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इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि JNU और प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में जो कुछ हुआ वह निश्चय ही चिंताजनक है. उसकी जो प्रतिक्रिया याने पुलिस कार्रवाई आदि पर अलग -अलग मत-मतान्तर हो सकते हैं परन्तु जिस तरह के राष्ट्र-विरोधी नारे लगाए गए वे राष्ट्रिय अस्मिता के लिए एक चुनौती है. बहरहाल JNU में यह कोई नयी बात नहीं है क्योंकि JNU एक लम्बे अरसे से वामपंथी विचारधारा रखने वाले प्राध्यापकों एवं छात्रों का गढ़ रहा है. कुछ अरसे से यहां दक्षिणपंथियों का भी पदार्पण हो चुका है याने आज के दिन ये दो-फाड़ की लड़ाई कही जा सकती है.
दो दिन पहले जिस तरह कि नारेबाजी और पोस्टर प्रदर्शन किये गए वह एक शर्मनाक वाकया कहा जाएगा क्योंकि ऐसी हरकतों से राष्ट्र विरोधी ताकतें मजबूत होती हैं. हाफिज सईद जैसे आतंकवादी सरगनाओं ने, इन घटनाओं के सम्बन्ध में , अभी से ट्विटर पर भारत विरोधी वक्तव्य देने शुरू कर दिए हैं. पाकिस्तान भी इसे ले कर कश्मीर के सन्दर्भ में उलटी सीधी बातें करने से नहीं चूकेगा. सोचने कि बात है कि अफज़ल गुरु को बाकायदा पूरी ट्रायल के बाद कोर्ट से सजा हुयी थी . ज़ाहिर है इस राष्ट्र विरोधी आतंकी की मौत की वर्षगाँठ मनाने की क्या जरूरत थी और इसका क्या मकसद था. इसकी जांच होनी जरूरी है तथा राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि भविष्य किसी की हिम्मत न हो के वो भारत की बर्बादी के नारे लगा सके.इसी प्रकार प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया में जो सभा हुयी वो JNU वाली घटना से कहीं अधिक गंभीर है क्योंकि यह भारतीय मीडिया की एक जिम्मेदार संस्था है और इस के मंच का दुरुपयोग किया गया जो कतई काबिले बर्दाश्त नहीं है. संसद हमले के मामले में बरी हुए प्रोफ़ेसर गिलानी ने इसमें शिरकत की थी. अतएव गिलानी की भी तहकीकात होनी चाहिए.. गिलानी एक कश्मीरी है परन्तु उन्होंने कभी कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर तो कोई मीटिंग नहीं बुलाई. वे अदालत द्वारा छोड़ दिए गए इसका अर्थ ये नहीं के वो इस मंच का इस्तेमाल राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करें. प्रेस क्लब के उन पदाधिकारिओं की भी जांच होनी चाहिए जिन्होंने अनुमति दी.कुल मिला कर राष्ट्रिय नेतृत्व को इन घटनाओं की सिरे से जांच करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं हो सके!
– ओपीपारीक43 oppareek43
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