भारत की आजादी में जब भी क्रांतिकारियों और देश को दिशा देने वाली हस्तियों की बात होती तो महात्मा गांधी का नाम जरूर लिया जाता है लेकिन इस बापू के नाम के साथ एक नाम जुड़ा है कस्तूरबा गांधी का, जो उनकी पत्नी ही नहीं समाजसेविका भी थीं। उनका त्याग और देशसेवा किसी भी तरह से बापू से कम नहीं है।
13 साल में हुई थी महात्मा गांधी से शादी, ‘कस्तूर’ से बन गई कस्तूर-बा
13 साल की उम्र में ही कस्तूरबा की शादी महात्मा गांधी से करा दी गई। पर उनके गंभीर और स्थि र स्वभाव के चलते उन्हें सभी ‘बा’ कहकर पुकारने लगे। साल 1922 में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हुए महात्मा गांधी जब जेल चले गए तब स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं को शामिल करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए कस्तूरबा ने आंदोलन चलाया और उसमें कामयाब भी रहीं।1915 में कस्तूरबा जब महात्मा गांधी के साथ भारत लौंटी तो साबमती आश्रम में लोगों की मदद करने लगीं। आश्रम में सभी उन्हें ‘बा’ कहकर बुलाने लगे। ‘बा’ का मतलब होता है ‘मां’। कस्तूरबा ने जब पहली बार साल 1888 में बेटे को जन्म दिया तब महात्मा गांधी देश में नहीं थे। वो इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे। कस्तूरबा ने अकेले ही अपने बेटे हीरालाल को पाला।
सबसे पहले भारतीयों के लिए कस्तूरबा ने उठाई थी आवाज, 3 महीने की जेल हुई
गरीब और पिछड़े वर्ग के लिए महात्मा गांधी कितने सक्रिय थे, ये तो हम सभी जानते हैं पर क्या आप ये जानते हैं कि दक्षििण अफ्रीका में अमानवीय हालात में भारतीयों को काम कराने के विरुद्ध आवाज उठाने वाली कस्तूरबा ही थीं। सर्वप्रथम कस्तूरबा ने ही इस बात को प्रकाश में रखा और उनके लिए लड़ते हुए कस्तूरबा को तीन महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा। भारत छोड़ो आंदोलन चल रहा था। उसी दौरान गिरफ्तार हुए महात्मा गांधी के सचिव महादेव देसाई की 15 अगस्त 1942 को दिल के दौरे से आगा खां महल में मौत हो गई। बा को इससे बड़ा सदमा पहुंचा। वो देसाई की समाधि पर रोज़ जा कर दिया जलाती थीं। कहती रहतीं, “जाना तो मुझे था महादेव कैसे चला गया”। कस्तूरबा को ब्रॉन्काइटिस की शिकायत थी। फिर उन्हें दो दिल के दौरे पड़े और इसके बाद निमोनिया हो गया। इन तीन बीमारियों के चलते बा की हालत बहुत खराब हो गई। डॉक्टर चाहते थे बा को पेंसिलिन का इंजेक्शन दिया जाए। गांधी इसके खिलाफ थे। गांधी इलाज के इस तरीके को हिंसा मानते थे और प्राकृतिक तरीकों पर ही भरोसा करते थे। बा ने बापू की मर्जी के बिना दवा नहीं ली।
चंदन की लकड़ी से हुआ बा का अंतिम संस्कार
शाम 7 बज कर 30 मिनट पर कस्तूरबा ने अपनी अंतिम सांस ली। गांधी ने सुशीला नैय्यर और मीरा बेन के साथ मिल कर उन्हें अंतिम स्नान कराया। उनको लाल किनारे वाली वही साड़ी पहनाई गई जो उन्होंने कुछ दिन पहले गांधी के जन्मदिन पर पहनी थी। इसके अलावा उनके दाहिने हाथ में शीशे की पांच चूड़ियाँ थीं जो उन्होंने अपने पूरे वैवाहिक जीवन के दौरान हमेशा पहने रखी थीं। सरकार नहीं चाहती थी कि कस्तूरबा का अंतिम संस्कार सार्वजनिक रूप से हो। गांधी भी अड़ गए। उन्होंने कहा कि या तो पूरे राष्ट्र को कस्तूरबा के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए, या फिर वो अकेले ही उनका अंतिम संस्कार करेंगे। ऐसे में बा की चिता के लिए किस तरह लकड़ियों का इंतज़ाम किया जाए। गांधी के कई शुभचिंतकों ने इसके लिए चंदन की लकड़ियां भिजवाने की पेशकश की, लेकिन गांधी ने उन्हें स्वीकार नहीं किया।
गांधी का कहना था कि एक ग़रीब व्यक्ति की पत्नी को वो मंहगी चंदन की लकड़ियों से नहीं जलाएंगे। जेल के अधिकारियों ने उनसे कहा कि उनके पास पहले से ही चंदन की लकड़ियाँ रखी हैं जो कि उन्होंने इसलिए मंगवाई थीं कि उन्हें डर था कि गांधी फ़रवरी 1943 में 21 दिनों तक किए गए उपवास में बच नहीं पाएंगे। आख़िर में गांधी उन लकड़ियों के इस्तेमाल के लिए राज़ी हो गए। उन्होंने कहा कि अगर वो लकड़ियाँ मेरी चिता के लिए मंगवाई गई थीं, तो उनका इस्तेमाल उनकी पत्नी की चिता के लिए हो सकता है। इस तरह चंदन की लकड़ियों की शैय्या बनाकर बा को आखिरी विदाई दी गई। गांधी कस्तूरबा की चिता पूरी तरह जल जाने तक वहां बैठे रहे। ..Next
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