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फांसी से नहीं ऐसे मरना चाहते थे भगतसिंह, इस नेता ने बचाने के लिए दायर की थी दया याचिका

“राख का हर कण मेरी गर्मी से गतिमान है मैं एक ऐसा पागल हूं जो जेल में भी आजाद है” भगतसिंह एक क्रांतिकारी ही नहीं बल्कि युवाओं के लिए आज भी एक जुनून एक जज्बा है
3 मार्च 1931 का दिन, जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दे दी गई थी. भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव जैसे उन अनगिनत क्रांतिकारियों के साथ जिन्हें फांसी पर चढ़ा दिया गया. उनके जीवन के न जाने कितने ही किस्से हैं, जिनके बारे में आज भी बातें की जाती है.
आज भगतसिंह का जन्मदिन है. ‘The Jail Notebook and Other Writings’ किताब में भगतसिंह के कई पत्र छपे हैं, जो भगतसिंह ने अलग-अलग लोगों को लिखे हैं.

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal28 Sep, 2018

 

 

फांसी की बजाय सीने पर गोली खाकर मरना चाहते थे भगतसिंह
भगत सिंह सैनिकों जैसी शहादत चाहते थे। वह फांसी की बजाय सीने पर गोली खाकर वीरगति को प्राप्त होना चाहते थे। यह बात उनके लिखे एक पत्र से जाहिर होती है। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के तत्कालीन गवर्नर से मांग की थी कि उन्हें युद्धबंदी माना जाए और फांसी पर लटकाने की बजाय गोली से उड़ा दिया जाए, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी।

 

14 फरवरी 1931 को फांसी पर लगी थी मुहर
7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई। उनकी सजा पर अंतिम मुहर 14 फरवरी 1931 को लगी थी, जब प्रिवी काउंसिल में अपील खारिज होने के बाद कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष मदन मोहन मालवीय ने इरविन के समक्ष भगत सिंह की फांसी माफ करने के लिए एक दया याचिका लगाई थी। इस याचिका को खारिज कर दिया गया था।

 

 

फांसी से पहले आखिरी इच्छा
जिस वक्त भगत सिंह जेल में थे, उन्होंने कई किताबें पढ़ीं। कहते हैं कि फांसी पर जाने से पहले भी वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे। जेल के अधिकारियों ने जब उन्हें यह सूचना दी कि उनकी फांसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने तय समय से पहले फांसी दिए जाने पर कोई सवाल नहीं किया, बल्कि सिर्फ इतना कहा था, ‘ठहरिये! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले।’ फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले, ‘ठीक है अब चलो।’

 

 

जल्दबाजी में दे दी गई फांसी
जेल प्रवास के दौरान भगत सिंह विदेशी और देशी कैदियों के बीच जेल में होने वाले भेद-भाव के खिलाफ भूख हड़ताल की। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी दी जानी थी, लेकिन पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे थे और लाहौर में भीड़ जुटने लगी थी। इस कारण भीड़ के किसी तरह के उन्माद से बचने के लिए उन तीनों को तय समय से 11 घंटे पहले 23 मार्च 1931 को शाम 7 बजकर 33 मिनट पर फांसी पर लटका दिया गया…Next

 

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