Menu
blogid : 7034 postid : 289

आवाज़ दो! ….हम!!.. एक हैं!!!….

AAKARSHAN
AAKARSHAN
  • 53 Posts
  • 743 Comments

किसने सोचा था कि…..एक दिन ..,’.मियां की जूती… मियां का सर ‘…..वाली कहावत चरितार्थ होने वाली है.काश! यदि यह पता होता कि …….संसद द्वारा पास किया गया कानून ….एक दिन उनके ही विरुद्ध प्रयोग किया जायेगा तो…….सूचना के अधिकार 2005 …का बिल संसद में पास ही नहीं होने दिया जाता.यह तो बनाया गया था कि ….जनता के जागरूक लोग इसी में उलझे रहें..कम से कम …..एक वर्ष तो यह समझने में लग जायगा कि …..आखिर यह क्या बला है?…किसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जाएगा?..कैसे इसका प्रयोग किया जाएगा ? कहाँ प्रार्थना-पत्र देना होगा? कैसे और कब …इसका उत्तर मिलेगा?यदि 30 दिन में भी ……उत्तर नहीं मिला तो?….. फिर किसका दरवाजा खटखटाएंगे?…फिर क्या ? इसके बाद क्या? और फिर उसके बाद क्या?जनता का ध्यान ….मंहगाई और राज-नेताओं के भ्रष्टाचार …की ओर से हटाने और …..सरकारी अधिकारियों की कारस्तानियों को उजागर करने ….में उलझाने की यह सोच …उल्टा उन्हीं के गले की हड्डी बन जायेगी , यह बात यदि ..जरा भी ध्यान में आती ,तो कम से कम …….धारा 2 .एच ..तो हटा ही दिया होता..या कम से कम ….सांसदों ,विधायकों के साथ …राजनीतिक पार्टियों को तो …..अपवाद की श्रेणी में या विशेष अधिकार के तहत ….इसकी पंहुच के बाहर तो कर ही दिया होता! और विरोधी पार्टियों के भी …दुलारे बन गए होते और उनकी वाह-वाही भी लूट लेते.
केन्द्रीय सूचना आयोग के 53 पेज के एक फैसले से सभी राजनैतिक पार्टियाँ सकते में आ गयी हैं.सभी बड़ी पार्टी के नेता इससे पल्ला झाड़ने लगे हैं. आखिर ऐसा क्या कह दिया .केन्द्रीय .सूचना आयोग के तीन सदस्यों ने, अपने निर्णय में?क्या जरूरत थी इस तरह के निर्णय की ? क्या आधार था,इस निर्णय का?जिसने राजनैतिक पार्टियों को अपने किये पर पछतावा हो रहा है?सूचना आयोग ने …अपने निर्णय में यह कह दिया है कि ….राजनैतिक-पार्टियाँ एक सार्वजनिक -प्राधिकरण हैं,जो सरकार से किसी न किसी रूप में लाभ प्राप्त करती हैं.इसलिए ,सूचना के अधिकार कानून के अंतर्गत,मांगे जाने पर ,.इन्हें सूचना देना होगा……होता यह है कि ..इन्हें आयकर अधिनियम की धरा 13 -क के अंतर्गत पूर्ण रूप से छूट मिलती है,इनके कार्यालयों के लिए सरकार द्वारा सस्ते दरों पर भवन उपलब्ध कराये जाते हैं ,सस्ते दरों पर या निःशुल्क सभा करने के लिए स्थान उपलब्ध कराये जाते हैं,चुनाव के दौरान इन्हें मुफ्त में संचार-माध्यमों,आकाश-वाणी और दूरदर्शन , का उपयोग करने तथा मुफ्त में पब्लिसिटी करने की सुविधा दी जाती है.आयोग ने यह भी कह दिया है कि सभी राजनैतिक दल …छः सप्ताह में जन-सूचना-अधिकारियों को नामित कर दें और साथ ही धारा-4 के अंतर्गत स्वैच्छिक घोषणा का भी पालन करें.
यद्यपि यह आदेश ,देश की केवल छह पार्टियों के सन्दर्भ में है,जो दो सूचना- सक्रिय जनों की याचिका में उल्लिखित हैं.इनमे कांग्रेस,भाजपा,एनसीपी,सीपीआई ,सीपीएम और बसपा शामिल है,लेकिन वे सभी राष्ट्रीय दल जो ऐसे लाभ प्राप्त करते हैं ,भी इसके दायरे में आ सकते हैं.अभी हाल तक आर.टी.आई.का ढिंढोरा पीटने वाली ,कांग्रेस तथा कुछ अन्य दलों ने इसके अंतर्गत आने से मना कर दिया है.इसे लोक-तंत्र पर कुठाराघात की संज्ञा दी गयी है.टी एम सी के एक नेता तथा कुछ अन्य दलों के नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया कि …दल कितने -कितने लोगों को सूचना देंगे?लाखों लोगों को कहाँ तक सूचना देते रहेंगे?…..ना बाबा …ना! …वैसे भी आयकर-विभाग और चुनाव आयोग को सूचना दी जाती है,लोग वहां से प्राप्त कर सकते हैं.अरुण जेटली ने इसे गलत नहीं बताया है,ममता बनर्जी ने इसे सही बताया है.आम आदमी पार्टी तो बहुत खुश है, लेकिन अभी बसपा ने चुप्पी साध रक्खी है.कम्युनिस्ट -पार्टी (सभी) ने इसका विरोध किया है,जदयु आदि ने तो खुल कर बोला ही नहीं.मुलायम सिंह जरूर कुछ बुद-बुदाये.सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो यह है कि ,व्यापारियों और कंपनियों के ऊपर छत्तीस विभागों में जबाबदेही , एवं निजी विभागों से प्रतिमाह सूचना देने की बाध्यता थोपने वाले ,आज क्यों तिलमिला रहे हैं?.सरकारी विभागों पर ,काम से ज्यादा विवरणों के लिए बाध्य करने के बाद भी ,हर माह हजारों की संख्या में ,सूचना के अधिकार के अंतर्गत मांगे जाने वाली ,सूचना देने की बाध्यता थोपने वाले खुद क्यों घबड़ा रहे हैं? ये नेता क्या चाहते हैं ?सांसद और विधायक के विशेषधिकार की आड़ लेकर कब-तक ये जनता के साथ धोखा-धड़ी करते रहेंगे?कब-तक अपने काले- धनों को …चंदा, दिखाकर ये नेता धन-उगाही के , अपने काले-कारनामों पर पर्दा डालने का प्रयास करेंगे?जनता के प्रति सीधे जिम्मेदारी से ये कब-तक बचते रहेंगे?राजनीति की आड़ में अपने घिनौने रूप को कब-तक जनता के सामने आने से छुपायेंगे ?अब समय आ गया है कि जनता इनको नंगा कर सकेगी.
जो भी हो इन , दलों और नेताओं के ऊपर कोई असर नहीं होने वाला है.ये अपने को सबसे ऊपर मानने के आदी हो गए हैं.तभी तो एक दूसरे की ओर आस भरी नज़रों से देख रहे हैं और इस जुगाड़ में लग गए हैं कि कैसे सूचना आयोग को उनकी सीमा का बोध करा दिया जाय?यह कोई कठिन भी नहीं है ,क्योंकि पहले भी ऐसे कई मुद्दे आ चुके हैं,जिस पर ये सभी एक दूसरे से गले मिल जाते हैं और जनता और कानून को धता बताते हैं.चाहे आरक्षण का मुद्दा हो ,सांसदों और विधायकों के ,वेतन बढाने का बिल हो या क्रीमी-लेयर की सीमा को अजगर की तरह फ़ैलाने की बात हो ,इनमे हमेशा एका दिखाई पड़ती है और सभी दल के लोग ….एक ही प्लेटफार्म पर खड़े होकर ….शान से नारा लगते हैं ….

.आवाज़ दो!….हम!!… एक हैं!!!

जय हिन्द ! जय भारत!!

Read Comments

    Post a comment