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भारत-पाक की सरहदों को पार करके फिजाओं में गूंजती थीं मेंहदी हसन की गजलें, कुछ चुनिंदा शायरी

कलाकार ऐसे होते हैं जिन्हें कोई मजहब या सरहद बांधकर नहीं रख सकती। उनकी कला सभी तरह के अंतरों को दरकिनार करते हुए लोगों के मन में समा जाती है। ऐसे ही एक कलाकार रहे हैं मेंहदी हसन, जिनकी गजलों और शेरो-शायरी की पूरी दुनिया दीवानी है। जानते हैं उनके खास शेर और उनसे जुड़ी खास बातें-

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal13 Jun, 2019

 

 

 

8 साल की उम्र में बन गए दरबार में गायक
मेंहदी हसन का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं में हुआ था। 20 साल की उम्र में 1947 विभाजन के दौरान वे पाकिस्तान चले गए थे और परिवार के पालन के लिए उन्होंने मैकेनिक के तौर पर भी काम किया था। मेंहदी छह साल की उम्र में पिता अजीम खां से दादरा, ठुमरी, ख़याल सीखने लगे। आठ की उम्र में बड़ौदा के महाराजा के सामने उनकी पहली प्रस्तुति हुई। करीब 40 मिनट उन्होंने ख़याल बसंत पंचम का गाया था। उस दिन उन्हें भी बड़ौदा दरबार का गायक माना गया। उन्हें रस्म के तौर पर सोने के कड़े पहनाए गए।

 

 

10 की उम्र में 55 साल का दोस्त
खुद मेंहदी हसन ने कहा था कि आठ की उम्र थी लेकिन जेहनी तौर पर लोग उन्हें सुनकर लोग 35-40 बरस का महसूस करते थे। बचपन से ही वे गंभीर किस्म के थे और खेलते-कूदते नहीं थे। 10 बरस की उम्र में भी उनका एक करीबी दोस्त 55 बरस का था। जिनका नाम था खां साब ममू खां। दूसरा 50 साल का मास्टर अब्दुल रहमान, ट्रम्पेट बजाते थे। तीसरे संगी 35-40 बरस के थे। ये उनके दोस्त थे और हर वक्त साथ रहते थे। वो साथ रियाज और परफॉर्म करते थे।

 

 

कुछ चुनिंदा शेर
1. गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार (नए बसंत की खुशबू) चले
चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले
क़फ़स (जेल) उदास है यारो सबा (मंद हवा) से कुछ तो कहो
कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा (ख़ुदा के लिए) आज ज़िक्र-ए-यार चले

 

2. दिल की बात लबों पर ला कर अब तक हम दुख सहते हैं
हम ने सुना था इस बस्ती में दिल वाले भी रहते हैं
बीत गया सावन का महीना मौसम ने नज़रें बदलीं
लेकिन इन प्यासी आँखों से अब तक आँसू बहते हैं
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं
वो जो अभी इस राहगुज़र से चाक-गरेबाँ गुज़रा था
उस आवारा दीवाने को ‘जालिब’ ‘जालिब’ कहते हैं

 

3. रंजिश ही सही, दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ,
कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मोहब्बत (प्रेम का गर्व) का भरम रख
तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ…Next

 

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