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……………..मगर उसमे भी दाग है.

AAKARSHAN
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देश की राजनीति की दिशा को उलट-पुलट कर देने वाले सबसे बड़े प्रान्त की चुनावी -यात्रा ,आधी दूरी तक पहुँच गई है.बहुत से लेखकों ने अपने कलम-तोड़ लेख से जनता की आँखे खोलने का प्रयास भी किया है.प्रबुद्ध-वर्ग ,मीडिया,नेतागण ,अनेक संस्थाओं एवं सबसे अधिक चुनाव -योग के साथ प्रशासन ने अधिक से अधिक मतदान हेतु प्रोत्साहित भी किया है. लोग घरों से निकले भी है,मतदान का प्रतिशत भी उत्साह-जनक रूप से बढ़ा है.लेकिन यह और भी बढ़ना चाहिए.
अब तक हुए मतदान से यह स्पष्ट है की युवा-वर्ग के साथ ही जनता भी परिवर्तन के लिए परेशान है.लेकिन यह समझ में नहीं आ रहा है किसे चुने? आप स्वयं भी इन परिस्थितियों से रुबरु हुए होंगे या हो रहे होंगे…..और होना भी लाज़मी है.मैंने भी इसे महसूस किया है……. वोट के दिन भी ,……..वोट देने के समय तक…..उलझन बनी रही…..आखिर किसे….और क्यूँ……वोट दें…..?कौन है …..वर्तमान से ..अच्छा, कौन है ….जो…हमारे प्रदेश को गौरव दिलाएगा? …..वो कौन है जो…हमारे नौनिहालों ,..हमारे बच्चों का….भविष्य सवांरेगा ? कौन हमारे ..युवाओं को रोज़गार मुहैया कराएगा ? ….वो कौन है जो …हमारे गाँव को रहने योग्य बनाएगा? कौन है जो ….बिजली ,पानी..उपलब्ध कराएगा? ……ऐसा कौन है….जो हमारे प्रदेश में उद्योग और रोज़गार बढ़ाएगा? ऐसे अनेक प्रश्नों के साथ ……परिवर्तन के लिए वोट दे दिया..
सोचा था कि वर्तमान बसपा को ही क्यों न वोट करें?लेकिन पांच वर्ष तक जिस सरकार को पता नहीं चला कि उसके २१ मंत्री भ्रष्ट हैं,और चुनाव सामने होते ही ये सारे मंत्री ..भ्रष्ट थे,इसकी जानकारी हो गयी…..अपनी मूर्ति के साथ-साथ अन्य मूर्तियों और पार्को में….. इतनी व्यस्तता रही कि…… याद ही नहीं रहा ,…….सड़कों ,किसानों,खेतों और खलिहानों का……. .यह भी नहीं याद रहा कि……. अपने और अपने दल के अतिरिक्त ……..,प्रदेश का विकास कैसे किया जाय…….बिजली कंपनियों कि घोषणा तो हो गयी,…….लेकिन उन्हें ज़मीन और सुविधाएँ भी चाहिए,याद नहीं रहा.बिजली के अभाव में बंद होते उद्योगों और पलायन करते उद्यमियों के विषय में सोचने का मौका ही नहीं मिला……इतनी व्यस्तता रही कि…… गाँव के गरीबों की हालत देखने तक नहीं जा सके.जनता को………. आवश्यक सुविधाओं …….की तरफ सोचने का समय ही नहीं मिला………वास्तव में समय का दोष रहा………इतनी भी ज़ल्दी क्या थी …………,पांच वर्ष बीतने की ?अफ़सोस!!पांच वर्ष के बजाय दस वर्ष का कार्यकाल होता….. तो कितना अच्छा होता,……तो कितना अच्छा होता?
केवल यह याद रहा कि अगले चुनाव में किन-किन जातियों का वोट लेना है ,किन ..बाहु-बलियों के भरोसे चुनाव जीता जा सकता है,और किनके बाहर करने से ….दागियो को बाहर….करने की…छवि भी बन जायेगी?६०% दागियों के स्टैम्प को मिटाकर ४८% करना है.सोचा कि ……इसमें दाग है,इसलिए दूसरे दल को वोट क्यों न दिया जाय?
फिर याद आई ……भाजपा…की. कितने अच्छे थे ,…भाजपा के लोग………मंदिर का घंटा बजाते रहे और जनता को हिलाते रहे……सोचे कि यदि राम-मंदिर बन गया तो, फिर कोई……. नया मुद्दा मिले या न मिले….और मिले भी तो…..पता नहीं कब तक? और तब तक सत्ता हाथ से चली गयी तो?इसलिए …….गठ-बंधन को दोष देते रहेंगे ….तब तक पांच वर्ष बीत जायेगा.जनता तो मूर्ख है. मंदिर के नाम पर पांच वर्ष और फिर …बहुमत की सरकार के नाम पर अगले ….पांच वर्ष.विकास के नाम पर …..स्वर्णिम चतुर्भुज योजना, जिसके लिए कम से कम दस वर्ष की आवश्यकता..अनंत काल शासन का सपना संजोये भाजपा सरकार ने जनता को …….प्याज के आंसू ….रुलाया.महंगाई बढाने में …..काला-बाजारियों का खुलकर अथवा अपरोक्ष रूप से साथ दिया .ट्रान्सफर /पोस्टिंग में ….पैसा वसूली में ……सपा सरकार को भी पीछे छोड़ दिया.कुछ नेता तो स्वयं को आर्थिक रूप से सुदृढ़ करने लगे.कुछ नेता अपने को …..एक जाति का सम्राट मानते हुए दल से ऊपर मानने लगे.यहाँ भी क्षत्रिय,भूमिहार ,ब्राह्मण ,और पिछड़ा का आधार बनाकर आपस में ही एक दूसरे को काटने लगे.दागी विधायक और सांसद टिकट पाने लगे.जनता की सुधि लेने वाला कोई नहीं था.जनता को मूर्ख समझने वालों को जनता ने अपने ….मत की ताकत ….दिखाते हुए सत्ता से दूर कर दिया क्योंकि इनके दामन में भी ……दाग ……निकला.
सपा की ओर ध्यान गया.लेकिन चौधरी साहब को उन्ही के …..हथियार से….घायल करके …..पिछड़ों के लिए …पिछड़ों के सहयोग से बने हुए दल ने समाजवादियों को साथ लेकर चलने का नाटक करके सत्ता हासिल करने के लिए …….मुस्लिमों को साथ में लिया.उन्हें यह बताया गया कि वही उनका हित करेंगे. सत्ता में आने बाद …..उर्दू….को बढ़ावा दिया गया.लेकिन धीरे-धीरे यह …..वोट-बैंक ….समझा जाने लगा. वंशवाद को गाली देने वाले…..वंशवादी…..हो गए……..एक जाति की पार्टी……. नज़र आने लगी,तो…… मुस्लिमों का मोह भंग होने लगा……पूँजीवाद के धुर-विरोधी…….पूंजीवादी….हो गए. अपने….. हनुमान के माध्यम से….. पूंजीपतियों से जुड़ने लगे…..और ….हनुमान के बगावती तेवर को भांप कर उनकी ….पूंछ….में ..आग लगा दिए.आज …बेचारे ..हनुमान ..नए भगवान् राम की तलाश में …दर-दर भटक रहे हैं. ७०% दागी उम्मीदवारों की संख्या घटकर ४५% रह गयी है. यह सोचा कि……… इसमें भी दाग है….
फिर ,मतदाताओं …कि लम्बी कतार ….में धीरे -धीरे आगे बढ़ता गया.कांग्रेस के विषय में सोचा .एकाएक टू-जी घोटाला,कामनवेल्थ घोटाला ,तथा काला- धन ….अन्ना हजारे आदि की……. तस्वीर सामने घूम गयी ……..चक्कर सा आ गया …….कितने मंत्री,और प्रमुख सहयोगी दल के मुखिया की बेटी का अश्रु-पूरित नेत्रों वाला चेहरा सामने आ गया.कलमाड़ी का मुरझाया चेहरा ,और राजा की गायब हंसी …याद आ गया.यद्यपि सहयोगी दल के लोग थे,लेकिन प्रधान-मंत्री का दायित्व तो बनता ही है.सबसे अच्छी बात यह थी की ..उनका सदैव एक सा दिखने वाला ……समभावी चेहरा…..ख़यालों में आते ही …..शांति का एहसास होने लगा.ख़यालों में ही ..उनकी हंसी….. देखने का प्रयास करने लगा…..सोच रहा था ….क्या….उसमे ….भी ….दाग…. है?तब तक गेट पर खड़े होमगार्ड ने …झकझोरा,..कहा…आगे बढ़ो.वोट नहीं देना है क्या? मैं…… हकीकत में….. आया.अंगूठे पर ….अमिट-स्याही …का निशान लगवाया …और….एवीएम मशीन के पास……अँधेरा होने के बावजूद …..बटन दबा दिया…..फिर भी समझ नहीं आया कि किसका बटन दबाया? विश्वास है कि ……..परिवर्तन…..का…बटन….दबाया, जिससे ……कुछ आवाज़ सी आई…..सभवतः ….परिवर्तन….की आवाज़ थी!!!जय हिंद ! जय भारत!!

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