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वो एक अनजानी सी …

Meri Baat
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पिछले दो महीने की तरह आज फिर सुबह सुबह उसके दर्शन हो गए | रोज़ की ही तरह आज भी वो मुस्कुरा रही थी | दिल तो किया कि उसके पास जाऊ और पुछु की मुझे देखकर क्यों मुस्कुराती हो |

लेकिन इतनी भीड़ के बीच में उससे पूछना मैंने ठीक नहीं समझा और आज भी चुप चाप उसे देखता रहा |  उसको देखने के चक्कर में मेरी बस मिस हो गई |

अगली बस थोड़ी आ गई और मैं भीड़ को धकेलते हुए बस में सवार हो गया | दफ्तर पहुंचते ही काम में लग गया और फिर  भागमभाग , क्लाइंट्स को कॉल करना , ईमेल भेजना और वहीँ बोरिंग काम होने लगा | दिन ख़त्म होते होते दिमाग का दही हो गया और काम ख़त्म करके  मैं अपने घर की ओर चल पड़ा | अगले दिन वो आज भी वहीँ खडी थी और मुस्कुरा रही थी | आज उसको देखकर ऐसा लग रहा था जैसे मुझसे कुछ कहना चाह रही हो | मानो कह रही आओ और मुझे गले से लगा लो |

लेकिन मन में न जाने क्यों इतनी हलचल हो रही थी | कुछ समझ नहीं पा रहा था | लेकिन टाइम और आसपास की भीड़ को देखते हुए मैंने अपनी बस को पकड़ना ही ठीक समझा | लेकिन इस देखा देखी के चक्कर मैं आज भी लेट हो गया जिसका इनाम बॉस की डांट के रूप में मिला | अब बॉस के आगे भी रोज़ क्या बहाना बनाता | खैर अब बॉस के डांट के बाद शुरू हो गई वहीँ दफ्तर की भाग दौड़ |

आज वो कुछ उदास सी लग रही थी | उसका रोना चेहरा देखकर मुझे भी बहुत बुरा लग रहा था | लेकिन आज मैं अपने दफ्तर लेट नहीं होना चाहता था | इसलिए किसी बेदर्द इंसान की तरह मैंने मुंह घुमा लिया | बस तो आज टाइम से मिल गई थी लेकिन आज दिल उसके उदास चेहरे को बार बार याद कर रहा था | लेकिन ऑफिस भागने की जल्दी मैं मैंने उसे अपने दिल से निकाला और ध्यान काम में लगाने की कोशिश करने लगा |

आज शनिवार था और आज ऑफिस में ज्यादा काम भी नहीं था | तो सोचा आज ऑफिस लेट जाएगें उससे पहले आज उससे खूब बात करेंगे |  बस स्टैंड पर पहुंचा तो एक झटका सा लगा | आज वो वहां नहीं थी | आज पास भी देखा लेकिन वो नहीं दिखी | उसको देखने की चाहत में दिमाग भी साथ छोड़ रहा था और दिल तेज़ी से धड़क रहा था | फिर मुझे लगा की किसी से पूछूं कि वो कहाँ गई लेकिन कोई क्या सोचेगा ?, यह सोचकर किसी से नहीं पूछ पाया | लेकिन दिल के हाथों मजबूर होकर मैंने एक उस दुकानदार से पूछा , जिसके पास वो खड़ी होती थी | उस दुकानदार ने बताया कि वो तो बिक गई | मैंने कहा क्या !?!

मुझे एक धक्का सा लगा कि इतनी सुंदर मूर्ति जिसे देखकर कोई भी खरीदना चाहेगा वो दो महीने तक नुमाइश में खड़ी रहीं और कोई खरीदार न मिला | और आज अचानक ….

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