‘मैं मरूं तो मेरी नाक पर सौ का नोट रखकर देखना, शायद उठ जाऊं’
ऐसे ही दमदार व्यंग्य के लिए हरिशंकर परसाई जाने जाते हैं। परसाई के बारे में कहा जाता है कि वो बिना किसी से डरे और किसी की नाराजगी की परवाह किए व्यंग्य बाण चलाया करते थे। लोग उनके सामने कम ही बात किया करते थे क्योंकि उनके बारे में एक आम धारणा बन चुकी थी कि परसाई चुप रहकर बातें सुनते हैं फिर व्यक्तिगत रूप से उस इंसान से लड़ाई या बहस न करके उसे एक विचार का रूप दे देते थे। इस वजह से लोग उनकी तारीफ करने से भी डरते थे। वो इतनी साफगोई से लिखते कि कभी-कभी तो खुद पर भी व्यंग्य कर देते थे। धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं था, जहां परसाई ने अपनी धारदार कलम न चलाई हो।
लेखन के लिए नहीं की अपनी नौकरी की परवाह
परसाई ऐसे बेबाक लेखक थे, जिन्हें निडर होकर लिखने के लिए जाना जाता था। इस वजह से उन्होंने कई नौकरियां बदल डाली। पैसों की तंगी के चलते भी परसाई ने कभी अपने शब्दों और बातों से समझौता नहीं किया। ‘हम इक उम्र से वाकिफ हैं’ किताब में उन्होंने अपने बारे में कई किस्से लिखे हैं।
आज उनके जन्मदिन पर पेश हैं उनके कुछ शानदार व्यंग्य।
– बेइज्जती में अगर किसी दूसरे इंसान को शामिल कर लिया जाए, तो बेइज्जती थोड़ी कम महसूस होती है।
– नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं। दो खास तरह के नशे हैं एक उच्चता का नशा और हीनता का नशा, जो बारी-बारी से चढ़ते हैं।
– अच्छी आत्मा फोल्डिंग कुर्सी की तरह होनी चाहिए। जरूरत पड़ी तब फैलाकर बैठ गए, नहीं तो मोड़कर कोने से टिका दिया।
– अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ़ बैठता है तब गोरक्षा आंदोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं।
– जो पानी छानकर पीते हैं, वो आदमी का खून बिना छना पी जाते हैं।
– अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में। कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मंत्र पढ़ने लगता है।
– अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं। बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है, सभ्यता बरस रही है।
– चीनी नेता लड़कों के हुल्लड़ को सांस्कृतिक क्रान्ति कहते हैं, तो पिटने वाला नागरिक सोचता है मैं सुसंस्कृत हो रहा हूं।
– इस कौम की आधी ताकत लड़कियों की शादी करने में जा रही है।
जो कौम भूखी मारे जाने पर सिनेमा में जाकर बैठ जाए, वह अपने दिन कैसे बदलेगी।
– इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं पर वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं…Next
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