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दोस्त को ईनाम की रकम दिलाने के लिए चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजों के सामने कर दिया था सरेंडर, जानें उनकी दोस्ती का दिलचस्प किस्सा

जब देश के महान क्रांतिकारियों की बात होती है, तो चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह का नाम सबसे पहले याद आता है। इनकी क्रांति के किस्से सुनकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। चंद्रशेखर आज़ाद की बात करें, तो स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान आज़ाद का खौफ ब्रिटिश पुलिस में इस कदर था कि उनकी मौत के बाद भी किसी में इतना साहस न था कि वे आज़ाद के मृत शरीर के पास भी जा सके। वे दूर से ही आज़ाद के मृत शरीर पर गोली बरसा रहे थे। आज उनके जन्मदिन पर जानते हैं उनसे जुड़ा किस्सा-

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal23 Jul, 2019

 

 

आज़ाद के दोस्त मास्टर रुद्रनारायण ने बनाया था उनका पोस्टर
काकोरी कांड के बाद अंग्रेजी पुलिस उनके पीछे पड़ गई थी। आज़ाद सांडर्स की हत्या, काकोरी कांड और असेंबली बम धमाके के बाद फरार होकर झांसी आ गए थे। उन्होंने अपनी जिंदगी के 10 साल फरार रहते हुए बिताए, जिसमें ज्यादातर समय झांसी और आसपास के जिलों में ही बीता। इसी बीच उनकी मुलाकात मास्टर रुद्रनारायण सक्सेना से हुई। वे स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। दोनों के बीच काफी अच्छी दोस्ती हो गई। चंद्रशेखर आज़ाद कई सालों तक उनके घर पर रहे। अंग्रेजों से बचने के लिए वे अक्सर एक कमरे के नीचे बनी गुप्त जगह (इसे तालघर कहा जाता था, अब ये बंद कर दिया गया है) में छिप जाते थे। रुद्रनारायण क्रांतिकारी होने के साथ-साथ अच्छे पेंटर भी थे। एक हाथ में बंदूक और दूसरे से मूंछ पकड़े चंद्रशेखर आज़ाद का फेमस वाला पोट्रेट उन्होंने ही बनाया था। इसे बनाने के लिए रुद्रनारायण ने आज़ाद को काफी समय तक उसी पोज में खड़ा रखा था।

 

 

 

दोस्त को ईनाम दिलाने के लिए सरेंडर कर दिया
बताया जाता है कि अंग्रेज आज़ाद को पहचानते नहीं थे। जब उन्हें इस तस्वीर की जानकारी हुई तो वे मुंहमांगी रकम देने को तैयार हो गए थे। इसके अलावा एक और फोटो भी है, जिसमें वे रुद्रनारायण की पत्नी और बच्चों के साथ बैठे हैं। ये वक्त ऐसा था जब रुद्रनारायण के घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। आज़ाद से ये देखा न गया। वो सरेंडर के लिए तैयार हो गए ताकि जो इनाम के पैसे मिलें उससे उनके दोस्त का घर अच्छे से चल सके। चंद्रशेखर आज़ाद का अंदाज और साहस आज भी मास्टर रुद्रनारायण के घर में बसा हुआ है। वो पलंग आज भी यहां है, जिस पर आज़ाद बैठा करते थे।…Next

 

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