राजनीति में ऐसे कई नेता रहे हैं, जिनके किस्से उनके जाने के बाद भी आज भी याद किए जाते हैं। ऐसे ही प्रभावशाली नेता थे मोरारजी देसाई। स्वतंत्रता सेनानी मोरारजी देसाई आजाद भारत के चौथे प्रधानमंत्री थे। देसाई 81 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने और 1977 से 1979 तक वह इस पद पर रहे। वह देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अलावा अन्य दल से थे। वह पहले कांग्रेस में थे लेकिन बाद में उन्होंने पार्टी छोड़कर दी। हालांकि, वह प्रधानमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। चौधरी चरण सिंह से मतभेदों के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था। मोरारजी जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी की सराकर में कैबिनेट में शामिल रहे थे।
आज के दिन मोरारजी दुनिया को अलविदा कह गए थे। आइए, जानते हैं उनसे जुड़े खास किस्से।
12 सालों तक रहे डिप्टी कलेक्टर
मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को गुजरात के भदेली गांव में हुआ था। उनके पिता एक स्कूल शिक्षक थे। बचपन से ही उन्होंने अपने पिता से कड़ी मेहनत और सच्चाई के मूल्यों को सीखा। उन्होंने शुरुआती पढ़ाई सेंट बुसर हाई स्कूल से की और यहां से मैट्रिक की परीक्षा पास की। 1918 में तत्कालीन बॉम्बे प्रांत के विल्सन सिविल सर्विस से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने बारह वर्षों तक डिप्टी कलेक्टर के रूप में काम किया।
कभी इंदिरा गांधी के साथ थे लेकिन फिर हो गए उनके खिलाफ
मोरारजी देसाई को पहले नेहरू की कैबिनेट में जगह मिली और बाद में इंदिरा गांधी की सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। देसाई को 1956 में भारत सरकार में वाणिज्य और उद्योग मंत्री बनाया गया था। उन्होंने 1963 तक इस पद पर इस्तीफा देने तक काम किया। उन्हें 1967 में इंदिरा गांधी ने उप प्रधान मंत्री बनाया। 1969 में उन्होंने इंदिरा और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ जाते हुए फिर से इस्तीफा दे दिया। 1975 में देश आपातकाल लगने के बाद उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के चलते गिरफ्तार भी किया गया था। गिरफ्तार होने के बाद उन्हें 1977 तक एकान्त कारावास में रखा गया। इसके बाद वह कई दलों को शामिल कर बनाए गए गठबंधन जनता पार्टी में सक्रिय हो गए।
इमरजेंसी का जश्न बनाने पर विदेश सचिव का कर दिया तबादला
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने भारतीय विदेश सेवा के नटवर सिंह का तबादला ब्रिटेन से ज़ांबिया कर दिया क्योंकि किसी ने उनसे कह दिया था कि जिस दिन आपातकाल लगाया गया था, नटवर सिंह ने अपने घर शैम्पेन पार्टी दी थी। 1978 में ज़ांबिया के प्रधानमंत्री सरकारी यात्रा पर भारत आए। अभी तक ये परंपरा रही है कि जब भी कोई विदेशी राष्ट्राध्यक्ष भारत के दौरे पर आता है तो उस देश में भारत का राजदूत या उच्चायुक्त भी उसके साथ भारत आता है।
जब नटवर सिंह ने भारत आने की योजना बनाई तो उन्हें मना कर दिया गया। इसके बावजूद वो भारत आए। उनके इस काम को बहुत बड़ी बेइज्जती माना गया। मोरारजी देसाई ने उन्हें आदेश दिया कि वो अगले दिन सुबह आठ बजे उनसे मिलने उनके निवास पर हाजिर हो।
जब नटवर वहां पहुंचे तो मोरारजी ने उनसे रूखा व्यवहार किया।…Next
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