‘क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी? क्या करूं? मैं दुखी जब-जब हुआ…’ कमरे में उसके कुछ करीबी ही बैठे थे, जिसके सामने वो अपनी लिखी हुई कविता सुना रहे थे. सभी की नजरें उनके कविता पाठ करते चेहरे पर टिकी हुई थी कि अचानक उनकी नजरें नीचे झुक गई, आंखों से आसूं बहते हुए उनके हाथों पर टपक रहे थे. उनका गला भर आया था. उनकी ये दशा देखकर किसी को समझते हुए देर नहीं लगी कि उन्हें सालों पहले दुनिया को अलविदा कह चुकी, पत्नी की याद आ गई थी. कमरे में बैठी युवती ने इस व्यक्ति को गले से लगा लिया था. इसके बाद दोनों घंटों तक गले लगकर रोते रहे.
कुछ इसी तरह शुरू हुई थी समाजसेविका तेजी बच्चन और कवि हरिवंशराय बच्चन की प्रेम कहानी. दोनों किसी ओर की यादों की वजह से करीब आ गए थे. हरिवंशराय बच्चन अपनी अपनी आत्मकथा ‘क्या भूलूं क्या याद करूं’ में उस मुलाकात की रात का जिक्र करते हुए लिखते हैं.
‘क्या भूलूं क्या याद करूं‘ में लिखते हैं अपनी प्रेम कहानी
‘उस दिन 31 दिसंबर की रात थी. सभी ने ये इच्छा जताई कि नया साल मेरे काव्य पाठ से शुरू हो. आधी रात बीत चुकी थी, मैंने केवल एक-दो कविताएं सुनाने का वादा किया था. सभी ने ‘क्या करुं संवेदना लेकर तुम्हारी’ वाला गीत सुनना चाहा, जिसे मैं सुबह सुना चुका था. ये कविता मैंने बड़े रूखे मूड में लिखी थी. मैंने सुनाना शुरू किया. एक पलंग पर मैं बैठा था, मेरे सामने प्रकाश बैठे थे और मिस तेजी सूरी उनके पीछे खड़ी थीं कि गीत खत्म हो और वह अपने कमरे में चली जाएं.
गीत सुनाते-सुनाते न जाने मेरे स्वर में कहां से वेदना भर आई. जैसे ही मैंने ‘उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा..’ पंक्ति पढ़ी कि देखता हूं कि मिस सूरी की आंखें डबडबाती हैं और टप-टप उनके आंसू की बूंदें प्रकाश के कंधे पर गिर रही हैं. ये देखकर मेरा कंठ भर आता है. मेरा गला रुंध जाता है. मेरे भी आंसू नहीं रुक रहे हैं. ऐसा लगा मानो, मिस सूरी की आंखों से गंगा-जमुना बह चली है और मेरी आंखों से जैसे सरस्वती’
हरिवंश राय बच्चन आगे लिखते हैं, ‘कुछ पता नहीं, कब प्रकाश का परिवार कमरे से निकल गया और हम दोनों एक-दूसरे से लिपटकर रोते रहे. आंसुओं से कितने कूल-किनारे टूटकर गिर गए, कितने बांध ढह-बह गए, हम दोनों के कितने शाप-ताप धुल गए, कितना हम बरस-बरस कर हल्के हुए हैं, कितना भींग-भींग कर भारी. कोई प्रेमी ही इस विरोध को समझेगा. कितना हमने एक-दूसरे को पा लिया, कितना हम दोनों एक-दूसरे में खो गए. हम क्या थे और आंसुओं के चश्मे में नहा कर क्या हो गए.
हम पहले से बिल्कुल बदल गए हैं, पर पहले से एक-दूसरे को ज्यादा पहचान रहे हैं. 24 घंटे पहले हम इस कमरे से जीवन साथी, पति-पत्नी बनकर निकल रहे हैं. ये नव वर्ष का नव प्रभात है, जिसका स्वागत करने को हम बाहर आए हैं. यह अचानक एक-दूसरे के प्रति आकर्षित, एक-दूसरे पर न्यौछावर या एक-दूसरे के प्रति समर्पित होना, आज भी विश्लेषित नहीं हो सका है.’ इस तरह तेजी और हरिवंशराय बच्चन की प्रेम कहानी शुरू हुई थी. जब कभी हरिवंशराय बच्चन को अपनी पहली पत्नी के साथ बिताया हुआ समय याद आता था, तो वो अक्सर रो दिया करते थे, लेकिन तेजी ने कभी भी धैर्य नहीं खोया और इसे मानवीय संवेदना समझते हुए हमेशा हरिवंशराय की परछाई बनकर उनके साथ खड़ी रही.
समाजसेविका होने के साथ गायिका और कलाकार भी थीं तेजी बच्चन
12 अगस्त 1914 को एक सिख परिवार में जन्मी तेजी बच्चन एक समाजसेविका होने के साथ गायिका और कलाकार भी थी, जिन्होंने शेक्सपीयर के उपन्यास पर आधारित कई नाटकों में भाग लिया था. साल 2003 में 97 वर्ष की उम्र में तेजी बच्चन हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गई. कहा जाता है कि उनके जाने के बाद अक्सर हरिवंशराय बच्चन अपनी मशहूर कविता ‘क्या भुलूं क्या याद करूं मैं’ गुनगुनाया करते थे. वर्ष 2007 में 97 साल की उम्र में ही हरिवंशराय बच्चन भी अपनी कविताओं के बीच हमें छोड़कर हमेशा के लिए चले गए…Next
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