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बुलेटप्रूफ जैकेट कैसे बनती है और कैसे रोक पाती है गोली, जानें इसका इतिहास

आपने फिल्मों में देखा होगा कि हीरो पर गोली चला दी जाती है लेकिन हीरो जिन्दा बच निकलता है क्योंकि उसने बुलेटप्रूफ जैकेट पहनी होती है। सबसे पहले बुलेटप्रूफ जैकेट शब्द से हमारी पहचान फिल्मों के माध्यम से ही हुई थी। इसके बाद  राजनीतिक खबरों के माध्यम से हम इस शब्द से थोड़े और वाकिफ़ हुए। जैसे, देश की बड़ी राजनीतिक हस्तियां भी दुश्मन के हमले से सुरक्षित रहने के लिए बुलेटप्रूफ जैकेट पहनती हैं। सुरक्षा की कई परतों वाली यह जैकेट तेज स्पीड से आने वाली गोलियों के असर को खत्म कर देती है। क्या आप जानते हैं बुलेट बुलेटप्रूफ जैकेट की टेक्नोलॉजी क्या है? आइए, जानते हैं खास बातें।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal9 Jul, 2019

 

फिल्म ‘आयरमैन’ में बुलेटप्रूफ जैकेट पहने एक्टर रॉबर्ट डाउनी जूनियर

 

बुलेटप्रूफ जैकेट का आईडिया 15वीं शताब्दी में आया
बुलेटप्रूफ कपड़ों का इतिहास शुरुआत में इंसान घायल होने और हमलों से बचने के लिए जानवरों की चमड़े का इस्तेमाल करते थे। फिर जैसे-जैसे एडवांस हथियार आने लगे, वैसे-वैसे सुरक्षा के इस साधन में भी बदलाव हुआ। फिर लकड़ी और धातु से बने कवचों का इस्तेमाल हमलों से बचने के लिए किया जाने लगा। बुलेटप्रूफ जैकेट का आइडिया 15वीं सदी में आया। इटली में धातुओं की कई परतों का इस्तेमाल करके कवच बनाया गया। गोली कवच को पार नहीं कर सकती थी बल्कि उससे टकराकर अपनी दिशा बदल देती थी। इससे जैकेट पहने इंसान पर गोलियों का कोई असर नहीं होता लेकिन वे कवच आग्नेयास्त्रों के लिए प्रभावी नहीं थे। फिर 18वीं सदी में जापान में सिल्क से कवच बनाया गया। वे कवच असरदार तो थे लेकिन महंगे थे।

 

बुलेटप्रूफ जैकेट

 

1960 में केवलर नाम के फाइबर की खोज
1901 में अमेरिका के 25वें राष्ट्रपति विलियम मैकिनली की हत्या कर दी गई। फिर अमेरिकी सेना को इंसानी शरीर के लिए मुलायम कवच की जरूरत महसूस हुई। सिल्क से बने कवच कम वेग से आ रही गोलियों से बचाव करने में तो असरदार थे लेकिन नई पीढ़ी के तोप और बंदूक का मुकाबला करने में सक्षम नहीं थे। इसलिए सिल्क से बने कवच ज्यादा समय तक उपयोगी नहीं रह गए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान फ्लैक जैकेट का आविष्कार हुआ। उनको बनाने में बैलिस्टिक नाइलॉन फाइबर का इस्तेमाल होता था। वे जैकेट गोलाबारूद से बचाने में सक्षम थी। इस तरह की जैकेट काफी भारी होती थी। ज्यादा असरदार भी नहीं थी। 1960 में केवलर नाम के नए फाइबर को खोजा गया जिससे बुलेटप्रूफ जैकेट को बनाना संभव हो पाया।

 

जनसभा सम्बोधन के दौरान पीएम मोदी

 

टायर से जैकेट में होने लगा केवलर का इस्तेमाल
शुरू में केवलर फाइबर की खोज टायर बनाने के लिए की गई थी। योजना थी कि बड़े-बड़े टायरों के निर्माण में उसका इस्तेमाल होगा। लेकिन यह फाइबर अनुमान से ज्यादा मजबूत निकला। यह फाइबर वजन में हल्का होता है लेकिन काफी मजबूत होता है। केवलर मूल रूप से प्लास्टिक होता है और हद से ज्यादा लचीला होता है। इसका लचीलापन ही इसकी असल ताकत है। यह काफी टिकाऊ भी होता है। इसके अलावा यह अपने संपर्क में आने वाली ऊर्जा को सोख लेता है और उसको छिन्न भिन्न कर देता है। अपने इन गुणों के कारण केवलर किसी इंसान की तरफ आने वाली गोली को रोकने और उसकी ऊर्जा को सोखकर बेअसर करने में काफी सक्षम है।

 

भारतीय सेना के जवान बुलेटप्रूफ जैकेट के साथ

 

बुलेटप्रूफ जैकेट कैसे बनती है
पहले इस फाइबर की रसायनों के एक घोल में कताई होती है और उसकी मदद से धागे की बड़ी सी रील तैयार की जाती है। फिर उस धागे से बैलिस्टिक शीट (चादर) की कई परत तैयार की जाती है। उन परतों को आपस में मजबूती से सिलकर कई पैनल या प्लेट बनाए जाते हैं। फिर उन पैनलों को एक जैकेट में फिट किया जाता है। जैकेट में बैलिस्टिक पैनलों को फिट करने के लिए जेब होती हैं। बुलेटप्रूफ जैकेट गोली कैसे रोक पाती है जब गोली इन प्लेटों से टकराती है तो उसकी रफ्तार कम हो जाती है और वह छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखर जाती है। फिर गोलियों की भेदने की क्षमता कम हो जाती है और उसे पहने हुए इंसान के शरीर के संपर्क में नहीं आ पाती है। जब गोली टुकड़ों में बिखर जाती है तो उससे बड़ी मात्रा में निकलने वाली ऊर्जा को बैलिस्टिक प्लेट की दूसरी परत सोख लेती है। इससे बुलेटप्रूफ पहने इंसान को कम नुकसान पहुंचता है।…Next

 

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