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वह….अबला..थी..या…शबनम ?.”सामाजिक आलोचना” (कांटेस्ट)

AAKARSHAN
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वैसे तो आज-कल किसी महिला को….. ‘अबला’…. कहना,एक आफत मोल लेना है.’अबला ‘ शब्द का प्रयोग होते ही,आप को ……तरह-तरह के विरोधों का सामना…… करना पड़ सकता है.आप अपने …..आत्म-रक्षा में,कुछ भी कहें,……कोई भी स्पष्टीकरण दे,कोई सुनने को तैयार नहीं होगा.महिला-मुक्ति मोर्चा… का सामना करना पड़ सकता है.बात यहीं तक ख़त्म हो जाय,तो भी ….’जान बची और लाखों पाए’.लेकिन,यदि ….महिला आयोग के संज्ञान में आ जाये तो तुरंत आप को …नोटिस जारी हो जाएगा,और यदि आप का …..पता नहीं ज्ञात है,तो समाचार-पत्रों के माध्यम से आप को ….फलाँ तारीख को आयोग के सामने उपस्थित होने की सूचना प्रसारित हो जायेगी.और दुर्भाग्य से ……यदि कोई चैनल वाला जान जाय,तो आप….. ‘ अबला’ की’ बला’ से….. भले ही बच जाँय,इनसे बचना तो मुश्किल ही है .कारण यह है कि,इनका…. शोधी-तंत्र…. कुछ ज्यादा ही तेज़ होता है.ये आनन्-फानन में …..कैमरा आदि के साथ…..पहुँच कर ….प्रश्नों की झड़ी लगा देंगे,और माइक आप के मुंह लगा देंगे.चैनल वालों की एक विशेषता ,आप ने भी देखा होगा, वो यह कि आप जब तक उनके प्रश्नों का उत्तर देंगे ,तब तक,दूसरा प्रश्न,और तीसरा प्रश्न…पूछ देंगे,आप का मुंह आधा खुला ही रह जाएगा,और कभी-कभी तो प्रश्नात्मक उत्तर,…स्वयम ही,दे देंगे.एक बात और ,यदि आप उनके मन-पसंद उत्तर नहीं देने वाले हैं,तो….मिलते हैं एक ब्रेक के बाद.खैर! जो भी हो,मैं …अबला तो नहीं कहूँगा, लेकिन जो कहना चाहता हूँ ,आप स्वयम,निर्णय ले कि ..उस औरत को क्या कहा जाय?
बात कुछ माह पहले की है…ट्रेन में सफ़र… करते समय ,आप के सामने भी बहुत से ऐसे लोग आते-जाते रहते हैं,लेकिन यात्रा समाप्त,सारी बात समाप्त.फिर भी कुछ ऐसी बाते भी होती हैं,जिसे आसानी से भुलाया नहीं जा सकता.मैं सेकण्ड क्लास में ,देवरिया से वाराणसी(दोनों ही पूर्वी उत्तर-प्रदेश के स्टेशन) के लिए यात्रा कर रहा था.बीच में पड़ने वाले, एक जंक्शन स्टेशन पर ट्रेन रुकी.मेरे सामने वाली सीट वहीँ पर खाली हुई थी,और तुरंत ही एक मुस्लिम महिला,बुरका पहने,दो छात्राओं एवं एक बालक के साथ आकर बैठ गईं.पहले तो सब सामान्य लगा.ऐसा लगा कि दोनों छात्राएं उसी के साथ हैं. लेकिन छात्राएं ,अपने मोबाईल से किसी से बात करने लगी जो बातें वो कर रही थीं,उससे यह लगने लगा कि उस महिला से उनका केवल सहयात्री का सम्बन्ध है. सामने वाली महिला भी पहनावे से सामान्य ,परिवार से, ही लग रही थी. ट्रेन चलने के थोड़ी देर बाद,उसका भी मोबाइल बजा.आज कल कुछ ऐसे मोबाइल आये हैं, जिसकी आवाज़,कुछ तेज ही होती है.महिला ने आन किया और चेहरे से नकाब उठा कर बात करने लगी……..हाँ! ,मै ट्रेन से बनारस जा रही हूँ……हाँ!,बिना बताये… रहमान मेरे साथ है……..क्या करूँ आप को तो जुआ और शराब से फुर्सत मिलेगी तब तो……(………से मतलब है,मोबाईल पर आने वाली अस्पष्ट आवाज़)……..हाँ अकेले जा रही हूँ,रहमान के साथ……..और कोई भी नहीं है……आ के देख लो, यदि शक हो तो………कैसे बताती,जब कल रात से गायब थे,..जाने कहाँ मुँह मार रहे थे…….ड्यूटी पर आने तक तो घर पर आये नहीं थे………..मैं नहीं बताई तो तुम्ही पूछ लेते.क्या करती? पांच महीने से कह रही हूँ,मुझे बनारस में किसी बड़े डाक्टर को दिखाओ ,मुझे बहुत तकलीफ है.अब नहीं दिखाउंगी तो मेरे ….चारो बच्चे ,बिना अम्मी के हो जायेंगे………हाँ!आज ही तनख्वाह मिली है.घर हो के जाती ,तो वह भी नहीं बचते.तुम छीन कर फिर जुआ और शराब में उड़ा देते. …….पहले अपने बड़े अस्पताल के बड़े डाक्टर को दिखाउंगी,फिर वो जैसा कहेंगे ,वैसा फोन से बता दूंगी……..यदि देर हो गयी,तो वहीँ ….मामू के घर रुक जाउंगी.कल दिखाकर बताउंगी……..हाँ, और रात को कहीं जाना, तो रेशमा,सलमा और सुल्तान को अकेले मत छोड़ना.अपने खाला से कह देना,हमारे घर सो जाएँगी.बात करते-करते उसके आँखों में …आंसू छलक आये थे.फिर भी उसे रहा नहीं गया और उसने कहा ,…..’अपना भी ख्याल रखना’.उसने किसी तरह से अपने आप को संभाला,और किसी ख़याल में खो गयी.रहमान उसकी गोद में सो गया था.
थोड़ी ही देर बाद उसने अपना मोबाइल फिर निकाला और कहीं मिलाया.बार-बार मिलाने के बाद भी, जब फोन नहीं मिला,तो कोई दूसरा नंबर मिलाया.इस बार उधर से आवाज़ आई…..फूफी ,मैं बोल रही हूँ ……शब्बो…….अरे! शब्बो….. बोल रही हूँ.इस बार ,शायद,उसकी फूफी ने सुन लिया और समझ गयीं.कैसी हो फूफी?…..क्या बात है कि अम्मी का फोन नहीं उठ रहा.सब खैरियत तो है न? अम्मी ठीक तो हैं न?…………क्या! ठीक नहीं है?अम्मी दो दिन पहले घर छोड़ कर चली गयी! कहाँ चली गयी?……….रिजवान ( शब्बो के बड़े भाई )ने आप को फोन किया था ?………मेरी तबियत बहुत घबड़ा रही थी.शब्बो की आँखों में तो जैसे आंसुओं के बादल फट गए हों. सामान्य सी दिखने वाली उस महिला के आँखों से….जैसे आंसू मोती बन कर निकल रहे थे. वह फिर संभल कर बोली…..कोई पता चला?………हाँ ,फूफी बता दो, मैं किसी से नहीं कहूँगी,……..मुझे बताने को कहा था? ठीक है. मैं अभी नंबर नोट कर लेती हूँ………..फूफी ,मुझे बड़ी भाभी से डर था.अम्मी को बहुत ताने मारती थी.अब्बू के जाने के बाद से ही वह ,अम्मी से कहती थी,की सायन(मुंबई ) वाली खोली उसके नाम से कर दे.लेकिन अम्मी कहती थी…..कि वह तीनो बेटों को देगी ,और तीनो बेटे मिलकर…… शब्बो का भी ख़याल रखेंगे. रिजवान भाई,तो उसकी हाँ में हाँ ,ही मिलाते रहते हैं.डरते हैं ..भाभी से,..नामर्द है.ठीक है फूफी मैं रखती हूँ.
थोड़ी देर के बाद शब्बो ,जैसा नाम मैंने समझा था,ने नोट किये गए नंबर पर मिलाया.उधर से कुछ आवाज़ आई………मैं शब्बो बोल रही हूँ…..शब्बो……हाँ…हाँ..शब्बो,अम्मी की बेटी. ………नहीं नहीं…जगा दो मामू.बहुत ज़रूरी है,अम्मी से बात करना……….(थोड़ी देर बाद ) अ ….म् ….मी (रोते हुए),अम्मी! कैसी हो अम्मी? …………..क्या घर से निकाल दिया,परसों? रिजवान भाई…. काम पर थे? क्या….. फोन भी रख लिया?…चलो वह तो मामू ,पास में थे. मामू ने रिजवान से यह बता कर ठीक ही किया ,…कि…वह यहाँ नहीं आई हैं.सिताब भाई को मालूम हो गया? …………लेकिन वह तो अहमदाबाद में हैं,आने में देर होगी?सोहेल भाई तो और दूर हैं………….क्या करूँ अम्मी!,मैं तो बहुत दूर हूँ.ज़ल्दी आ भी नहीं सकती.औरत हूँ न, अकेले मुंबई आने में डर भी लगता है….(अपनी बात छिपाते हुए)सलमा के अब्बू को तो काम से ही फुर्सत नहीं मिलती………ठीक है अम्मी!,मेरी चिंता मत करना,मैं खुश हूँ……..हाँ …हाँ ….अम्मी .मैं ठीक हूँ.अब रिजवान भाई के घर भूल के भी मत जाना,और …..मुझे …सायन वाली खोली में हिस्सा नहीं चाहिए.सलाम….अम्मी!
बनारस आ गया?
शब्बो की बातों को मेरे साथ अन्य लोग भी सुन रहे थे.लेकिन मैं शब्बो का पूरा नाम नहीं जान सका….हाँ उस महिला की विवशता और उसकी भावनाओं ,तथा शबनमी आँसुओं की बूंदों से मुझे यही लगा कि…………शायद!….. वह ……शबनम ही थी…….जो भी नाम हो ,हर धर्म के हर समाज में यही हो रहा है. अब शब्बो अकेली नहीं रह गयी है, उसकी जैसी अनेको ……???…….हैं..हमें ऐसे समाज को बदलना ही होगा.नारी को उसका उचित दर्जा और हक़ देना ही पड़ेगा.नारी के सम्मान के बिना कोई घर,समाज या देश ,तरक्की नहीं कर सकता .हमें उसे ‘अबला’ नहीं ,’सबला ‘ बनाना पड़ेगा.
जय हिंद!जय भारत!!
(कहानी सच्ची है,लेकिन नाम काल्पनिक हैं.यदि किसी से मेल खाते हों तो क्षमा करें)

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