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सेक्युलर, सिक्कुलर, बहुलता और असहिष्णुता

देख कबीरा रोया
देख कबीरा रोया
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दोस्तों आज जो ब्लॉग लिख रहा हूँ वो संभवतः अब तक प्रेषित सभी ब्लॉघों में सबसे लम्बा होगा. इसलिए तनिक धैर्य और फुर्सत में पढ़ने का कष्ट करियेगा.

प्रथम तो ये चार शब्दों का शीर्षक (जिनमें दो अंग्रेजी के हैं) आपको अजीब भले ही लगे परन्तु सामयिक और व्यापक बहस के मुद्दे हैं. लिहाज़ा अभी २६ जनवरी को ही जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल से लौटा हूँ जहां पर ये सहिष्णुता वाला मसला काफी गरमाया हुआ था. एक बहुत उम्दा जनतांत्रिक डिबेट इस विषय में वहाँ पर हुयी जिसके सम्बन्ध में इसी ब्लॉग के अंतिम पैरा में विवरण उल्लिखित है.

बहरहाल पहले सैक्युलरिज़म (धर्म निरपेक्षता) की बात करते हैं. अभी कोई छह महीने पहले जब मैं अपने एक मित्र के साथ इस सिद्धांत के विषय में वार्तालाप कर रहा था तो वे खिसया कर बोले कि आपसे बात करना ही फ़िज़ूल है क्योंकि आप सेक्युलर नहीं बल्कि “सिक्कुलर” (sickkular ) हैं और यह कहकर बड़ी नारज़गी के साथ पल्ला झाड़ कर चले गए. ज़ाहिर है जब कोई किसी बात का तर्कसंगत उत्तर नहीं दे पाता तो सामनेवाले कि छुट्टी कर देता हैं. याने खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे. आईडीयली तो ये होना चाहिए कि “भाई मैं बिलकुल सही हूँ पर तुम भी सही हो सकते हो”. पर ऐसे सोच के लिए बड़ा दिल चाहिए जो आज कि तारिख में कट्टर (तथकथित ) हिंदुत्ववादियों के पास नहीं है और विडम्बना तो ये भी है कि उन्हीं के धर्म ने दुनिया को ये बताया कि “वसुधैव कुटुंबकम ” अर्थात सारी दुनिया एक परिवार है.

भारत का संविधान जिन शब्दों से शुरू होता है वो हैं “WE THE PEOPLE OF INDIA (हम भारत के लोग). अब जरा विचार करें कि ये ‘लोग’ आखिर कौन हैं? ये हम सभी हैं याने हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, अहमदी, यहूदी, बहाई – सब के सब. इस में बहुसंख्यक या अल्पसंख्यक और दलित सभी परिभाषित हैं बल्कि सदियों से शोषित व प्रताड़ित दलित, आदिवासी और अन्य पिछड़े समुदायों के लिए विशेष प्रावधान भी किये गए हैं. किन्ही कारणों से सेक्युलर का अर्थ इस देश में सभी धर्मों कि समानता लगाया गया है और राष्ट्र के लिए हर धर्म को सामान भाव से सम्मान देना माना गया है. जबकि पश्चिमी विचारधारा के अनुसार राज्य को धर्म से कोई सरोकार नहीं होना चाहिए याने यह हर व्यक्ति की व्यक्तिगत मान्यता का मामला मन गया है और उस हद तक वो अपने धर्म का पालन करने में स्वतंत्र है.

हिंदुत्ववादियों का यह मानना है कि जब भारतीय उपमहाद्वीप का विभाजन तथाकथित ‘द्विराष्ट्रीय सिद्धांत” ( two nation theory ) के तहत किया गया था तो क्यों नहीं भारत भी एक हिन्दू राष्ट्र बने. वैसे भी लगभग 80 प्रतिशत बाशिंदे हिन्दू हैं.यह बात देखने में तो तर्कसंगत लगती है पर ऐसा होने पर लगभग 70 साल पुराना हमारा मजबूत जनतंत्र समाप्त हो जाएगा. अगर मेरी बात समझ में नहीं आ रही है तो एक नज़र पाकिस्तान की ओर देखिये कि किस प्रकार उसके लिए एक थेओक्रेटिक (theocratic ) इस्लामी राष्ट्र होना महंगा पड़ रहा है.जरा सोचिये इतने लम्बे जनतांत्रिक अनुभव के बाद क्या इस देश कोहिन्दू राष्ट्र बना देना, देश के अन्य धर्मावलम्बियों को स्वीकार होगा. कदापि नहीं. इसके परिणाम इतने भयावह होंगें जिसकी आप कल्पना तक नहीं कर सकते. मेरा कहने का अर्थ इतना ही है कि यहाँ सेकुलरिज़म है तो जनतंत्र है वरना जनतंत्र एक दिन भी नहीं टिक पायेगा. सेक्युलरिज्म के विरोधी यह भूल रहे हैं कि यह सिद्धांत हमारे वर्तमान संविधान का मूलभूत आधार है और यह नींव हिल गयी तो इमारत कभी भी गिर सकती है.एक बात और कि यह हिंदुत्व का नारा अचानक मोदी राज में क्यों तूल पकड़ा ? स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ दल में इस अवधारणा को मानने वाले अनेक लोग हैं और इनमें से कई तो इसे हिन्दुओं का धार्मिक पुनर्जागरण बता रहे हैं. ठीक है अगर यह पुनर्जागरण सिर्फ पूजा-आस्था, राम-मंदिर निमार्ण तक ही सीमित होता तो भी कोई गलत नहीं है पर साफ़ तौर पर यह एक खांटी राजनितिक प्रायोजन है उर कुछ हद तक मुस्लिम विरोधी भी है जिसका फायदा ये लोग उठाना चाहते हैं पर किस कीमत पर? देश के टुकड़े कर के ?

देखिये मुझे गलत ना समझें.कोई भी मन्दिरवाद, गिर्जावाद, मस्जिदवाद, गुरुद्वारावाद या अन्य किसी जमात का वाद हो, ये सभी लोगों को जोड़ने के बजाय बांटते हैं. संगठित धर्मों ने हमेशा लोगों पर कहर ढाए हैं – आप चाहें तो इतिहास उठा कर देख लीजिये, आप खुद ही देखें कि शिया-सुन्नी विवाद जो एक ही धर्म याने इस्लाम से उपजा है कैसा भयावह रूप ले कर दुनिया के सामने आया है. इस्लामिक स्टेट के सुन्नी शियाओं को भी काफ़िर मानते हैं और उनकी हत्याएं कर रहे हैं. इसी प्रकार एक समय भिंडरावाला के कट्टरपंथी सिक्खों ने देश के साथ क्या किया. कैसे भूल गए. जो पंजाब के सिख आतंकवादियों ने उन दिनों किया वैसा तो इस देश के मुस्लमान भाइयों ने भी आजतक नहीं किया जबकि मुसलमान यहां 18 प्रतिशत हैं और सिख सिर्फ 2 प्रतिशत. मेरा मानना है कि आज हिन्दुत्ववादियों के टारगेट मुस्लिम हैं क्योंकि वे समझते हैं यह आतंकवाद और कश्मीर आदि सब मुसलमानो का किया धरा है. चलिए मान भी लें तो वे यह कैसे भूल सकते हैं कि जब कश्मीर घाटी से हजारों पंडितों का जबरन निष्कासन किया गया और अनेकों कि हत्या कर दी गयी तो आपकी सरकार और ये हिन्दुत्ववादी क्या कर रहे थे. इन्हें वहाँ जा कर उन कश्मीरी मुसलमानो से लोहा लेना चाहिए था. आखिर आरएसएस का कहना है कि पाकिस्तान के भेजे कबायलियों ने जब 1947 में कश्मीर पर हमला किया था तो वे भी वहाँ जा कर उनसे लड़े थे तो फिर पंडितो के निष्काशन के समय हिन्दुओं कि अश्मिता बचने क्यों नहीं गए, आज उनके मोदी प्रधानमंत्री हैं फिर भी गिलानी जैसे देशद्रोही को क्यों नहीं पाकिस्तान निष्कासित करते . क्यों भला ? कोई जवाब दे.

BJP आज सत्ता में है और देश का संविधान सेक्युलर है फिर भी मोदी यूनिफॉर्म कोड (जो सब पर लागू हो क्योंकि कानून के सामने सब बराबर ) लाने से डरते हैं. परिणामस्वरूप लाखों मुस्लिम महिलाओं को अन्याय और शोषण का शिकार होना पड़ रहा है क्योंकि मुसलमानों के व्यक्तिगत मामलों में आज भी शरिया कानून लागू है . आपने हिन्दू कोड बिल तो 50 साल पहले ही लागु कर दिया पर यूनिफॉर्म लॉ ((सभी के लिए) आज तक नहीं लागु कर पाये. तब भी नहीं जब राजीव गांधी के कार्यकाल में सुप्रीम कोर्ट ने “शाह बानो” के पक्ष में फैसला दे डाला. देश के बहादुर प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी तब मुल्लों कि धमकियों से डर गए और फैसले को संसद के माध्यम से निरस्त कर दिया. लेकिन अब क्या मुश्किल है. कोई मोदीजी से पूछे कि वे ‘समान नागरिक विधि’ (uniform civil code ) लागू करने से क्यों कतरा रहे हैं. गोया हाथी के दांत खाने के और और दिखाने के और . आज के हालात में एक सामान व्यव्हार संहिता (uniform civil code ) निहायत जरूरी है वरना मुस्लिम समुदाय में कट्टरता और गहरी होगी जो भारतीय जनतंत्र के हित में नहीं है.

सेक्युलर जनतंत्र में अल्पमत वालों का आदर और संरक्षण निहायत जरूरी है. कोई भी बहुमतवाद (majoritiyenism ) यही चाहेगा कि अल्पमत और पिछड़े लोग उनकी कृपा पर जियें और आज के हिंदुत्व वादी उसी मानसिकता को ले कर चल रहा है . जब मैं यह तर्क देता हूँ तो कुछ लोग मुझे सूडो सेक्युलर (pseudo secular ) या फिर सिक्कुलर का तगमा देते हैं पर इस से फ़र्क़ भी क्या पड़ता है. अगर आप किसी बात को शिद्दत से समझते हैं तो उस पर कायम रहने में क्या बुराई. बोलनेवाले जो बोले बोलते रहें. ये उनका अभिप्राय है मेरा नहीं. ये सब गलतफहमियां इस वजह से भी है कि इस देश में आज तक सेक्युलर शब्द की कोई व्याख्या या परिभाषा हमारे संविधान में नहीं मिलती. कारण स्पष्ट है . हमारे राजनीतिज्ञों के मन में खोट और नियत में मिलावट है वरना मोदी जैसे दृढ प्रधानमंत्री को कौन रोक सकता है समान व्यव्हार संहिता लाने से. पर उन्हें भी वोटों की चिंता खाए जा रही है . मुस्लिम वोटों के बिना भी गुजारा नहीं है. .

जहां तक बहुलता (pluralism and diversity ) का प्रश्न है यही तो भारत है. अच्छी बात पर काफी मुस्किल भी. ज़ाहिर है इतने पंथ, धर्म, मत मतान्तर वाले देश में राजकार्य चलना बहुत दुष्कर कार्य है. काफी संतुलन रखते हुए कदम उठाने होते हैं. पूरी दृढ़ता (boldness ) चाहिए जो की मोदीजी में प्रचुर है परन्तु बोली से दिखाते हैं, कर के नहीं. वे भी क्या करें उनकी BJP जमात में बौद्धिक लोग काम और बुद्धिहीन अधिक हो गए जैसे की कैलाश विजयवर्गीय (मध्य प्रदेश), आदित्यनाथ आदि आदि. उनको पार्टी के इन अतिवादियों का भी ख्याल करना पड़ता है. परन्तु वे यह भूलते हैं की इस बहुल भारतीय समाज को एकीकृत रखना ज्यादा जरूरी है बजाय इन सम्प्रदायवादियों और संघियों को खुश रखने से . मोदीजी आपको सिर्फ राजनीतिज्ञ नहीं बल्कि स्टेट्समैन बनना होगा और तभी वे इस बहु धर्म, बहु संप्रदाय, बहु संस्कृति वाले देश का कल्याण कर पाएंगे .

तीन महीने से आज तक इस देश में सहिष्णुता ( बल्कि असहिष्णुता ) पर बहस जारी है. पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ जानी मानी हस्तियां है. अगर असहिष्णुता है भी तो अरुण जेटली और उनके साथियों को दू-दूर तक नज़र नहीं आती. उनके हिसाब से चाँद कांग्रेस पार्टी द्वारा अनुग्रहित और वफादार लेखकों का ही भ्रमजाल है बाकी कोई असहिष्णुता नहीं इस देश में. लगता है की वह इस बात के इंतज़ार में है की अभी यह असहिष्णुता और अधिक (कई गुणा) बढ़ जाय तब देखेंगें. जाती और धर्म के नाम पर लोगों को भड़काना और हिंसा को अंजाम देना सबसे सहज काम है जो उनकी पार्टी के कुछ लोग करने में लगे हैं. यह भी सच है कि इस जहरीले वातावरण में बिचारे मोदीजी का कोई मतलब नहीं है. सीधी सी बात है कोई भी ढंग का प्रधान मंत्री ऐसी साम्प्रदायिकता क्यों चाहेगा. चलिए मान लेते हैं मोदीजी का कोई दोष नहीं पर इन घटनाओं पर मोदीजी द्वारा चुप्पी साध लेना कहाँ तक सही है इसका फैसला तो जनता बिहार में कर चुकी है और आगे भी करेगी अगर लगाम नहीं कसी गयी तो.

देखिये देश में या तो अभिव्यक्ति कि “पूर्ण स्वतंत्रता” हो या बिलकुल नहीं. लेखकों ने अवार्ड वापस किये तो पूरी मोदीभक्त चौकड़ी भड़क गयी और लगाने लगी उलूल-जुलूल लांछन. आमिर खान ने कुछ बोल दिया तो बावेला मच गया जैसे कि वो ही देश का प्रधानमंत्री हो (अरे भाई आखिर तो मात्र एक नामी अभिनेता ही है, क्यों खामखाह इतना महत्त्व देते हो उसको), करण जोहर ने कुछ कह दिया तो टूट पड़े भाई लोग (मीडिया व मोदी भक्त). यह कैसा जनतंत्र है मेरे भाई. करण जौहर ने ठीक ही तो कहा कि यह एक मुश्किल (tough ) देश है. यहां कुछ भी बोलो तुरत FIR हो जाती है. जनता जानती है कि हमारी पुलिस तो हत्या कि FIR भी जल्दी से नहीं लिखती पर कोई कुछ बोलदे या लिख दे या फिर सिनेमा में दिखादे तो चौकन्नी हो जाती है

बहरहाल उस दिन याने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के समापन दिवस (25 जनवरी) के दिन मैं वहीँ था जहां इस विषय पर एक गर्मागर्म बहस छिड़ी हुयी थी उस समय वहां दिग्गी पैलेस के फ्रंट लॉन में हज़ारों लोग इस बहस को सुन रहे थे जिनमें से मैं भी एक था क्या गज़ब का शोर शराबा और भीड़ थी और क्या तालियां थी कि क्रिकेट मैच को भी मात कर गयी. कहिये तो यह भारतीय जनतंत्र का अद्भुत नमूना था जहां लोग परस्पर विरोधी विचारधाराओं को पूरे मनोयोग से सुन ही नहीं रहे थे बल्कि खैरमक़्दम भी कर रहे थे. बहस का विषय था “क्या अभिव्यक्ति को पूर्ण (बेलगाम) आज़ादी होनी चाहिए ?” इस आज़ादी के पक्ष में बोलने वालों में थे कपिल मिश्रा (AAP पार्टी में मंत्री ) पलनिमुथु शिवकामी (दलित लेखक व तमिलनाडु के राजनीतिज्ञ) मधु त्रेहन पत्रकार और ब्रिटेन के नामी लेखक, पत्रकार एवं मानवाधिकार कार्यकर्त्ता श्री सलिल त्रिपाठी (श्री त्रिपाठी मेरे निकट मित्र भी हैं ) और विरोध पक्ष में बोलने वालों में थे – नए-नए पद्म भूषन विभूषित अभिनेता अनुपम खेर, पूर्व राजनयिक व लेखक पवन वर्मा (आजकल JDU के नेता और जानेमाने पैनलिस्ट श्री सुहेल सेठ. संसद की प्राचीरों और गलियारों को छोड़ शायद ही कभी भारत के इतिहास में ऐसी बेजोड़ जनतांत्रिक बहस हुयी हो ऐसा मानना है. लोगों की संख्या देखें तो भारत के तमाम सांसदों से 7 – 8 गुणा ज्यादा थी और उपस्थित जनता की पूरी भागीदारी भी रही. मजे की बात यह रही कि जब श्रोताओं से बोली का मत ( याने voice vote ) माँगा गया कि आप प्रस्ताव के पक्ष में है या विपक्ष में तो दुर्भाग्य से (मेरे अपने मतानुसार दुर्भाग्य) से विरोधी पक्ष कीजीत हुयी. क्या-क्या तर्क दिए गए ये कहानी बहुत लम्बी होगी इसलिए इस लेख को यहीं विराम दे रहा हूँ।

– ओपीपारीक43oppareek43

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