जनता पार्टी ,कम्युनिस्ट हों या समाजवादी दल ,तथा -कथित साम्प्रदायिक दल हों या तथा -कथित धर्म -निरपेक्ष -दल ,सभी ने इसको वोट के लिए भुनाने का जुगत लगाया . संविधान पर संविधान संशोधन होते रहे ,और माननीय न्यायालयों द्वारा उसे रद्द किया जाता रहा ,क्योंकि जो भी संशोधन हुए वह संविधान की मंशा के विपरीत पाए गए.
मुख्य -विषय यह है कि…. आखिर इसका कोई अंत है या नहीं?क्या इससे देश का भला होने वाला है?सरकारें क्या यह चाहती हैं कि …केवल जाति के आधार पर ,योग्यके ऊपर अयोग्य को प्रोन्नति देकर ,योग्यता को पंगु कर दिया जाय?फिर कुंठा से ग्रस्त होकर वही योग्यता निराशा का कारण बन जाये?क्या फिर योग्य सवर्णों /युवकों द्वारा अपने जीवन की बलि नहीं दी जाएगी?क्या सरकार यह सोचती है या यह मान लेती है कि,जाति के आधार पर चुने गए लोग …..हमेशा अयोग्य ही रहते हैं और यदि उन्हें ….आरक्षण देकर प्रोन्नत नहीं किया गया तो वे अपनी योग्यता से कोई प्रोन्नति नहीं पा सकते?क्या संविधान के निर्माताओं या डा.अम्बेडकर के दिमाग में यह बात थी,कि बिना आरक्षण की वैसाखी के ,इन जातियों के लोग आगे बढ़ ही नहीं सकते?इन्हें मुख्य-धारा में लाने का केवल यही रास्ता बचा है?क्या इस वर्ग के लोग आरक्षण के सहारे ही आगे बढ़ने में अपने को हेय- दृष्टि से नहीं देखेंगे?क्या इन्हें हर-स्तर पर यह एहसास दिलाना आवश्यक है कि वह आरक्षित-श्रेणी में हमेशा से हैं और हमेशा रहेंगे?जिस डा.अम्बेडकर की दुहाई दी जाती है,क्या वह स्वयं आरक्षण के बलबूते ही आगे बढे थे,और आज अमर हो गए?क्या इससे समाज में कटुता और नहीं बढ़ेगी?यह सब ऐसे प्रश्न हैं ,जिसका हल सभी वर्गों के प्रबुद्ध लोगों को एक साथ बैठ कर सोचना होगा.अगर इनके पूर्वजों पर अत्याचार हुए हैं और उसे ,तथा-कथित हितैषियों द्वारा ,गलत माना जा रहा है,तो आज शासक-वर्ग द्वारा ….केवल सवर्ण होने के नाते ,योग्यता पर किया जाने वाला प्रहार भला कैसे सही हो सकता है?
सबसे दुःख का विषय यह है कि …देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों की अनदेखी करते हुए,बिना उन पर विचार किये हुए,और उसके अनुरूप कार्यवाही किये बिना केवल राज्य-सभा और लोक-सभा में ,संशोधन विधेयक को ,संख्या के बल पर पारित करा कर क्या सरकार सर्वोच्च न्यायालय को छोटा दिखाना चाहती है?यदि यही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं है,जब एक स्व.और वरिष्ठ समाजवादी नेता की वह सोच चरितार्थ होने में विलम्ब नहीं है …कि….इस देश में …. जिलाधिकारी के पद पर…. विधायक ,आयुक्त के पद पर …सांसद,की तैनाती होनी चाहिए.बल्कि उससे भी आगे ….आज के नेताओं की सोच यदि बढ़ जाये तो वह दिन भी दूर नहीं होगा जब …..उच्च -न्यायालय के मुख्य-न्यायाधीश के पद पर ..सत्ता-पक्ष के राज्य का अध्यक्ष और उच्चतम न्यायालय के मुख्य-न्यायाधीश के पद पर केंद्र में सत्ता-पक्ष के राष्ट्रीय- अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी जाय और इसमें भी ‘आरक्षण’ लागू किया जाय.इसके लिए केवल एक संविधान -संशोधन की आवश्यकता होगी,और इसे संख्या-बल से पारित कराया जा सकता है,क्योंकि हर पार्टी वाला सोचेगा की शायद अगला नंबर उन्ही की पार्टी का हो!अब तो ….अहिंसा ..परमो धर्मः के स्थान पर….”आरक्षण! परमो धर्मः!! ही कहना उचित लगता है. आप का क्या सोचना है?
जय हिन्द ! जय भारत!! ‘शुभ नव-वर्ष’

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