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जेएनयू छात्र संघ के नेता व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को जिस प्रकार ‘देशद्रोह’ का आरोप लगा कर जेल में ठूंस दिया गया, उस से सरकार एवं प्रमुख सत्ताधारी दल (याने बीजेपी) दोनों को कोई फायदा होने के बजाय नुकसान हुआ और साथ-साथ तज्जनित बहस से तो पूरे देश का अहित हुआ क्योंकि देश के युवाओं की वैचारिक ऊर्जा पर कुठाराघात करने से युवाओं में व्याप्त असंतोष और अधिक गहरा गया.
हम सभी जानते हैं की एक लम्बे समय से JNU में वामपंथी विचारधारा का बोलबाला है जिसमें अध्यापकों और छात्रों का अधिसंख्य वर्ग शामिल है. अब लोकतंत्र है तो हरेक को अपने-अपने सिद्धांतों (ideologies ) पर चलने और बोलने का अधिकार है. वैसे भी वामपंथी पार्टियां राज्यों और केंद्र की सरकारों में रही है . अधिक अरसा नहीं हुआ जब कि CPM तत्कालीन UPA सरकार का एक हिस्सा थी. सो इस बात से किसी को क्यों एतराज हो कि वहाँ ( JNU में ) कम्युनिस्टों का बोलबाला है और कि कन्हैया कुमार एक कम्युनिस्ट हैं.
मुझे तो एतराज़ इस बात से है कि इस घटनाक्रम के दौरान, राष्ट्रीयता और राष्ट्र विरोधिता को परिभाषित करने का जिन लोगों ने ठेका लिया उन्होंने कभी अपने गिरेबान में झाँक कर भी नहीं देखा और टूट पड़े नारे लगाने वालों तथा वहाँ उपस्थित छात्र नेताओं पर. वे यह भूल गए कि देश कि युवा शक्ति के साथ इस तरह दुर्व्यवहार के नतीजे देश के लिए घातक सिद्ध हो सकते हैं. यह इस बात से साबित हो जाता है कि कन्हैया कुमार को देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों का समर्थन मिला है जिसे देख कर वर्तमान सरकार सहम सी गयी है. ये लोग RSS , (VHP , ABVP , बजरंग दल आदि ) व्यर्थ का भेदभाव फ़ैलाने से बाज नहीं आते और सरकार चुपचाप खड़ी तमाशा देखती रहती है. कोई ‘वन्दे मातरम’ या फिर ‘भारतमाता कि जय’ नहीं बोलता वो इनकी नज़रों में देश विरोधी हो जाता है. यह कैसी मानसिकता है इनकी. मेरी समझ से बाहर है. गया मेरे जैसे करोड़ों हिन्दुस्तानी इनकी नज़रों में देश विरोधी है क्योंकि मई विचार इनके विचारों से मेल नहीं खाते. लोकतंत्र और अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता से इन्हें कोई मतलब नहीं.
बहरहाल ये लोग कन्हैया कुमार का भी कुछ नहीं बिगाड़ पाये. साक्ष्यों के आभाव में न्यायालय ने कन्हैया कुमार को जमानत पर रिहा तो कर दिया पर साथ-साथ बेवजह कि उपदेशबाज़ी करते हुए उन्हें ‘सुधरने’ कि नेक सलाह दे डाली जो कि एक मज़ाक कहा जा सकता है क्योंकि जज महोदया क्या सुधारना है, यह अस्पष्ट है. काश वे पुलिस, प्रशासन और हमारी केंद्र सरकार को भी सुधरने कि हिदायतें देती तो बेहतर होता. खैर इन सभी ( पुलिस, प्रसाशन, न्यायपालिका, केंद्र सरकार और मीडिया ) ने मिल कर कल के छात्र नेता कन्हैया कुमार को युवाओं और बुद्धिजीवियों की नज़र में “हीरो” बना दिया है.
मुझे लगता है कि अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता तो इस देश में सिर्फ घाटी के कश्मीरियों को ही प्राप्य है बाकी हिन्दुस्तानी अगर कुछ खुल कर बोलें तो वे राष्ट्र विरोधी करार दिए जायेंगें और यह भी हो सकता है कि उन पर देशद्रोह का मुक़दमा दायर हो जाए तो भी आश्चर्य नहीं. ज़ाहिर है कश्मीर घाटी में तो अक्सर ही तथाकथित देशद्रोही नारे लगाए जाते हैं. पाकिस्तान ही नहीं बल्कि IS जैसे कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय आतंकी संगठन तक के झंडे लहराए जाते हैं फिर भी कोई देशद्रोह का आरोप नहीं लगता. लगे भी कैसे ? क्योंकि वहाँ हमारी देश भक्त पार्टी BJP आज कश्मीरी पार्टी PDP के साथ मिल कर सरकार चला रही है और यह सर्वविदित है कि PDP अफजल गुरु को न केवल “शहीद” मानती है बल्कि उसने गुरु के समर्थन में कश्मीर विधान सभा में प्रस्ताव तक पास किया है.
उधर हमारे ‘हीरो’ कन्हैया कुमारजी है जो मीडिया को रोज़ इंटरव्यू पर इंटरव्यू दे कर राष्ट्र नेता बनने कि मुहीम पर है. CPM और CPI खुश हैं (बकौल “मोगाम्बो खुश हुआ”) क्योंकि चुनावी सीजन में उन्हें एक बढ़िया भाषण देने वाला छात्र नेता मिल गया जो स्वयं कम्युनिस्ट विचारधारा रखता है. हमारा हीरो यह भूल कर रहा है कि जो CPM उसे बंगाल भेज कर चुनाव प्रचार में लगाना चाह रही है उसने अपने 34 वर्ष के शासन काल में बंगाल प्रान्त का भट्टा बिठा दिया था. यही नहीं रूस, चीन और अन्य कम्युनिस्ट शासित देशों में ऐसे शैतान कम्युनिस्ट नेता हुए जिन्होंने गरीब किसानो और कामगारों कि व्यापक हत्याएं करने से संकोच नहीं किया. दुनिया जानती है कि किस प्रकार माओ जे दुंग, स्टालिन और लेनिन ने लाखों निर्दोष लोगों को ‘प्रोलेतेरियत’ के राज के बहाने मौत के घात उतार दिया. अतएव मेरी तो श्री कन्हैया कुमारजी को यही नसीहत है कि वे इन कम्युनिस्टों से बच कर रहें. इसी में उनकी और देश कि भलाई है.
-ओपीपारीक43 oppareek43
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