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मल्लिका साराभाई ने मां की मौत पर आसुंओं से नहीं, नृत्य करके दी थी अंतिम विदाई

उनकी मां का मृत शरीर जमीन पर सफेद कफन में लिपटा हुआ था. सभी लोग शोक सभा में, शामिल होने आए थे लेकिन उन सभी की नजरें शव पर नहीं बेटी पर थी क्योंकि वो अपनी मां को अंतिम विदाई आंसुओं से नहीं बल्कि नृत्य की मुद्राओं से दे रही थी. 2016 में मशहूर क्लासिकल डांसर मृणालिनी साराभाई की अंतिम सभा में, उनकी बेटी मल्लिका साराभाई द्वारा नृत्य श्रद्धांजलि वाली फोटो सोशल नेटवर्किग साइट पर खूब शेयर की गई थी. इस फोटो पर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिली, जिसमें कुछ लोग ‘नृत्य श्रद्धांजलि’ से सहमत दिखे तो कुछ लोगों को ये तरीका बहुत अजीब लगा. ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि मौत को एक दुखद विषय माना जाता है. जिस पर रोकर या उदास होकर ही अपनी प्रतिक्रिया दी जाती है. लेकिन आप सोचिए कि हमें अपने किसी परिजन या दोस्त की मौत पर ही रोना क्यों आता है या फिर ‘मौत’ पर रोना किस सिद्धांत या वजह से आता है.

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal9 May, 2019

 

dance tribute

 

‘मौत एक उत्सव है’- एक अनोखा नजरिया

मल्लिका साराभाई की नृत्य श्रद्धांजलि (डांस ट्रिब्यूट) कोई नई शैली नहीं है. बल्कि ये अवधारणा तो मौत को एक उत्सव मानने वाली परपंरा का एक रूप है. जिसे मानने वाले लोग मृत्यु के बाद एक नई जिदंगी पर विश्वास करते हैं. उनका मानना है कि इस धरती पर रहते हुए इंसान कितने ही दुखों को सहन करता है. इसलिए दुख तो जीवन में है जबकि मृत्यु में तो उत्सव है क्योंकि मौत के बाद तो सभी दुखों और चिंताओं का अंत हो जाता है. दुनिया भर में इस सिद्धांत (थ्योरी) को मानने वाले लोग हैं. भारत में जैन धर्म और कबीरपंथियों को मानने वाले लोग अपने प्रियजनों की मृत्यु पर रोते नहींं बल्कि उत्सव मनाते हैं.

 

 

 

कौन है मल्लिका साराभाई

मृणालिनी साराभाई का जन्म 11 मई 1918 को केरल में हुआ था. पिता डॉ. स्वामीनाथन मद्रास हाईकोर्ट में बैरिस्टर थे. मां अम्मू स्वामीनाथन स्वतंत्रता सेनानी थीं, जो बाद में देश की पहली संसद की सदस्य भी थीं. बहन लक्ष्मी सहगल सुभाष चंद्र बोस के साथ थीं. मृणालिनी का बचपन स्विटजरलैंड में बीता. वहां उन्होंने ‘डैलक्रोज’ सीखा. ये संगीत की समझ को पैदा करने का जरिया था. वहां से लौटने के बाद मृणालिनी साराभाई ने शांति निकेतन का रुख किया. रवींद्रनाथ टैगोर से वो इतनी प्रभावित थीं कि सिर्फ उन्हें ही अपना असली गुरू मानती थीं. ये वो दौर था जब कलाकार सिर्फ एक ‘फॉर्म’ नहीं सीखते थे. मृणालिनी साराभाई ने भी नृत्य की अलग अलग शैलियों की बारीकियां सीखीं. उन्होंने अमूबी सिंह से मणिपुरी सीखा. कुंजु कुरूप से कथकली सीखा.

 

 

मीनाक्षी सुदंरम पिल्लै और मुथुकुमार पिल्लै से भरतनाट्यम सीखा. उनके हर एक गुरू का अपनी अपनी कला में जबरदस्त योगदान था. इसी दौरान उन्होंने विश्वविख्यात सितार वादक पंडित रविशंकर के भाई पंडित उदय शंकर के साथ भी काम किया. पंडित उदय शंकर का भारतीय कला को पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाने का श्रेय जाता है. उन्होंने आधुनिक नृत्य को लोकप्रियता और कामयाबी के अलग मुकाम पर पहुंचाया. इस बीच मृणालिनी साराभाई कुछ दिनों के लिए अमेरिका भी गईं और वहां जाकर ड्रामाटिक आर्ट्स की बारीकियां सीखीं. इसके बाद मृणालिनी साराभाई ने देश दुनिया में भारतीय नृत्य परंपरा का विकास किया…Next

 

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