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… आखिर इन्हें भी अधिकार है…….

लगे तो लगे
लगे तो लगे
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GD6800056@A-street-beggar-carri-7363कल रात ऑफिस से घर जाने के पहले और आज सुबह ऑफिस आने के पहले कुछ अजीब सा महसूस हुआ जो आप लोगों के साथ शेयर करना चाहूंगा…. दरअसल जब कल दफ्तर से घर जाने को तैयार हो रहा था तो एक मशहुर समाचार पत्र की साइट खोलकर पढ़ने लगा… सोचा कि कुछ नया सिखने को मिल जाये…. हुआ भी यही मिला कुछ नया… अब इसे ज्ञान समझ लीजिए या कुछ और…. हुआ ये कि समाचार पत्र के साइट पर सेक्स से संबंधित पोर्न साईट और फिल्मों पर बहस छिड़ी थी….. कि क्या जायज है और क्या नजायज…. खैर. हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है तो जाहिर सी बात है कि पोर्न फिल्मों की बात आती है या फिर साईटों की…… तो इसमें भी पुरुष को कम दोष दिया जाएगा….. और ये भी जाहिर सी बात है कि महिलाओं के शरीर में कुछ खास देखने और खोजने की कोशिश में लगा पुरुष तो बेदाग और निर्दोष साबित हो जाएगा लेकिन गाज महिलाओं पर गिरनी जायज है…. यहां गाज से मतलब चर्चा का विषय माना जाना चाहिए…… जो हमेशा से होता आया है…… यहां भी वही कहावत सटीक बैठती है कि….. तुम करो तो रासलीला और हम करें तो करैक्टर ढीला….. साइट पर लिखा गया था कि क्या वाकई में इंटरनेट पर मौजूद पोर्न मसाला महिलाओं के लिए खतरा है!…… खैर भारतीय समाज में तो सदियों से ये विषय छिड़ा है और शायद छिड़ा ही रहेगा…. लेकिन एक बात ये भी कि ये पोर्न व्यवसाय विश्व का सबसे पुराना व्यवसाय है….. इसमें कोई दो राय नहीं….. खैर ये तो रात वाली एक बात थी…… इसके बाद मैं ये सभी बातें सोचते सोचते घर गया….. मैं अपने घर न जाकर सीधे एक दोस्त के घर गया जहां उनकी माता ने कहा कि बेटा कल कंजके जमाना है…. आप सुबह आठ बजे घर आ जाना और प्रसाद खाकर चले जाना…. मैंने कहा ठीक है…… लेकिन आज सुबह जब सोकर उठा तो देर से और भागाभागी में उनके घर नहीं जा पाया…. और सुबह का क्रियाक्रम करके और अपना काम निबटा कर निकल पड़ा ऑफिस की ओर….. घर से करीब आधा किलोमिटर की दूरी पर विक्रम स्टैंड है.. मैं वहां पहुंचा और विक्रम में बैठ गया….. थोड़ी दूर चला होगा विक्रम की….. करीब आठ दस छोटी कन्या.. जिनकी उम्र पांच और आठ के बीच होगी…… एक सज्जन उन्हें लेकर विक्रम में बैठे… मैं समझ गया कि नवरात्रे के मौके पर कंजके जमाने जा रहे हैं ये सज्जन…… खैर सब ठीक…. वो रास्ते में एक जगह उतरे मैं भी आगे निकल गया…. जब रिस्पना पर पहुंचा तो देखा कि तीन-चार आठ-दस साल की कन्याएं…. कटोरा लेकर हर आने जाने वालों से ……. मांग रहीं थीं…… और एक शायद रो भी रही थी…… मैंने सोचा कि आखिर….. क्यों लोग रोते हैं कि कंजके जमाने को नहीं मिलती……. क्यों रोते हैं कि लिंगानुपात कम हो रहा है….. क्यों महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संसद में कुर्सियां फेंकी जाती है…. आखिर ऐसा करने वालों को ये मासूम नहीं दिखाई देतीं….. क्या उन माता के उपासकों की नजरें इनपर नहीं पड़ती…… क्या ये समाज से अलग और पूजने योग्य इसलिए नहीं है कि…… ये दस-दस दिनों तक नहीं नहातीं….. इनके कपड़े फटे-पुराने गंदे होते हैं, इनका रंगा काला या फिर सांवला होता है???? आखिर ये ढकोसला क्यों…. क्या जिस तरह मुझे ये दिखीं औरों को नहीं दिखती….. दरअसल ये एक दिन की नहीं रोज की बात है….. लेकिन शायद ये ढकोसला करने वालों, संसद में महिलाओं के नाम पर सत्ता में चमकने वालों और समाज की रक्षा और सुरक्षा का दंभ भरने वालों समाजिक संगठनों को दिखतीं तो शायद आज मुझे ये लिखने की जरुरत न होती….. अफसोस कि मेरे पास कैमरा नहीं था…. नहीं तो मैं इन छोटी मासूम सी कन्याओं के हालत बयां करती तस्वीर आपलोगों के साथ जरुर शेयर करता.. और शायद कल सुबह तक किसी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के कैमरामैनों और फोटोग्राफरों की नजरें भी इनपर न पड़े… मुझ पर भी….. कि आखिर मैंने क्या किया…… मैंने सबको नमस्ते किया और कहा कि माफ करना मेरी इतनी औकात नहीं कि मैं आपलोगों को कुछ दे सकूं….. लेकिन अंत में यहीं कहना चाहूंगा कि… आखिर इन्हें भी अधिकार है कि ये भी आम बच्चियों की तरह खिलखिला सकें…. अपना जीवन जी सके…….. और एक सम्मानित जीवन जी सके…..

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