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प्रेम से बोलो जय माता की ……………….

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यह कैसा समाज है नवरात्र आये तो कन्या का पूजन किया जाता है और बड़ा आदर किया जाता है और वोही कन्या का अनादर भी इसी समाज में उन्ही लोगो के द्वारा किया जाता है |ऐसा क्यों ? जिसे हम माता कहते है वोह भी तो कभी कन्या थी पर आज भी अगर किसी के घर कन्या होती है तो लोग मुह ही बनाते है ऐसा क्यों ? हमे नवरात्रों में ९ कन्याए खिलाने के लिए जगह जगह धुड़ना पड़ता है कन्याओ को और फिर तो उनकी वोह सेवा होती जो कि पुरे साल में नहीं हुई होगी पर जैसे ही नवरात्र ख़तम तो जैसे लडकियों के उपर वोही संतक आ जाता है कि घर वाले अलग ताने मारते है | कुश दिन जिन्हें हम भगवान का दर्जा देते है उन्ही को त्यौहार ख़तम होते ही ताने मारने लगते है |और यह भी वोह जो खुद एक नारी है वोही सबसे ज्यादा प्रतारित करती ही है यह ही इस देश कि सबसे बड़ी विडम्बना है कि औरत ही औरत कि सबसे बड़ी सत्रु  है | जिंदगी में एक इस्त्री कन्या को जनम देके इतना खुश नहीं होती है जितना कि बालक को | जबकि लाख बाते सुनने के बाद भी वोह लड़की ही अपने माँ बाप का सहारा बनती पर लड़का तो ऐसे ही निकलता है |

पर क्या हमने कभी सोचा है कि सब माता का  त्यौहार आता है तभी हमे उनकी याद क्यों आती है ? लोग भी अपने स्वार्थ को सिद्ध करने में लगे रहते है कि मैं  तो माता का जगराता करूँगा अगर मेरा यह काम हो जाएगा ? मतलब भगवान को भी रिश्वत देने में हम नहीं चुकते है और तो और अगर वोह काम हो जाता है तो विश्वास हो जाता है कि भगवान तो अब हमारे हर काम पुरे कर देंगे | बस मन्नते मांगते रहो और पूरी होने पे जो कहा है उसे पूरा करते रहो | जिंदगी में हर जगह फरेब है सोचो अगर आपका काम नहीं बना तो वोही भगवान बुरा हो जाता है और लोग दुसरे भगवान कि सरण में जाते है | जैसे साईं बाबा ने मेरी बात नहीं सुनी तो माता रानी के पास इंसान जाता फिर शिव जी के पास और फिर ऐसे ही ना जाने कितने देवी देवताओ के पास | मेरा सवाल उन सभी लोगो से है क्यों ?

भगवान भी आखिर उसी कि मदद करता है जो स्वयं अपनी मदद करता है |  पर हमारा देश चमत्कारों पे विस्वाश करता है और हर एक बाँदा येही सोचता है कि अगर अल्लाह मेहरबान तो तो कोई भी पहेलवान बन सकता है | सब किस्मत का खेल है पर यह कभी नहीं सोचता जो कुछ भी होता है उसमे उस बन्दे कि कितनी बड़ी भूमिका होती है जैसे हमारी फिल्मे अगर कोईभी अदाकार अपना किरदार अच्छी तरीके से नहीं निभाता  है तो पूरी फिल्म पे असर पड़ता है उसी प्रकार जब हम कोई काम सच्चे दिल नहीं करेंगे तो हमे सफलता कैसे मिलेगी यह हम क्यों नहीं सोचते है ? वैसे मैं भी सायद यह बोल तो रहा हूँ पर क्या मेरा उद्देश्य आप जनता जनार्दन तक स्पस्ट तरीके से पहुचेगा या नहीं मैं भी नहीं जानता हूँ क्योकि सायद मैं भी कही न कही स्वार्थी रहा हूँगा |या बनने कि कोशिश कर रहा हूँगा ? जिंदगी में बहुत सी सफलताये और असफलताए देखि है और सोचता भी था कि जो अच्छा होता है वोह भगवान करता है और जो बुरा होता है मैं करता हूँ | क्योकि सायद ही aapko ऐसे बन्दे भी मिलेंगे जो आपकी sahayta तब करेंगे जब aapko सबसे ज्यादा जरुरत होगी | कहा भी गया दुःख में सुमरिन सब करे सुख में करे न कोई ,जो सुख में सुमरिन करे तो दुःख कहे को होई | यह पंक्ति मैं कभी नहीं भुला हूँ और न कभी भूल पाउँगा क्योकि अगर मैंने तब किसी को माना था तो आज भी मानता हूँ | और अपने भगवान को हमेशा ही अपने आसपास ही महसूस करता हु | वोह मेरे हर पल के साथी है और जब भी मैं कुछ गलत करता हु तो दंड भी देते है और मैं भी उसे स्वीकार करता हूँ क्योकि सायद गलती  करते वक़्त भी वोह मुझे गलती न करने कि ही सलाह दे रहे होते है किसी न किसी रूप पर जब इंसान का बुरा समय आता है तो वोह बिना बुरा किये रह ही नहीं पता है जैसे कि गुस्सा करना , अप्सब्द का प्रयोग करना और हाथ पैर का उपयोग करना आदि | और इसका अंजाम भी कुछ अच्छा नहीं होता  है | जिसे तो भुगतना ही पड़ता  है | इंसान अपनी इंसानियत खोता जा रहा है और एक दुसरे को निचा दिखाने में लगा हुआ है | इरसया, क्रोध. लोभ, मद, अभिमान वोह भी झूठा और अहंकार यह सब आज के इंसान में कूट कूट कर भरा है | आज इंसान ही इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन हो गया है | सायद भगवान को भी अब बुरा लगता होगा कि उसने इस जहाँ में सबसे प्यारी चीज़ बनायीं थी इंसान पर उस इंसान का लालच देख के तो भगवान को भी लगने लगा होगा कि इससे तो जानवर ही अच्छे है क्योकि अब दोनों यानि इंसान और जानवर में कोई फर्क तो रह नहीं गया है | पर वोह तो थे ही ऐसे ?

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