दशकों से गुलामी झेल रहे देश ने अंग्रेजी शासन को अपनी नियति मान लिया था लेकिन 1857 क्रांति ने देश को आजादी की एक उम्मीद थी। 1857 की क्रांति की मशाल जलाने में एक नाम आज भी याद किया जाता है तात्या टोपे का। तात्या टोपे का असली नाम रामचंद्र रघुनाथ टोपे था। आज तात्या टोपे का बलिदान दिवस है। आइए, जानते हैं उनसे जुड़ी खास बातें।
रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर संभाला था मोर्चा
अंग्रेजों के खिलाफ हुई 1857 की क्रांति में तात्या टोपे का भी बड़ा योगदान रहा। जब यह लड़ाई उत्तर प्रदेश के कानुपर तक पहुंची तो वहां नाना साहेब को नेता घोषित किया गया और यहीं पर तात्या टोपे ने आजादी की लड़ाई में अपनी जान लगा दी। इसी के साथ ही उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई बार लोहा लिया था। नाना साहेब ने अपना सैनिक सलाहकार भी नियुक्त किया था। कानपुर में अंग्रेजों को पराजित करने के बाद तात्या ने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर मध्य भारत का मोर्चा संभाला था। क्रांति के दिनों में उन्होंने झांसी की रानी लक्ष्मीबाई एवं नाना साहब का भरपूर साथ दिया। हालांकि उन्हें कई बार हार का सामना भी करना पड़ा। वे अपने गुरिल्ला तरीके से आक्रमण करने के लिए जाने जाते थे।
तात्या को पकड़ने में नाकामयाब रही थीं अंग्रेजी सेना
अंग्रेजी सेना उन्हें पकड़ने में नाकाम रही थी। तात्या ने तकरीबन एक साल तक अंग्रेजों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी। हालांकि 8 अप्रैल 1959 को वो अंग्रेजों की पकड़ में आ गए और 15 अप्रैल, 1959 को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। उसके बाद 18 अप्रैल को शाम 5 बजे हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फांसी पर लटका दिया गया।
फांसी पर उठता है विवाद
उनकी फांसी पर भी कई सवाल उठाए गए हैं। ज्यादातर इतिहासकारोंका मानना था कि अंग्रेजों ने भारतीयों के बीच एक डर का माहौल बनाने के लिए उन्हें फांसी देने की अफवाह फैलाई। तात्या टोपे से जुड़े नये तथ्यों का खुलासा करने वाली किताब ‘टोपेज ऑपरेशन रेड लोटस’ के लेखक पराग टोपे ने बताया कि शिवपुरी में 18 अप्रैल 1859 को तात्या को फांसी नहीं दी गयी थी, बल्कि गुना जिले में छीपा बड़ौद के पास अंग्रेजों से लोहा लेते हुए एक जनवरी 1859 को तात्या टोपे शहीद हो गए थे।…Next
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