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जाहिर है कि, संजय बारु, जो प्रधान मंत्री के मीडिया सलाहकार रहे है, ने प्रधान्मन्त्रीम के हर कार्य-कलाप को निकट से देखा है, यही नहीं उनको इस पद पर प्रतिष्ठित करने वाले भी स्वयं प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ही थे. बारु कि पुस्तक में जो खुलासे हुए हैं उनसे शायद ही किसी को आश्चर्य हो क्योंकि भारत कि समझदार जनता तो बहुत पहले ही यह जान चुकी है कि यह प्रधान मंत्री सोनिया गांधी के हाथ कि कठपुतली है और भारतीय लोकतंत्र में इनसे अधिक कमजोर कोई भी प्रधानमंत्री नहीं हुआ. पाठकों को याद दिल दू कि लगभग दो साल पहले अमेरिका कि टाइम मेग्जीन (या शायद न्यूयॉर्क टाइम्स ) में भी यह बात लिखी गयी थी और तब भी कांग्रेस्सियों ने बावेला मचाया था. दरअसल आज बारु कि पस्तक को ले कर जी प्रतक्रिया कांग्रेस के दिग्गजों ने दी है वो तो कोई भी समझ सकता है. भला चोर खुद को चोर क्यों कहेगा परन्तु मनमोहन का प्रधानमंत्रित्व काल देश का सबसे अधिक भ्रष्ट और निकम्मा साबित हुआ है, यह बात आगामी इतिहासकार जरूर लिखेगा.
कोलगेट के सम्बन्ध में पी.सी. पारख कि पुष्तक तो और भी चौंकाने वाली है क्योंकि निष्कर्ष यह निकलता है कि कोयला मंत्रालय प्रधान मंत्री नहीं बल्कि उनके छुटभैये दोनों मंत्री, कोल-माफिया के साथ मिल के चला रहे थे.. पारख का यह कहना बिलकुल जायज है कि सी.बी.आई. जांच की जांच की गाज़ उनपर ही क्यों पड़ी जबकि आखरी फैसला प्रधानमन्त्री का था. क्या सी.बी.आई. सत्ताधारी पार्टी के इशारों पर काम कर रही थी..
पूरा हिदुस्तान जानता है कि किस प्रकार कोल माफिया पिछले छ: दशकों से कोयला चोरी करता आ रहा है. सूर्यनारायण सिंह जैसे कुख्यात माफिया खुले आम इस चोरी को अंजाम देते रहे हैं फिर भी मंत्रालय ने कभी कड़ी कार्रवाई नहीं की. आखिर क्यों ? क्योंकि राजनेता, अफसर, मंत्रीगण सब के सब चोर मौसेरे भाई हैं जो निरंतर देश के संसाधनों को लूटते रहे हैं. कब तक चलेगा यह खेल. की मोदी प्रधान मंत्री बन जाएँ तो इस पर रोक लगेगी. मुझे संदेह है क्योंकि अगर ऐसा होता तो वाजपेयीजी के प्रधानमंत्रित्व काल में ही ये सब बंद हो जाना चाहिए था.
कुल मिला कर देखा जाए तो इन दोनों महानुभावों ने अपनी किताबों के ज़रिये देश का भला ही किया है, जिसकी सराहना की जानी चाहिए.
– ओपीपारीक43 oppareek43
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