‘क्या यह मेरा अपना चेहरा है? मेरे मन में विचारों के कई सैलाब उमड़ रहे थे और मेरा अपना ही चेहरा शीशे में दिनों-दिन अजनबी होता जा रहा था’
जापानी लेखक मासूजी इब्यूज ने अपनी किताब ‘ब्लैक रैन’ (Black Rain) में नागासाकी और हिरोशिमा पर हुए परमाणु बम हमले को ऐसे ही कई शब्दों में बयां किया है। उनकी किताब में हमले के बाद का वो खौफनाक मंजर है, जिसे देखने भर से ही कोई संवेदनशील व्यक्ति की मौत हो सकती है।
6 अगस्त का वो काला दिन
6 अगस्त 1945 जब अमेरिका ने हिरोशिमा पर परमाणु अटैक किया, तो आम लोगों को लगा कि शायद मौसम बिगड़ गया है और तूफान आने वाला है, लेकिन थोड़ी ही देर में चारों तरफ दर्दनाक चीखें थीं। आसमान काला हो चुका था और आसमान से चिपचिपी बारिश हो रही थी। शहर में गाड़ियां कम और लाशें बिखरी हुई थीं। लिटिल बॉय’ जब हिरोशिमा के वायुमंडल में फटा, तो 13 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में तबाही फैल गई थी। शहर की 60 फीसदी से भी अधिक इमारतें बर्बाद हो गईं थीं। उस समय जापान ने इस हमले में मरने वाले नागरिकों की आधिकारिक संख्या एक लाख 18 हज़ार 661 बताई थी। बाद के अनुमानों के अनुसार, हिरोशिमा की कुल तीन लाख 50 हजार की आबादी में से एक लाख 40 हजार लोग इसमें मारे गए थे। हिरोशिमा पर हमले के लिए काफी वक्त पहले से एक रणनीति तैयार की गई थी, जबकि जापान के एक और शहर नागासाकी पर 2 दिनों बाद परमाणु बम अटैक किया गया।
अब ऐसे में नागासाकी पर हमला क्यों किया गया ये सवाल उठता है।
9 अगस्त को नाकासाकी पर इस वजह से किया गया हमला
अमेरिका का दूसरा परमाणु बम था ‘फैटमैन’, जो 4050 किलो का था। इस दूसरे बम के निशाने पर था औद्योगिक नगर कोकुरा। यहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियां थीं। इस समय बी-29 विमान 31,000 फीट की ऊंचाई पर उड़ रहा था, जिसमें परमाणु बम रखा हुआ था। थोड़ी देर में बम को नीचे गिरा दिया गया और 52 सेकेंड के अंतराल में बम जमीन से टकराया। नागासाकी के समुद्र तट पर तैरती नौकाओं और बन्दरगाह में खड़ी तमाम नौकाओं में आग लग गई। नागासाकी शहर के पहाड़ों से घिरे होने के कारण केवल 6.7 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में ही तबाही फैल पाई। लगभग 74 हजार लोग इस हमले में मारे गए थे और इतनी ही संख्या में लोग घायल हुए थे। आज भी इन दोनों परमाणु हमलों को मानवता के लिए एक काले दिन के तौर पर याद किया जाता है।
‘ब्लैक रैन’ में लिखे एक और अनुभव के अनुसार ‘कभी-कभी मैं सोचता हूं लोग कड़ी मेहनत करके पॉलिटिशियन क्यों बनते हैं, सिर्फ इसलिए कि वो कुछ गलत कर सकें?’…Next
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