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आनंदी गोपाल उस दौर में देश की पहली महिला डॉक्टर बनीं, जब औरतें घर से बाहर तक नहीं निकलती थीं

वो जब घर में पढ़ रही होती थी, तो बाहर कुएं पर पानी भरने आई महिलाएं उसके बारे में बातें कर रहे होते थे। ये उस दौर की बात है, जब किसी महिला का पढ़ना-लिखना किसी अपराध से कम नहीं था। आनंदीबाई जोशी भारत की वो पहली महिला जो ऐसी ही विपरीत परिस्थितियों में डॉक्टर बनी थीं।
मराठी उपन्यासकार एसजे जोशी उपन्यास ‘आनंदी गोपाल’ में लिखते हैं। ‘गोपाल को ज़िद थी कि अपनी पत्नी को ज़्यादा-से-ज़्यादा पढ़ाऊं। उन्होंने पुरातनपंथी ब्राह्मण-समाज का तिरस्कार झेला, पुरुषों के लिए भी निषिद्ध, सात समंदर पार अपनी पत्नी को अमेरिका भेजकर उसे पहली भारतीय महिला डॉक्टर बनाने का इतिहास रचा।’ इस किताब में आनंदी गोपाल जोशी और उनके पति के संघर्ष के बारे में बताया गया है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal26 Feb, 2019

 

 

9 साल की उम्र में हुई थी शादी
आनंदीबाई जोशी का जन्मे पुणे में 31 मार्च 1865 को हुआ था।उनकी शादी महज 9 साल की उम्र में अपने से 20 साल बड़े युवक गोपालराव से हुई थी। उन्हों ने 14 साल की उम्र में मां बनकर अपनी पहली संतान को जन्म दिया,लेकिन 10 दिनों में ही उस बच्चे की मृत्युस हो गई। इस घटना का उन्हें गहरा सदमा पहुंचा। यही वो पड़ाव था जिसने आनंदीबाई को डॉक्टंर बनने की प्रेरणा दी। इस फैसले में उनके पति गोपालराव ने भी पूरा साथ दिया और हर कदम पर आनंदीबाई को प्रोत्साहित किया।

 

फिल्म में ‘आनंदी गोपाल’ का चरित्र निभाती कलाकार

 

इस शर्त पर गोपालराव ने की थी आनंदी से शादी
गोपालराव की आनंदी से शादी की शर्त ही यही थी कि वे पढ़ाई करेंगी। आनंदी के मायके वाले भी उनकी पढ़ाई के ख़िलाफ थे। ब्याह के वक्त आनंदी को अक्षर ज्ञान भी नहीं था। गोपाल ने उन्हें क,ख,ग से पढ़ाया। जोशी लिखते हैं नन्ही सी आनंदी को पढ़ाई से खास लगाव नहीं था। मिथक थे कि जो औरत पढ़ती है उसका पति मर जाता है। आनंदी को गोपाल डांट-डपट कर पढ़ाते। ‘एक बार उन्होंने आनंदी को डांटते हुए कहा, तुम नहीं पढ़ोगी तो मैं अपना मज़हब बदलकर क्रिस्तानी बन जाऊंगा।’

 

महज 22 साल की उम्र में हो गया था निधन
आनंदीबाई मेडिकल क्षेत्र में शिक्षा पाने के लिए अमेरिका गईं और साल 1886 में उन्होंने MD की डिग्री हासिल कर ली। उस वक्त उनकी उम्र 19 साल थी। वो एमडी की डिग्री पाने वाली और पहली भारतीय महिला डॉक्टसर बनीं। डिग्री लेने के बाद आनंदीबाई वापस देश लौटीं। लेकिन उस दौरान वे टीबी की शिकार हो गईं। दिन पर दिन सेहत में गिरावट के चलते 26 फरवरी 1887 को 22 वर्ष की आयु में आनंदी का निधन हो गया।…Next

 

 

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