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तन्मय भट्ट एक कॉमेडियन हैं और उनकी यह विधा खड़ी कॉमेडी (standing comedy ) कहलाती है जिसके कई बड़े खिलाडी हैं जो कि पिछले 3 वर्षों में अच्छी खासी लोकप्रियता हासिल कर चुके हैं. इनमें कपिल शर्मा का नाम विशेष उल्लेखनीय है क्योंकि टीवी. पर उनके कॉमेडी शो बहुत सराहे जाते हैं . वैसे ये टीवी शो खालिश स्टैंडिंग कॉमेडी नहीं होते पर इनमें भी बड़ी हश्तियों कि अच्छी खिंचाई होती है और आज तक इन मजाकिया प्रोग्राम्मों को ले कर कोई बवाल नहीं खड़ा हुआ तो फिर इस नटखट भट ने ऐसा क्या कर दिया कि मीडिया से लेकर राजनेता और यहां तक कि आम पब्लिक में भी चर्चे हो रहे हैं. बहरहाल इतना ही जान लें कि इन भट साहब ने अपनी एक प्रस्तुति में महान क्रिकेट खिलाडी तेंदुलकर और स्वर साम्राज्ञी लताा मंगेशकरजी कि नकलें बना कर बेशक भद्दा मज़ाक उड़ाया है. जिन्होंने वो क्लिप देखी है वो जानते हैं कि यह अत्यन्त अशिष्ट पेशकश थी जिसमें उन दोनों महान हस्तियों के चेहरे को (बोलने के अंदाज में) बिगाड़ कर उन्ही कि नक़ल पर एकदूसरे को अनुचित संवाद करते दिखाया गया है. दोनों ही हश्तियां ‘भारत रत्न’ हैं और बेहतर होता अगर ऐसा भद्दा मज़ाक उनके माद्यम से अपनी कॉमेडी में जनाबे भट्ट ना दिखाते पर कहिये कि कलाकार के जो समझ में आया कर डाला. उनका उद्देश्य तो लोगों को हंसाना था और उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इसकी इतनी तीखी प्रतिक्रिया होगी.
अब उनकी बात करते हैं जो उन्हें (भटजी) को मारने पीटने कि धमकी दे रहे हैं. या फिर तेंदुलकर के परम सखा कुम्ब्लेजी हैं जो उन्हें कोर्ट में घसीट कर सजा दिलवाने कि बात करते हैं. आदि, इत्यादि..
देखिये जैसे कि पहले पैरा से ज़ाहिर है मैं खुद ऐसे भद्दे मज़ाक को उचित नहीं मानता पर अगर जाने अनजाने किसी (आखिर भट एक कलाकर हैं) ने ऐसा कर डाला तो इस पर जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया अच्छी बात नहीं है. कलाकार अपनी बात अपने ढंग से रखे (चाहे उसमें अतिशयोक्ति क्यों ना हो ) तो उस पर कोहराम मचाना लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. फिर अभिव्यक्ति कि आज़ादी कहाँ हुयी. लताजी और तेंदुलकर भारत नहीं है वे दो ऐसे सम्माननीय व्यक्ति हैं जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया है पर इसके मायने ये नहीं कि उनका मज़ाक उड़ाना कोई इतना बड़ा गुनाह हो गया कि कलाकार पर प्रतिबन्ध लगे, उसे मार पीटा जाए अथवा उसको कोर्ट कचहरी में घसीटा जाए. ये दोनों हश्तियां जन मानस में जितने ऊंचे कद पर विराजमान हैं उसके सामने तन्मय भट कि क्या औकात परन्तु एक कलाकार के नाते वे भी इज्जत के पात्र हैं और उन्हें बेइज्जत करने का अर्थ है कला को बेइज्जत करना. एक किसी भट द्वारा इन हश्तियों का अशिष्ट मज़ाक बनाने से इन दोनों की छवि पर कोई फ़र्क़ पड़ता है ऐसा सोचना मूर्खता है. हाँ ये जरूर है की हिंसक प्रतिक्रिया देने वालों का नाम मीडिया में आने से उन्हें क्षणिक प्रसिद्धि मिल जाती होगी पर लताजी और तेंदुलकर की प्रसिद्धि में ऐसी बातों से लेश मात्र भी फ़र्क़ नहीं आना. परन्तु ये तो साबित हो गया की इन शोर मचााने वालों की कृपा से भटजी की प्रसिद्धि कई पायदान ऊपर चढ़ गयी वरना मुझे बताइए की कितने लोग जानते थे तन्मय भट को. अगर कलाकारों से ही अभिव्यक्ति स्वतंत्रता छिन ली गयी तो फिर लोकतंत्र के बुरे दिन आये मानो. मिसाल है आजकल जो अनुराग कश्यप की पंजाब पर आधारित फिल्म “उड़ता पंजाब” जिस पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए तमाम राजनैतिक हलचल चल रही है जो देश और जनतंत्र के लिए अत्यन्त दुखद और दुर्भागयपूर्ण है.
-ओपीपारीक43oppareek43
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