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खुद की लिखी मशहूर कविता सुनाकर रोने लगते थे हरिवंश राय बच्‍चन, बाद में उसे छोड़ दिया पढ़ना

हिंदी साहित्‍य का बड़ा नाम हरिवंश राय बच्‍चन ने अपनी कविताओं से खूब प्रसिद्धि हासिल की। उन्‍होंने अग्निपथ लिखकर अपने बेटे अमिताभ बच्‍चन के थम रहे करियर को रप्‍फ्तार दे दी। हरिवंश राय अकसर एक कविता का पाठ करते हुए आंसुओं से भर जाते थे। असहनीय पीड़ा में डूबे हरिवंश राय ने बाद में इस कविता को पढ़ना बंद कर दिया। हरिवंश राय बच्‍चन की आज यानी 18 दिसंबर को पुण्‍यतिथि है। आइए जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ महत्‍वपूर्ण किस्‍सों के बारे में।

Rizwan Noor Khan
Rizwan Noor Khan18 Jan, 2020

 

 

 

 

कालजयी रचनाएं लिखीं
अपनी कालजयी कविताओं और पुस्‍तकों के जरिए साहित्‍य को नई दिशा दिखाने वाले हरिवंश राय बच्‍चन 1907 में उत्‍तर प्रदेश राज्‍य के बाबूपट्टी गांव में जन्‍में थे। उनकी लिखी कविता मधुशाला, नीड़ का निर्माण फिर और क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं को आज भी लोग नहीं भूल सके हैं और इन्‍हें अकसर लोग गुनगुनाते नजर आते हैं। इन रचनाओं ने हरिवंश राय बच्‍चन को दुनियाभर में मशहूर बना दिया।

 

 

 

प्‍यार से लोग कहते थे बच्‍चन
कायस्‍थ परिवार में जन्‍में हरिवंश राय बच्‍चन शुरुआत से ही कुशाग्र बुद्धि के प्रतिभावान थे। परिवार में सबसे छोटे होने और सौम्‍य व्‍यवहार के चलते घरवाले उन्‍हें प्‍यार से बच्‍चन कहकर पुकारा करते थे। किशोरावस्‍था से ही लेखन करने वाले हरिवंश राय की कविताएं बच्‍चन के नाम से छपती थीं। यहीं से उनके नाम के आगे बच्‍चन जीवन भर के लिए जुड़ गया। हरिवंश राय बच्‍चन ने उच्‍च शिक्षा हासिल करने के लिए इलाहाबाद पहुंचे गए।

 

 

 

 

अंग्रेजी साहित्‍य में पीएचडी पाई और विवाह किया
इलाहाबाद से हरिवंश राय बच्‍चन अमेरिका के कैंब्रिज विश्‍वविद्यालय पहुंचे और यहां से अंग्रेजी कविताओं पर पीएचडी हासिल की। उन्‍होंने मशहूर अंग्रेजी साहित्‍यकार डब्‍ल्‍यू बी यीट्स की कविताओं पर शोध प्रत्र भी पढ़ा किया। देश लौटकर वह इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में ही प्रोफेसर हो गए। इसके बाद उनकी मुलाकाता श्‍यामा बच्‍चन से हुई। दोनों के बीच प्रेम हो गया और फिर 1926 में दोनों ने सबकी रजामंदी से विवाह कर लिया।

 

 

 

पत्‍नी की मृत्‍यु से सदमे में चले गए
विवाह करने से पहले ही हरिवंश राय बच्‍चन कई मशहूर कविताएं और किताबें लिखकर प्रसिद्ध हो चुके थे। हरिवंश राय मुशायरों में प्रमुख कवि रहते थे और अकसर ही उनके घर पर भी दोस्‍तों और चाहने वालों के लिए कविता पाठ हुआ करता था। विवाह के कुछ सालों बाद ही अचानक श्‍यामा बच्‍चन इस दुनिया से चल बसीं। पत्‍नी के दुख से पीडि़त हरिवंश राय बच्‍चन की लेखने से ‘क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं’ कविता निकली जो कालजीय रचना साबित हुई।

 

 

 

 

 

 

 

कविता पाठ करते ही रोने लगते थे
हरिवंश राय से अकसर ही मुशायरों में लोग क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं कविता सुनाने की गुजारिश करते थे। काफी मना करने के बावजूद लोगों की जिद पर इस कविता को वह पढ़ते और उस गम में डूब जाते। कई मौकों पर इस कविता को पढ़ते हुए मंच पर ही उनके आंसू बह निकले थे। हरिवंश राय बच्‍चन ने अपनी आत्‍मकथा क्‍या भूलूं क्‍या याद करूं में लिखा है कि जब उनके घर पर कुछ दोस्‍त जुटे और उनकी जिद पर उन्‍होंने इस कविता को सुनाया तो वह रोने लगे। उस वक्‍त उनको ढांढस बंधाने वाली तेजी सूरी बाद में हरिवंश राय बच्‍चन की दूसरी पत्‍नी बनीं।…NEXT

 

 

 

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