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एफ.डी.आई ….बनाम……सी.बी.आई.!

AAKARSHAN
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एफ.डी.आई.!!…. अगर आई ….तो सारे भारत के खुदरा व्यापारी बर्बाद हो जायेंगे ,कोई कहता है कि ..एफ.डी. आई. के आने से …भारत में विदेशी मुद्रा आयेगी और राष्ट्रिय-मुद्रा कोष मज़बूत होने के साथ ही साथ नौकरियां भी बढेंगी,कोई कुछ…और कोई…कुछ….पक्ष और विपक्ष में बहस वर्षों से जारी है और आगे भी जारी रहेगी,जब तक कि विदेशी व्यापार आ न जांय और उनका प्रभाव देख न लिया जाय.केवल लोक -सभा और राज्य-सभा में विपक्ष का …प्रस्ताव गिर जाने से इस बहस पर विराम नहीं लगने वाला है.वैसे सरकार ने इसे अधिसूचना से पहले ही लागू कर दिया है.संसद में तो उसे औपचारिक मान्यता ही मिलना शेष था,सो वह भी मिल गया . सभी चैनलों ने एवं समाचार-पत्रों. ने इसे मुख्यता से प्रसारित अथवा प्रकाशित किया ,और करना भी चाहिए.लेकिन कभी-कभी कुछ समाचार अगल-बगल या साथ-साथ छप जाते हैं ,जो अनायास ही ध्यान आकर्षित कर लेते हैं.इसके मायने भी हो सकते हैं और नहीं भी.यह तो संपादन की कलात्मकता भी हो सकती और स्थान का समायोजन भी. लेकिन हमारे प्रिय समाचार पात्र ….दैनिक-जागरण में जो समाचार आज के मुख्य-पृष्ठ पर छपा है,….विदेशी दुकान का रास्ता हुआ साफ़ …मालगाड़ी पलटी पंद्रह वैगन राख(ठीक बगल में छपा).देखा जाय तो यह विरोधियों की मंशा भी ज़ाहिर करता है ,जिसे सम्पादन-मंडल का समर्थन मिलता प्रतीत होता है.यह मेरा सोचना है.हो सकता है आप की राय भिन्न हो.जाकी रही भावना जैसी …..उसने सोची ठीक वैसी.
खैर! यह तो रही छपने और सोचने की बात.मुख्य- मुद्दा यह नहीं है.हम इस समय ऐसे पड़ाव पर आ पहुंचे है जहाँ हर भारतीय नागरिक को सोचना ही पड़ेगा कि क्या सरकार का यह कदम सही है?क्या इससे वास्तव में देश का भला होगा या विदेशियों का?क्या इसका लाभ किसानों और छोटे उद्यमियों को मिलेगा?कहीं हम ..ईस्ट-इंडिया कंपनी की तरह आर्थिक-गुलामी में तो नहीं जकड़े जायेंगे?कहीं कांग्रेस की यह चाल देश के लिए उल्टा तो नहीं पड़ जाएगी?सरकार के समर्थकों का कहना है कि इससे विदेशी मुद्रा आयेगी,रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे,किसानों को और जनता को फायदा होगा,बिचौलिए समाप्त होने से दाम कम होंगे,……कहीं यह मृग-मरीचिका तो नहीं है?विरोधियों का यह कहना कि ,…छोटे बिचौलिए हटेंगे तो सुपर-बिचौलिए आ जायेंगे,विदेशी-मुद्रा की उम्मीद मिथ्या है,देसी खुदरा व्यापारी और उनके परिवार भूखे मर जायेंगे ,क्या यह केवल विरोध के लिए जनमत बटोरने की बात तो नहीं है? कोई यह आरोप लगा रहा है कि बसपा और सपा सी.बी.आई.के डर से समर्थन कर रही है तो कोई उन्हें …दोगली राजनीति करने का आरोप लगा रहा है.हमारे जन- नेता आज इतने गिर गए हैं कि ,व्यक्तिगत रूप से अपशब्दों का प्रयोग करने से उन्हें कोई परहेज नहीं है.भाजपा की शालीन माने जानेवाली नेता ने संसद में यह खुलेआम आरोप लगाया कि…..संसद पर सी.बी.आई. भारी पड़ गयी……खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे,.की भाषा का प्रयोग उनके लिए किया जाने लगा.जबाब में बसपा की नेता …..लोमड़ी की अंगूर खट्टे वाली कहानी , राज्य-सभा में सुनाने से नहीं चूकीं.आखिर यह सब क्या हो रहा है.इससे तो केवल मुख्य -विषय से ध्यान हटाने की कांग्रेस की चाल सफल होती दिख रही है.जहाँ तक सी.बी.आई. के भय की बात है, वह तो आज की गिरी हुई राजनीति का —केंद्र-विन्दु..ही बन गया है.हर गलत कम करने वाला व्यक्ति इससे भय खाता रहा है और खाता रहेगा, और सत्ता-पक्ष ,चाहे जो भी हो,इसका फायदा उठाता रहेगा. जो भी दल सत्ता में आता है वह यही सोचता है ……प्यार और युद्ध (राजनीति) में सब कुछ ज़ायज है.जहाँ तक मनमोहन सिंह जी की बात है ,वह देश के प्रधान-मंत्री होने के साथ ही ,…अर्थ-शास्त्री भी हैं और रिजर्व-बैंक के गवर्नर भी रह चुके हैं,ऐसे व्यक्ति से देश के विरोध में ,कोई भी कदम उठाये जाने की बात गले से नहीं उतरती.फिर भी यदि,किसी के दबाव में,चाहे वह देशी हो या विदेशी,आकर और बिना सोचे-समझे यह कदम उठाया गया है तो वह ..निंदनीय होगा.
एफ.डी.आई. के सम्बन्ध में अब तक जो नियम और शर्ते सामने आईं हैं ,यदि उसका पालन कठोरता से किया जाय तो,भय खाने की कोई बात नहीं है.आज इस मुकाम पर पहुँचने से पहले लगभग दो वर्षों की कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है.यदि देश के अधिकांश राज्यों ,केंद्र-शासित राज्यों और सांसदों ने इसका समर्थन किया है,तो हम केवल ,विरोध करने के लिए विरोध नहीं कर सकते.सरकार ने सितम्बर में जो अधिसूचना जारी किया है उसके अनुसार,दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरों में ही यह इज़ाजत दी गयी है.कम से कम दस करोड़ डालर के निवेश का आधा हिस्सा ,निर्माण,वितरण,क्वालिटी-कंट्रोल,भण्डारण एवं इन्फ्रा-स्ट्रक्चर आदि पर खर्च करना होगा.इसके अतिरिक्त देश की खरीद का लगभग एक तिहाई हिस्सा लघु एवं मध्यम इकाइयों से करना होगा.यदि इस पर कड़ी निगरानी रखी जाय तो ,मेरे विचार से कोई बुराई नहीं है.यह प्रश्न उठाया जा रहा है कि ,पहले तो वह सस्ता माल बेचेगे और बाद में ,मनमाना वसूलेंगे ,तो आज भी देश में कमोवेश वही स्थिति है.बड़े ब्रांड -नाम वाले व्यापारी आज भी छोटी इकाइयों को निगलने की ताक में हमेशा लगे रहते हैं,और सफल भी हो रहे हैं .लेकिन यदि हमें अच्छा और सस्ता माल देशी व्यापारी देता है तो हमारी कोई बाध्यता तो है नहीं, विदेशी दुकानों पर जाने की.लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि, देशी के नाम पर यहाँ की जनता को ,खास कर मध्यम-वर्गीय,को लूटने का अधिकार न तो यहाँ के बड़े,छोटे या खोमचे-वालों को मिलना चाहिए और न ही किसी विदेशी को. यह विचारणीय है,कि जहाँ माल या बिग-बाज़ार नहीं है,क्या वहां की जनता को,सस्ता और अच्छा माल मिल रहा है?आज देश के छोटे और मझोले व्यापारी एम .आर .पी . से कम दाम पर माल नहीं बेचते ,और बिल भी नहीं देते ,जब कि इसमें टैक्स आदि शामिल रहता है.बड़े व्यापारी/उद्योगपति भी कम नहीं हैं.तीस रूपये के लागत वाले उत्पादन की एम.आर.पी. एक सौ रूपये छापते हैं.असली डर ऐसे टैक्स -चोरों को है,कि उनका अनाप -शनाप मुनाफा मारा जायेगा .आगे आप की मर्ज़ी .
जय हिन्द ! जय भारत!!

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