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तो क्या मोदी प्रचार करना छोड़ दें !

लगे तो लगे
लगे तो लगे
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इनदिनों राजनीति सरगर्मियां तेज हो गई है। सभी पार्टियां लोस चुनावों को लेकर तैयारियों में जुट गईं है। बात की जाए कांग्रेस की तो आज कल दूरदर्शन से लेकर हर चैनल पर कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी छाये हुए हैं। साथ ही केंद्र की सत्तासीन कांग्रेस पार्टी अपनी नीतियों का बखान करती दिख रही है। हर पांच मिनट के बाद दिखाये जाने वाले विज्ञापन के जरिये कांग्रेस दिखा रही है कि वो गरीबों की हितैषी है। विज्ञापन में किये जा रहे दावों की मानें तो शायद इस बार के चुनाव के बाद अगर कांग्रेस केंद्र की सत्ता में आती है तो गरीबों की तो बल्लेबल्ले ! लेकिन सोचने वाली बात है कि जिस कांग्रेस ने देश की सत्ता पर करीब 60 सालों तक राज किया वहीं कांग्रेस आज एक बार फिर करीब 60 साल से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी मूलभूत सुविधाओं यानी कि सड़क पानी और बिजली की ही बात करती दिख रही है। अगर वाकई में कांग्रेस को गरीबों और आम जनता के हितों की चिंता होती तो शायद आज कांग्रेस कुछ और ही बात करती। लेकिन पिछले 60 सालों के कांग्रेस के कार्यकाल को देखने के बाद निराशा ही हाथ लगती है। वहीं बात की जाए बीजेपी यानी की भारतीय जनता पार्टी की तो साल 1999 में सत्ता का स्वाद चखने और पांच साल तक पहली बार अपने कार्यकाल को पूरा करने के बाद और पिछले दो बार के आम चुनावों में हार के बाद इस बार मोदी के सहारे अपनी नैया पार करने का सपना संजो रही है। शायद ये मुमकिन हो शायद न हो। लेकिन मोदी के पक्ष में जिस तरह से युवा भाजपा कार्यकर्ता और पूरी पार्टी प्रचार कर रही है उस लिहाज से तो उनका सपना पूरा होता दिख रहा है और इस सपने को पंख लगा रही है कांग्रेस के अनाप-शनाप आरोप। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने मोदी को गुजरात दंगों मे क्लीन चीट दे दी है उसके बाद भी बार बार कांग्रेसी मोदी को इस मुद्दे पर घेरने की कोशिश करते दिखते है। उनकी यही बात उनकी हैरानी, परेशानी और हताशा को दिखाती है। शायद इसका परिणाम भी कांग्रेस ने भुगत लिया है। पिछले साल हुई पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में जिस तरह से कमल खिला है उससे तो यही लग रहा है कि सूर्य देव की कृपा कमल पर पूरी तरह से है और इस बार कमल खिल कर ही रहेगा। ये इस लिहाज से भी कि इस चुनाव में कांग्रेस के पास कोई ऐसा ठोस मुद्दा नहीं था जिसे लेकर वो भाजपा पर हावी होती… लिहाजा उन्होंने पूरे चुनाव के दौरान सिर्फ और सिर्फ मोदी को घेरने की कोशिश की। इसके विपरीत बीजेपी ने घोटालों, महंगाई और महिलाओं की सुरक्षा जैसे कई मुद्दों को लेकर काग्रेस पर हावी दिखी। वहीं बात की जाए नई नवेली आम आदमी पार्टी की तो पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चुनाव में जनता से ऐसे वादे पूरे किये जिसे शायद पूरा करना किसी के बस की बात ही नहीं । शायद यहीं वजह रही होगी कि 60-65 साल के इतिहास में दोनों ही राष्ट्रीय पार्टियों ने इस तरह का कोई वादा जनता से नहीं किया। लेकिन जब केजरीवाल ने वादा किया तो शायद उनके मन में रहा होगा कि शायद वो सत्ता में न आये लिहाजा वादे से ही दोनों राष्ट्रीय पार्टियों पर दवाब बनाया जाए। लेकिन कहावत है न कि सिर मुंडवाते ही ओले पड़े… सो केजरी ने पार्टी क्या बनाई चुनाव क्या लड़े जनता ने भी विश्वास दिखाते हुए सत्ता तक पहुंचा ही दिया। लेकिन केजरी एंड कंपनी को सारी सरकार चलाने की व्यवस्था समझने और आपसी फूट और कलह में ही दो महीने बीत गये सो वादे कहां से पूरे होने थे। लिहाजा केजरी नेे इस्तीफा देने में ही अपनी भलाई समझी। हाल में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शकील अहमद का बयान आया कि मोदी से लाख गुना बेहतर तो केजरी है जिन्होंने नैतिकता के आधार पर दिल्ली की गद्दी से अपनी विदाई ले ली। बकौल शकील, मोदी सत्ता के लालची है और गुजरात दंगे के आरोप के बाद भी उन्होंने गुजरात की गद्दी नहीं छोड़ी और फिलहाल वो पीएम पद की कुर्सी पर बैठने के लिए एडी चोटी का जोर लगा रहे हैं। ऐसे में सवाल ये कि आखिर सत्ता का लालची कौन ? राहुल गांधी, नरेंद्र मोदी या फिर अरविंद केजरीवाल… जनता सब जानती है और शायद इस बात का जवाब न तो हमारे पास है और न हीं किसी न्यूज चैनल के पास… सो इंतजार कीजिए कुछ दिन और बचे है जब आम चुनाव के नतीजे सबके सामने होंगे… तब दूध का दूध और मलाई का मलाई हो जाएगा…. 2014_1image_18_46_557758000Modi-Kejriwal-Rahul-nat1-ll

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