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ब्रां‍काइटिस की आयुर्वेदिक चिकित्सा

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ब्रौनकियल नलियाँ, या ब्रौन्काई, श्वास की नली को फेफड़ों के साथ जोड़ती हैं । ब्रौनकियल नलियाँ जब ज्वलनशील या संक्रमित हो जाती हैं, तो उस अवस्था को ब्रौनकाईटिस कहते हैं। ब्रां‍काइटिस फेफड़ों में बहती हुई हवा और ऑक्सीजन के प्रवाह को कम कर देती है, जिससे वायु मार्ग में प्रचंड रूप से कफ़ और बलगम का निर्माण होता है।


ब्रौनकाईटिस दो प्रकार के होते हैं, तीव्र और दीर्घकालीन। तीव्र ब्रौनकाईटिस की बीमारी अल्पकालीन होती है जो कि विषाणु जनित रोग फ्लू या सर्दी-ज़ुकाम के होने के बाद विकसित होती है। इसके लक्षण बलगम के साथ सीने में बेचैनी या वेदना, बुखार और कभी कभी श्वाश में तकलीफ का होना होता है। तीव्र ब्रौनकाईटिस कुछ दिनों या कुछ हफ़्तों तक जारी रहती है ।


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