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जब मैंने एक बार फेसबुक पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह कहा कि इस देश में अधिकांश नागरिक बेईमान प्रवृत्ति के मनुष्य हैं. यह बात और है कि कैसा और कितना मौका किसी को मिलता है बेईमानी करने का याने खुद के लिए अंगूर खट्टे हैं तो हम किसी और अंगूर खाने वाले की बुराई करने से परहेज नहीं करते. जहां जुडिशियरी से लेकर CBI , CVC , Vigilence और यहां तक क़ि CIC आदि के दामन पर भी दाग लगे हों तो भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना असम्भव है. यहां मैं अपवादों की बात नहीं करता क्योंकि अभी भी ऐसे लोग हैं जिन्होंने ओढ़ के चुनरिया मैली नहीं की है पर ऐसे कितने होंगें, इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है.
इस सन्दर्भ में सबसे दिलचस्प बात ये है कि चोरी तो चोरी, लोग सीनाजोरी से भी बाज नहीं आते. पकडे जाने पर झूठ बोलते हैं, जांच को कोर्टों में चुनौती देते हैं जहां मामला सालों-साल लंबित होता है और इस बीच चोरी के माल की मेहरबानी से हम पूरी बेशर्मी से गुलछर्रे उड़ाते हैं. दुर्भाग्य से यहां सबसे बड़े और मोटी चमड़ी वाले चोर कोई हैं तो वे हैं सियासतदान और नौकरशाह जिन्होंने ना केवल देश को लूटा है बल्कि इन 70 सालों में इस मुल्क को गरीब बना रहने में अहम भूमिका निभायी है. अरे देशद्रोही वे चंद विद्यार्थी नहीं हैं जिनपर आप देशद्रोह का मुक़द्दमा चला रहे हैं बल्कि असली देशद्रोही तो ये शक्तिशाली राजनीतिज्ञ, नौकरशाह और उनके पाले हुए गुंडे, बाहुबली और माफिया लोग हैं जिन का आप बाल बांका नहीं कर सकते. ये लोग कितने बेईमान और गिरे हुए है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक समय UP के बड़े अफसरों की अवैध ढंग से तार जोड़ कर की गयी बिजली -चोरी पकड़ी गयी थी जबकि इस अपराध के लिए उनपर कोई कार्रवाई नहीं की गयी क्योंकि इनमें बड़े-बड़े IAS अधिकारी शामिल थे.
अगुस्ता हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले में पूर्व वायुसेना-प्रमुख (Air Chief Marshal ) त्यागीजी पर घूसखोरी का इलज़ाम लगा और उनपर पूरा शक है की वे और उनके रिश्तेदार इस भ्रष्टाचार में लिप्त थे. पूरी बात का पता तो जांच से ही चलेगा पर जरा सोचिये जब सेनाओं के सर्वोच्च अधिकारी ही रिश्वतखोर हों तो छोटे-मोटे सरकारी मुलाजिमों की तो बात ही क्या है, उन्हें तो हम सभी अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी में भुगत ही रहे हैं. आज कल कोई भी घोटाला हज़ारों करोड़ से कम का नहीं होता याने गोया इन चोरों का पेट है या कोई गहरा कुआ. जिस CBI पर हमारा भरोसा था उसी के पूर्व निदेशक रणजीत सिन्हा साहब २जी के घोटाले में लिप्त लोगों के साथ अपने घर में गुफ्तगू किया करते थे. क्या मायने है इसके. एक अनाड़ी भी समझता है. सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्ववर्ती न्यायाधीशों (सभ्भरवाल व बालाकृष्णन) तक ने अपने ओहदे का अनुचित लाभ उठाने से परहेज नहीं किया और उधर उत्तर प्रदेश में तो हद ही हो गयी जब एक समय, एक नहीं अनेकों न्यायाधिकारी प्रोविडेंट फंड सम्बंधित घपले में लिप्त पाये गए.
इन सब का एक ही नारा है की मौका मिले तो जी भर के लूटो. वो कहावत है ना कि “रामनाम की लूट है, लूट सके तो लूट”. बस राम नाम की जगह ‘पैसा’ पढ़िए.
कितना शोचनीय विषय है कि बैंकों में ऋण वापसी नहीं होने ( NPA ) की बीमारी कोई नयी बात नहीं है क्योंकि यह सब (गलत तरीके से ऋण आबंटन) दसियों सालों से चलता आ रहा था पर ये सारे बैंक अपने NPA जानबूझ कर छुपा रहे थे. ये क्या कि विजय माल्या की किंगफ़िशर के ऋण को ले कर तब हल्ला मचा जब RBI के गवर्नर साहब ने NPAs को ले कर अपनी चिंता व्यक्त की. गौरतलब है कि किंगफिशर से भी बड़े बड़े बकाया लोन हैं जिन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुयी. क्या आप जानते है कि एशिया के बारह मुल्कों कि तुलना करें तो भारत में सबसे अधिक (बैंकों का) पैसा NPA है. मसलन कोरिया में यह कुल ऋणों का आधा प्रतिशत है जबकि भारत में यह 6 प्रतिशत है.
एक ट्रक के पीछे के फट्टे पर लिखा देखा ” सौ में से निन्यानबे बेईमान- मेरा भारत महान”. वाकई कितना सच्चा मुहावरा गढ़ा गढ़ने वाले ने. फिर भी आपको लगता है कि भारत लुटेरों का देश नहीं है तो इस सम्बन्ध में आपकी प्रतिक्रिया जानना चाहूंगा. कृपया अवश्य प्रेषित करें..
– ओपीपारीक43oppareek43
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