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‘छीछालेदर’ ! …..’अराजक’ या ‘अरविन्द’ ”राजनीतिक-आलोचना” (कांटेस्ट)

AAKARSHAN
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जब भी…. ‘ बिन मौसम की बरसात ‘ होती है ,सड़कों पर गलियों में …..’छीछालेदर’ हो ही जाती है.यदि यह ,हमारी राजधानी दिल्ली में होती है तो….फिर पूछिए मत!….त्रिलोकपुरी हो या दल्लूपुरा,….कोंडली हो या सदर बाज़ार ,ग़ाज़ीपुर मंडी , आज़ादपुर या सब्ज़ी- मण्डी की तो पूछिए ही मत.लेकिन अब की जो बारिश हाल में हुई है …..उसमे ‘ कौशाम्बी ‘ ,जो दिल्ली की ग़ाज़ीपुर मण्डी के पास ही है,से लेकर सचिवालय होते हुए ….’.रेल-भवन ‘ और ‘ संसद ‘ तक जो ‘छीछालेदर’ मची कि….पूरे दिल्ली में कोहराम मच गया.दर-असल यह ‘बिन बादल की बरसात ‘ थी.,यह जब भी होती है लोग समझ ही नहीं पाते कि….यह कहाँ से ,कैसे और क्यों हुई?लोग सोचने को विवश हो जाते हैं कि …इससे कैसे बचा जाय ,कहाँ और कब जाया जाय?जी हाँ!….. आप समझ गए होंगे .हुआ यह कि दिल्ली के चुनाव परिणाम …ने ‘आप ‘की झोली में ‘अप्रत्याशित ‘ सीटें डाल दी….यह किसी को उम्मीद नहीं थी कि…. दिल्ली में ऐसा कुछ हो हो सकता है.स्वयं उन्हें भी नहीं.सारे अनुमान ……बेमानी….. साबित हुए.चैनल वाले तो पिछले दो चुनावों से ……कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर रहे थे और भाजपा को सत्ता में बिठा रहे थे.लेकिन …”.ईश्वर जब देता है,तो,छप्पर फाड़ कर देता है.”यह सब ऐसे हो गया जैसे….बिन बादल बरसात .

जो भी हो ,एक बात तो स्पष्ट है..कि जनता पिछले पंद्रह वर्षों से…… एक ही चेहरे और अपूरित आश्वासनों से ऊब चुकी थी.आखिर कब-तक और कितने लोगों को ,,,आशा की ओस ..चटाते रहेंगे?जनता ने विकास के मुद्दे को दर-किनार करते हुए…..मंहगाई,.समस्या और उसके त्वरित-निदान का मुद्दा लिया.सभी-दलों के पुराने और कोरे आश्वासनों से ऊबन.और ऊहापोह की स्थिति में …एक नया प्रयोग किया जनता ने.लेकिन बहुमत के अभाव में और कुछ करने की चाह में ,कांग्रेस की बैशाखी का सहारा लेना पड़ा.जब सत्ता में आना है….तो ..कपिल सिब्बल…. को गले लगाना है.दूर से किसी भी खिलाड़ी.की कमी निकालना आसान होता है.आप ने देखा होगा…..जब किसी कार वाले से किसी साइकिल या पैदल चलनेवाले को धक्का लगता है…तो कार वाले का ही दोष माना जाता है और वहाँ बिना कोई कारण सुने या समझे ….कार वाले के विरोध में सैकड़ों लोग उपस्थित हो जाते हैं…समर्थकों की भीड़ से साइकिल वाला या पैदल वाला खुश हो जाता है ,वह भी उसी को दोषी ठहराता है ,जबकि गलती उसी की होती है.लेकिन जब उसे कार में चलने का अवसर मिलता है और वैसी यदि वैसी ही घटना होती है, तो वह अपनी गलती मानने को तैयार नहीं होता और साइकिल वाले को दोषी ठहराता है या अपने आगे या पीछे वाले को कोसता है.आप को भूला नहीं होगा कि….दिसंबर 2012 में दामिनी केस में शीला के बार-बार यह कहने पर कि …..दिल्ली पुलिस पर उनका अधिकार नहीं है तो कोई उनकी सुनने वाला नहीं था,,और उसका खामियाज़ा भी उन्हें भुगतना पड़ा.तब और अब की तुलना ‘आप’ स्वयं कार सकते हैं.

मेरा कहने का यह तात्पर्य है कि….केजरीवाल जन-सेवा में नये नहीं है.उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि ….क़ानून और उसके व्यवहारिकता में भारी अंतर होता है.जब वह आय-कर विभाग में आये होंगे तो ….आय-कर क़ानून को पढ़ने पर ऐसा लगा होगा कि ….वह सर्व-शक्तिमान हैं.जिसे चाहें वह आयकर की…धाराओं में लपेट कर चित कर सकते हैं,लेकिन जब व्यवहारिक पक्ष आया होगा ,तो कितना असहाय महसूस किये होंगे और इसी घुटन के कारण और कुछ न कर पाने की स्थिति में …उससे वैराग्य लेने का विचार किये होंगे.आज जब सब कुछ उनके पास हैं,और वह ….शीला को चित कर के सत्तासीन हो गए हैं,तो अपने को कितना असहाय महसूस कर रहे हैं.अब स्थिति पलट गयी है.वह स्वयं दोषरोपण कर रहे हैं कि……पुलिस उनके अधिकार में नहीं है,और उनकी नहीं सुन रही है.हद तो तब हो गयी कि …..पुलिस वालों को निलम्बित करने के लिए उन्हें ..अल्टीमेटम देना पड़ा और नहीं तो उनके स्थानांतरण पर झुकना पड़ा.जब उनकी नहीं सुनी गयी…तो धरने पर बैठना पड़ा.कितना गिरना पड़ता है एक असहाय मुख्य-मंत्री को या एक उच्च पदस्थ व्यक्ति को.होना तो यह चाहिए था कि …..उन उद्दंड पुलिस अधिकारीयों के विरुद्ध कार्यवाई की संस्तुति करके ……पुलिस -व्यवस्था को उनके अधीन करने के लिए …दबाव बनाना चाहिए था.लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया.ऐसा नहीं है कि ….उन्होंने इसे बिना सोचे-समझे किया.

केजरीवाल ने ऐसा जान-बूझ कर और सोची समझी चाल के अंतर्गत किया.उन्हें यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि…..पुलिस व्यवस्था उनके अधीन नहीं हो सकती,क्योंकि इसके लिए बहुत सी कानूनी बाधाएं और औपचारिकताएं होंगी और यह इतना आसान भी नहीं होगा.चूँकि सत्ता के दलदल में वह फँस चुके हैं और लोक-सभा के चुनाव सामने है ,समय कम है और तेज़ भागना है,तो वह सारे हथकंडे अपनाना है. वह सब करना उनकी मज़बूरी हो गयी है….जो सत्ता में बने रहने और लोक – सभा में भारी सफलता के लिए कोई भी राजनीतिक दल करता है, अन्यथा वह धरने पर बाद में या अन्य किसी भी स्थान पर बैठ सकते थे.लेकिन ऐसा समय ,स्थान और अवसर चुनना था ताकि कम से कम समय में पूरे देश का ध्यान उनकी तरफ हो जाय .संसद नहीं पहुँच सकते थे,तो रेल-भवन के पास ही सही.वह सफल भी हो गए लेकिन इस बार उनकी बड़ी….छीछालेदर… हुई.जैसे थूक कर चाटना पड़ा हो.हर घंटे अपना बयान बदलते रहे.गणतंत्र को महत्व -हीन बताये,बाद में डर कर बयान बादल दिए .अनंत काल तक चलने वाला धरना दूसरे ही दिन…..उप-राज्य-पाल का पराठा खा कर तोडना पड़ा.गणतंत्र-दिवस को आम जनता में बैठने की बात से हट कर वी.आई.पी.लाबी में बैठे.आखिर क्या है यह सब?.वास्तविकता यह है कि वह …….कांग्रेसी-कूटनीति के जाल में फँस गए हैं.यह समर्थन कांग्रेस के गले की हड्डी कम …..’आप ‘के गले की ज्यादा बन गयी है.वह चाह कर भी इस्तीफा नहीं दे सकते और कांग्रेस जान-बूझ कर समर्थन वापस नहीं लेगी.अन्ना हज़ारे की सलाह न मान कर और कीचड़ में घुस कर कीचड़ साफ़ करने की चाह में वह खुद दल-दल में फंसते और असहाय नज़र आ रहे हैं.ऐसे में केवल एक ही रास्ता है …’धैर्य’ और ‘कछुए की चाल’.खरगोश की तरह भागने पर क्या अंज़ाम होगा वह जानते हैं?कांग्रेसियों और अन्य दलों की भी यही मंशा है.तभी तो ‘आप’कांग्रेसियों को धमका रहे हैं और वे दूर खड़े मुस्करा रहे हैं.पांच साल बाद भी चनाव होगा और ‘आप’ ने स्वयं कहा है कि…..आप के हाथ की जीवन -रेखा बहुत लम्बी है.

मुझे केवल यही कहना है कि दिल्ली की जनता के वादों को अगर आप पूरा करते हैं और पूरे देश में ‘आप’ के कार्यों को सराहा जायगा तो स्वयं ही जनता निर्णय लेगी.लेकिन केजरीवाल को संयम बरतना होगा.सोमनाथ भारती और विनोद बिन्नी जैसे असहजता पैदा करनेवालों के समर्थन के बजाय उनके पर कतरना होगा.पार्टी को साफ-सुथरा रखने के लिए नये और पुराने सदस्यों का परीक्षण करना होगा.उन्हें यह साबित करना होगा कि ….वह अन्य दलों के नेताओं की तरह कपटी,ढोंगी या पाखंडी नहीं हैं.अन्यथा उनका भी वही हश्र होगा ,जो उनके विरोधियों का हुआ है.उन्हें राष्ट्र-पति के ‘अराजक’ होने के इशारे को झुठलाना होगा. ‘आप’के आने से एक बात तो तय है कि…..सभी दलों के नेताओं ने …ढोंग ही सही …अपने भाषणों में लगाम दिया है,कांग्रेस ने भी …परिवर्तन किया है तो मोदी भी अब लिखित पर्ची का सहारा लेकर बोल रहे हैं.सबसे आश्चर्य तो तब हुआ जब…..हमेशा लुंगी पहनने वाले चिदंबरम साहब….गणतंत्र -समारोह में ,सोनिया के बगल में,…ऊनी-पैंट और लम्बी-कोट पहने नज़र आये.मफलर से परहेज़ किए ….शायद ! केजरीवाल का …सिम्बल …होने के कारण.राहुल जनता की भी सलाह लेने लगे.जो भी हो,…इससे जनता का और देश का भला होगा.केज़रीवाल को यह साबित करना होगा कि……वह…कीचड़ के .”अरविन्द” हैं न कि ‘ केवल कीचड़’ ..

जय हिन्द! जय भारत!!

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