धीरूभाई अंबानी के आम आदमी से देश के सबसे सफल बिजनेसमैन बनने की कहानी किसी को भी प्रेरित करने के लिए काफी है। 28 दिसंबर 1933 को गुजरात के जूनागढ़ के एक सामान्य परिवार में जन्मे धीरजलाल हीरालाल अंबानी अपनी मेहनत और बुद्धि के बल पर फर्श से अर्श पर पहुंच गए। धीरू भाई को करीब से जानने वालों ने कई बार इंटरव्यू में कहा है कि अगर वह यमन नहीं जाते और वहां आंदोलन न होते तो धीरू भाई कभी देश से दिग्गज बिजनेसमैन नहीं बन पाते।
रोचक है जीवन का संघर्ष
धीरूभाई अंबानी के आम आदमी से अरबपति बिजनेसमैन बनने की कहानी काफी रोचक है। मध्यम परिवार में जन्म होने के चलते बचपन से ही धीरूभाई को मनचाही वस्तुओं को हासिल करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती रही। यह मशक्कत उनके जीवन का मूल मंत्र बन गई। आर्थिक परेशानियों के चलते बीच में ही पढ़ाई छोड़कर उन्होंने छोटे मोटे काम शुरू कर दिए। इस दौरान उन्होंने चाय पकोड़े और फल बेचने का काम किया।
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300 रुपये की नौकरी
प्रतिभाशाली होने के साथ ही शुरुआत से महत्वाकांक्षी धीरूभाई अंबानी का मन छोटे मोटे काम में नहीं लगने लगा तो उनके बड़े भाई अपने साथ यमन ले गए। यमन में धीरूभाई अंबानी को पेट्रोलपंप पर काम मिल गया और रोज की दिहाड़ी 300 रुपये मिलने लगी। करीब दो साल बाद ही धीरूभाई की मेहनत से प्रसन्न होकर कंपनी ने मैनेजर बना दिया। इस बीच धीरू भाई का मन नौकरी से उकताने लगा और वह व्यापार शुरू करने के तरीके खोजने लगे।
View this post on Instagram[Link in bio] Dhirubhai Ambani, a force to be reckoned with: Born Dhirajlal Hirachand Ambani in 1932, Ambani's journey from a gas station attendant to the owner of the giant petrochemicals, communications, power, and textiles conglomerate Reliance Industries is one that has inspired generations. On his birth anniversary, here's a look at some rare pictures of the business magnate. . . . . #DhirubhaiAmbani #Ambani #AmbaniBirthAnniversary #DhirubhaiAmbaniBirthday #BirthAnniversary #IncHonchos #NitaAmbani #JioArmy
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यमन के आंदोलनों ने देश लौटाया
यमन में अच्छी खासी नौकरी चल रही थी कि वहां आजादी के लिए आंदोलन शुरू हो गए। जगह जगह पर क्रांतिकारी मौजूदा शासक के विरोध में उतरने लगे और वहां का माहौल बेहद खतरनाक होने लगा। 1950 के दरमियान धीरूभाई भारत लौट आए और वहां से कमाकर लाए पैसों से पॉलिस्टर धागे और मसाले का काम शुरू किया। इसमें उन्होंने अपने चचेरे भाई को पार्टनर बनाया। धीरूभाई के जानने वाले मानते हैं कि अगर यमन में आंदोलन न छिड़ते तो वह वापस नहीं लौटते और शायद वह बिजनेसमैन की जगह कुछ और बन जाते।
कपड़ा मिल से निकला रिलायंस ग्रुप
धीरूभाई का पॉलिस्टर और मसालों का कारोबार चल निकला और वह धीरे धीरे सफलता की सीढि़यां चढ़ने लगे। लेकिन इस बीच चचेरे भाई से विवाद के बाद उन्होंने सूत का व्यापार शुरू किया जो उनकी मेहनत के कारण सफल हो गया। 1966 में धीरूभाई ने सबसे पहली कपड़ा मिल नैरोड़ा में स्थापित की। इस फैक्ट्री की नींव से रिलायंस ग्रुप का निर्माण हुआ। अपने वक्त के सबसे सफल व्यवसायी रहे धीरूभाई अंबानी का 2002 में निधन हो गया।…Next
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