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ब्रिटिश शाही परिवार को ज्योतिबा फुले ने ऐसे दी थी चुनौती, उनकी जिंदगी के दिलचस्प किस्से

“धन-धान्य और हीरे-मोती से जड़े हुए कपड़े पहनने वाले लोग हमारे देश का प्रतिनिधित्व नहीं करते क्योंकि उनके जीवन में पैसों का महत्व रोटी से ज्यादा होता है”  ब्रिटिश शाही परिवार को कुछ ऐसे ही विचारों के साथ समाजसेवी ज्योतिबा फुले ने चुनौती दी।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal28 Nov, 2018

 

 

 

इस वजह से नाम के साथ जुड़ गया फुले
देश से छुआछूत को खत्म करने और समाज के वंचित तबके को सशक्त बनाने में अहम किरदार निभाने वाले ज्योतिबा फुले की आज पुण्यतिथि है। समाजसेवी, लेखक, दार्शनिक और क्रांतिकारी ज्योतिराव गोविंदराव फुले का जन्म 11 अप्रैल, 1827 को पुणे में हुआ था और निधन 28 नवंबर, 1890 को हुआ था। वैसे उनका असल नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था लेकिन ज्योतिबा फुले के नाम से मशहूर हुए। उनका परिवार सतारा से पुणे आ गया था और माली का काम करने लगा था। माली का काम करने की वजह से उनके परिवार को ‘फुले’ के नाम से जाना जाता था। उनके नाम में लगे फुले का भी इसी से संबंध है। उनका पूरा जीवन क्रांति से भरा था।

 

विधवा विवाह के समर्थक थे ज्योतिबा
ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। इसके उन्होंने तर्कों के साथ लोगों को समझाने के लिए कई सभाएं की।

 

 

 

इन विषयों पर लिखी किताबें
ज्योतिबा ने सबसे पहले ‘दलित’ शब्द का इस्तेमाल किया था। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं जिसमें तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत आदि किताबें शामिल हैं।

 

 

ब्रिटिश शाही परिवार को खुलेआम दी चुनौती
ज्योतिबा फुले के एक दोस्त थे जिनका नाम हरि रावजी चिपलुनकर था। उन्होंने ब्रिटिश राजकुमार और उसकी पत्नी के सम्मान में एक कार्यक्रम का आयोजन किया था। ब्रिटिश राजकुमार महारानी विक्टोरिया का पोता था। उस कार्यक्रम में ज्योतिबा फुले भी पहुंचे। वहां जाकर किसानों का दर्द बयान कर सके, इसके लिए वह कार्यक्रम में किसानों जैसा कपड़ा पहनकर गए थे और भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण में धनाढ्य लोगों पर टिप्पणी की जो हीरे के आभूषण पहनकर अपने वैभव और धन-दौलत का प्रदर्शन कर रहे थे। उन्होंने मौके पर मौजूद गणमान्य हस्तियों को चेताते हुए कहा कि ये जो धनाढ्य लोग हैं, वे भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि अगर राजकुमार वाकई में इंग्लैंड की महारानी की भारतीय प्रजा की स्थिति जानना चाहता है तो वह आसपास के गांवों का दौरा करे। उन्होंने राजकुमार को उन शहरों में भी घूमने का सुझाव दिया जहां वे लोग रहते हैं जिनको अछूत समझा जाता है, जिनके हाथ का पानी पीने, खाना खाने, जिसके साथ खड़े होने पर लोग खुद को अपवित्र मानने लगते हैं। उन्होंने राजकुमार से आग्रह किया कि वह उनके संदेश को महारानी विक्टोरिया तक पहुंचा दे और गरीब लोगों को उचित शिक्षा मुहैया कराने का बंदोबस्त करे। ज्योतिबा फुले के इस भाषण से समारोह में मौजूद सभी लोग स्तब्ध रह गए थे

आज ही के दिन यानी 28 नवंबर, 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था…Next

 

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