“जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।”
विनोबा भावे को ऐसे ही सामाजिक विचारों के अलावा आजादी की लड़ाई में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने और मानवाधिकार की रक्षा, अहिंसा के लिए काम करने के लिए जाना जाता है। आज विनोवा भावे का जन्मदिन है। आइए, जानते हैं उनके व्यक्तित्व से जुड़े अहम पहलू-
लोगों के जीवन सुधार के लिए समर्पित कर दिया था जीवन
विनोबा भावे का असली नाम विनायक नरहरि भावे था। उनका जन्म महाराष्ट्र के कोलाबा में 11 सितंबर, 1895 को हुआ था। विनायक कर्नाटक की एक धार्मिक महिला और अपनी मां रुक्मिणी देवी से काफी प्रभावित थे। बहुत कम उम्र में भगवत गीता पढ़ने के बाद वह अत्यधिक प्रेरित हुए और वह उसका सार भी समझ गये।
‘The Intimate and the Ultimate’ किताब में लिखी बातों के अनुसार तब नवनिर्मित बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में गांधी के भाषण के बारे में समाचार पत्रों में छपी एक रिपोर्ट ने विनोबा को प्रभावित किया। 1916 में मुंबई के माध्यम से मध्यवर्ती परीक्षा में उपस्थित होने के लिये जा रहे थे पर महात्मा गांधी के भाषण सुनकर उन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। विनोबा भावे ने अपने स्कूल और कॉलेज प्रमाण पत्रों को आग में डाल दिया। विनोबा भावे, महात्मा गांधी से 7 जून 1916 को पहली बार मिले और उनकी बातों से प्रभावित होकर साबरमती में महात्मा गांधी के साथ (तपस्वी समुदाय) में शामिल हो गए। महात्मा गांधी की शिक्षाओं ने भावे को देश के गांव-देहात में रहने वाले लोगों के जीवन में सुधार के लिए समर्पित कर दिया था।
भूदान आंदोलन को ‘भूदान यज्ञ’ कहते थे विनोबा
भूदान आन्दोलन आचार्य विनोबा भावे द्वारा सन् 1951 में आरम्भ किया गया स्वैच्छिक भूमि सुधार आन्दोलन था। विनोबा भावे की कोशिश थी कि भूमि का पुनर्वितरण सिर्फ सरकारी कानूनों के जरिए नहीं हो, बल्कि एक आंदोलन के माध्यम से इसकी सफल कोशिश की जाए। इसके लिए विनोबा पद यात्राएं करते और गांव-गांव जाकर बड़े भूस्वामियों से अपनी जमीन का कम से कम छठा हिस्सा भूदान के रूप में भूमिहीन किसानों के बीच बांटने के लिए देने का अनुरोध करते थे। तब पांच करोड़ एकड़ जमीन दान में हासिल करने का लक्ष्य रखा गया था, जो भारत में 30 करोड़ एकड़ जोतने लायक जमीन का छठा हिस्सा था। उस वक्त प्रजा सोशलिस्ट पार्टी (पीएसपी) के नेता जयप्रकाश नारायण भी 1953 में भूदान आंदोलन में शामिल हो गए थे। आंदोलन के शुरुआती दिनों में विनोबा ने तेलंगाना क्षेत्र के करीब 200 गांवों की यात्रा की थी और उन्हें दान में 12,200 एकड़ भूमि मिली। इसके बाद आंदोलन उत्तर भारत में फैला। बिहार और उत्तर प्रदेश में इसका गहरा असर देखा गया था। मार्च 1956 तक दान के रूप में 40 लाख एकड़ से भी अधिक जमीन बतौर दान मिल चुकी थी। उन्होंने 1000 गांव लेकर भूमिहीनों में बांट जमीन बांटी थी।
भूदान ग्रामदान इन मूल्यों पर आधारित था
विनोबा मानते थे “हवा और पानी की तरह ही जमीन भी है। उस पर सबका हक है। आप मुझे अपना बेटा मानकर अपनी जमीन का छंठवा हिस्सा दे दीजिए, जिसपर भूमिहीन बस सकें और खेती कर के अपना पेट पाल सकें। ”
भूदान से ही ग्रामदान का विचार भी उपजा था। इसमें एक गांव के 75 फीसदी किसान अपनी ज़मीन मिलाकर एक कर देते, जो बाद में सब के बीच बराबर बांटी जाती। भूदान और ग्रामदान दोनों आंदोलन समय के साथ कमजोर होते गए, लेकिन उन्होंने अपने पीछे एक बड़ा लैंड बैंक छोड़ा। केंद्र सरकार के मुताबिक पूरे देश में 22. 90 लाख एकड़ ज़मीन का दान हुआ।
भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए ‘पार्टीलेस डेमोक्रेसी’
जय प्रकाश नारायण प्रशासन में राजनीतिक दलों की भूमिका समाप्त करना चाहते थे, क्योंकि राजनीतिक-तंत्र में भ्रष्टाचार की शुरुआत इसी से होती है। 1952 के आम चुनाव के बाद तो एक विकल्प की तलाश ने उन्हें विनोबा भावे तक के नजदीक ला दिया और वे दलविहीन जनत्रंत ‘पार्टीलेस डेमोक्रेसी’ के आधार पर राजनैतिक व्यवस्था में बुनियादी तबदीली की राह ढूँढ़ने लगे। जेपी ने कभी भी किसी दल के साथ खुद को बांधकर नहीं रखा था।
विनोबा की सामाजिक मुहिम को संजोकर रख रहे हैं सीवी चारी
सीवी चारी आंध्रप्रदेश भूदान बोर्ड हैदराबाद के अध्यक्ष हैं। वो भूदान और इससे जुड़े दूसरे कार्यक्रमों में शिरकत करते रहते हैं. दान की हुई जमीन पर कई बार विवाद की खबरें भी देखी गई थी, जिस पर प्रतिक्रिया करते हुए सीवी चारी ने कहा था “संस्था इस स्थिति में नहीं है कि हर दान में दी गई जमीन की जानकारी रख सके, लेकिन जो मामले नजर में आएंगे, उनका जरूर संज्ञान लिया जाएगा। इसके अलावा उन्होंने इस बात से भी इंकार नहीं किया था कि कुछ असमाजिक तत्व इकट्ठे होकर दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करके भूदान की जमीनों पर कब्जा जमाना चाहते हैं”…Next
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