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भव्य रोदन-समारोह…….

AAKARSHAN
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पांच राज्यों के चुनाव-परिणाम सामने आ गए.शपथ-ग्रहण भी शुरू हो गए.स्वाभाविक है …कोई जीता, कोई हारा . ….चुनाव -परिणाम आते गए ..ख़ुशी की लहर से झूमते हुए भाजपा लोगों के,…. कदम … की गति धीमी पड़ने लगी…..सबकी नज़रें …छत्तीसगढ़ के परिणाम ..पर जब पड़ी तो ऐसा लगा कि….भाजपा तो गयी,लेकिन . ये क्या? ये तो आखिरी बाल पर …छक्का.भाजपाई फिर …से झूमने का प्रयास करते दिखे.दिल्ली में भी, ऐसा लगा कि भाजपा को सत्तासीन होने से कोई रोक नहीं सकता.लेकिन ….बुरा हो …उस सौतन ….’आप’..का…जिसने ,पंद्रह -वर्षों से,…सुहाग-रात का सपना सजोये….’दुल्हन’.के नज़रों के सामने ही…..ऐसा स्वांग रचा कि….सुहागरात के पहले …ही ….सब कुछ लुटता हुआ नज़र आने लगा.ऐसा लगा कि जैसे ….फूलों की सेज़..पर ..बबूल के कांटे..डाल दिए गए हों.ऐसी सेज़ ,..जिस पर सोने में भी डर….पता नहीं कब और कहाँ ….चुभ जाय? सुषमा जी उदास हो गयीं…..चारो प्रान्त में सरकार बनाने का ….ताल ठोकने वाले….राजनाथ जी मायूस हो गए.हर्ष-वर्धन जी…तो सेहरा बांधने से भी…डर गए.अंततः उन्होंने …बारातियों की कमी का रोना रोते हुए…..घुड़-चढ़ी…. से ही इंकार कर दिया. जरा सोचिये …उप-राज्यपाल जी .कब तक ..माला लिए खड़े रहेंगे….सो उन्होंने …दूसरी तलाश .शुरू कर दिया.आप स्वयं ..विवेकशील एवं अनुभवी हैं…अतः…पुनः…शुभ-अवसर ….की…प्रतीक्षा करें और ….आंसुओं को पोंछने में…सहयोग करें.

पहले भी ऐसे कई अवसर आये हैं,..जब ..घुड़-चढ़ी के पहले ..ही घोड़ी बिदक गयी हो या…सुहागरात का सपना सजोये हुए ….दूल्हा और दुल्हन ..के .विवाह के पहले कोई बाधा उत्पन्न होने के कारण…..सपने टूट गए हों ..और बिन-व्याहे ही बारात वापस हो गयी हो.लेकिन इस समय.. दुःख की घडी है.कांग्रेसियों के सपने ..चूर-चूर हो गए.मिजोरम ने अपने रूमाल …से आंसू पोंछने का प्रयास किया.लेकिन …आंसुओं के प्रवाह को रोक नहीं पाये.विवाह समारोह……रोदन समारोह में बदल चुका था. शीला जी को तो जैसे काठी मार गयी हो.उन्होंने अपने आंसुओं को छुपाने का पूरा प्रयास किया.शायद! … रोदन समारोह में आने के पहले .किसी कमरे में जाकर आंसुओं को निकाल आयी थी. राहुल बाबा की घिग्घी बंध गयी थी.उनके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे.तभी….माँ के दिल ने इसे भांप लिया और .माँ ने फुर्ती से आगे बढ़ कर माइक हाथ में ले लिया.होना भी चाहिए….हर माँ का यह फ़र्ज़ होता है कि दुःख की घड़ी में बेटे को ढाढस बंधाये.तभी ..ज्यों हि कुछ कहना शुरू किया …. माँ के आँखों से ….आंसू फूट पड़े और इतना ही कह सकी…’मंहगाई .को जनता ने दिल पर ले लिया…हम अपनी गलतियों को सुधारेंगे.अगले ..पी.एम. की शीघ्र घोषणा करेंगे’….इतना कहते ही…वह फफक कर रो पड़ीं…और फिर बेटे ने अपना फ़र्ज़ निभाया.आनन् -फानन में …उन्हें ..गिरने से पहले थाम लिया….चिदंबरम जी ने ….घोषणा को ध्यान से सुना …और अंदर ही अंदर ….मुस्कराये.तभी ….सबको एक जोर-जोर से रोने की आवाज़ ….आयी.लोग एक टक मनमोहन जी की ओर देखने लगे.लोगों को …सहसा विश्वास नहीं हुआ.इतनी जोर की आवाज़!!…पहले कभी नहीं ..सुनी थी.पहले तो लोग समझे कि…….कांग्रेस की हार से बहुत दुखी हैं …..लेकिन बाद में यह …समझ में आ गया….कि….घोषणा से …आहत हैं.माहौल ग़मगीन हो गया……सभी रोने लगे….होना भी चाहिए .महिलाओं के आंसू!…….शायद !..यूँ ही नहीं रोती महिलाएं……जनता को ध्यान रखना चाहिए…….हमारे देश में …राष्ट्रीय महिला आयोग ….मानवाधिकार आयोग से भी सशक्त है.

इस रोदन समारोह की भव्यता इससे भी बढ़ गयी कि……..जो लोग दिल्ली नहीं पहुँच सके ,वह….अपने प्रदेश में ही रोने लगे.मुलायम जी और अखिलेश जी भी साथ दिए.माया जी ….दूर-दर्शन पर रोती नज़र आयी.शरद जी और नितीश जी….अलग रोये. यह सिलसिला यहीं नहीं थमा.मोदी जी….हँसते -हँसते …यकायक रुक गए.रोये तो नहीं…..लेकिन ..केज़रीवाल को….मन ही मन….कोसते हुए बुदबुदाने लगे.सबसे ज्यादा दुखी तब हुए ….जब लोग …भाजपा की जीत का श्रेय उन्हें न देकर …मुख्य -मंत्रियों को देने लगे.वसुंधरा जी के वक्तव्य से कुछ प्रसन्न हुए थे कि…….अडवाणी जी के वक्तव्य से …आहत हो गए और रोने की मुद्रा में आ गए.
जो भी हो दिल्ली के चुनाव -परिणाम ने यह बता दिया कि…..न मोदी और न राहुल……न ही गुंडे और बदमाश…न हि..चोर-उचक्के और भ्रष्ट….जरूरत है तो सिर्फ …..जनता के दुःख-दर्द को…समझने और उसे दूर करने में उसका सहयोग देने वालों की…….राहुल का तानाशाही व्यव्हार केवल कांग्रेसियों की बोलती बंद कर सकता है,जनता का नहीं.मनमोहन जी को बता दिया कि….उनके पास… ‘जादू की छड़ी’ ..नहीं है,लेकिन जनता के पास….. ‘चुनावी-छड़ी ‘भी है और ‘चुनावी-चाबुक’.भी है.शीला जी और शरद पंवार जी को यह बता दिया कि…वे ‘ज्योतिषी’ भले ही न हों ,लेकिन जनता को ..’चुनावी ज्योतिष’.. का ज्ञान है…… आम आदमी पार्टी भी इस सफलता को पचा नहीं पा रही है.ऐसा लगता है…..कि….वह सत्ता में आने से घबरा रही है.शायद! उसे यह …आभास हो रहा है कि …..सत्ता में आने के बाद वह सभी वादों को पूरा नहीं कर सकती.सभी को खुश नहीं कर सकती….तो आगामी लोक-सभा या अन्य चुनावों में उसका समीकरण ही गड़बड़ हो जाएगा.जो भी दल …पुनः चुनाव चाहता है ..वह शायद….इस ग़लतफ़हमी में है कि…..उसे अगली बार ….पूर्ण-बहुमत ही मिल जायेगा.यदि उनकी दूसरी…इच्छा भी न पूरी हुई ..तो यह चुनावी-सिलसिला कब तक चलता रहेगा.,और जनता का समय और धन बर्बाद होता रहेगा? इस पर भी विचार करना होगा.
जय हिन्द ! जय भारत !!

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