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International Women’s Day 2019 : महिला होने के नाते पता होने चाहिए अपने ये 10 कानूनी अधिकार

महिला होने के नाते अगर कोई आपसे सवाल करे कि आप मजबूत कैसे बनेंगी तो आपका जवाब क्या होगा? जाहिर तौर मजबूत का अर्थ केवल शारीरिक रूप से मजबूत होना नहीं बल्कि मानसिक, आर्थिक पहलुओं के अलावा अपने अज्ञान में भी इजाफा करना है, जिससे कि कोई आपका फायदा न उठा सके। आज हम आपको ऐसे कानूनी अधिकार बता रहे हैं, जिसके बारे में जानना आपके लिए बेहद जरूरी है।

Pratima Jaiswal
Pratima Jaiswal8 Mar, 2019

 

 

 

निशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
अमूमन भारत में जब भी महिला अकेले पुलिस स्टेशन में अपना बयान दर्ज कराने जाती है तो उसके बयान को तोड़- मरोड़ कर लिखे जाने का खतरा रहता है। कई ऐसे मामले भी देखने को मिले हैं, जिनमें उसे अपमान झेलना पड़ा और शिकायत को दर्ज करने से मना कर दिया गया। एक महिला होने के नाते आपको यह पता होना चाहिए कि आपको भी कानूनी मदद लेने का अधिकार है और आप इसकी मांग कर सकती हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आपको मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया करवाए।

 

गोपनीयता का अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बलात्कार की शिकार महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवा सकती है और जब मामले की सुनवाई चल रही हो तो वहां किसी और व्यक्ति को उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है। वैकल्पिक रूप से वह एक ऐसे सुविधाजनक स्थान पर केवल एक पुलिस अधिकारी और महिला कांस्टेबल के साथ बयान रिकॉर्ड कर सकती है, जो भीड़ भरा नहीं हो, यह भी जरूरी है कि बलात्कार पीड़िता का नाम और पहचान सार्वजनिक न होने पाए।

 

देर से भी शिकायत दर्ज करने का अधिकार
बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना के काफी समय बीत जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है। बलात्कार किसी भी महिला के लिए एक भयावह घटना है, इसलिए उसका सदमे में जाना और तुरंत इसकी रिपोर्ट न लिखवाना एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। वह अपनी सुरक्षा और प्रतिष्ठा के लिए डर सकती है। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।

 

सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार
अधिक से अधिक महिलाओं के सार्वजनिक क्षेत्र में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु यह सबसे अधिक प्रासंगिक कानूनों में से एक है। प्रत्येक ऑफिस में एक यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना नियोक्ता का कर्तव्य है।
यहां तक कि एक इंटर्न, पार्ट-टाइम कर्मचारी, ऑफिस में आने वाली कोई महिला या ऑफिस में साक्षात्कार के लिए गई महिला का भी उत्पीड़न किया गया है तो वह भी इस समिति के समक्ष शिकायत दर्ज करवा सकती है। ऑफिस में उत्पीड़न की शिकार महिला घटना के तीन महीने के भीतर इस समिति को लिखित शिकायत दे सकती है। यदि आपकी कंपनी में दस या अधिक कर्मचारी हैं और उनमें से केवल एक महिला है तो भी आपकी कंपनी के लिए इस समिति का गठन करना आवश्यक है।

 

 

 

 

जीरो एफआईआर का अधिकार
एक महिला को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेष अधिकार है। यदि किसी कारणवश वह पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है, तो वह एक पंजीकृत डाक के माध्यम से लिखित शिकायत भेज सकती है, जो पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित की गई हो। इसके अलावा, एक बलात्कार पीड़िता जीरो एफआईआर के तहत किसी भी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता है कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता।

 

इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार
आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। किसी भी माध्यम से इंटरनेट या व्हाट्सएप पर साझा की गई आपत्तिजनक या खराब तस्वीरें या वीडियोज किसी भी महिला के लिए बुरे सपने से कम नहीं है। आपको उस वेबसाइट से सीधे संपर्क करने की आवश्यकता है, जिसने आपकी तस्वीर या वीडियो को प्रकाशित किया है। ये वेबसाइट कानून के अधीन हैं और इनका अनुपालन करने के लिए बाध्य भी। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।

 

समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती वसेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।

 

घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
आप पर कोई भी हाथ नहीं उठा सकता है, आपका पति, पिता या भाई भी नहीं। शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार धारा 498-एक के तहत आता है। आईपीसी की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है।

 

 

 

कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है।

 

प्रॉपर्टी में महिलाओं का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है। इस संशोधन के तहत बेटियों को वही अधिकार दिए गए, जो पहले बेटों तक सीमित थे। हालांकि बेटियों को इस संशोधन का लाभ तभी मिलेगा, जब उनके पिता का निधन 9 सितंबर 2005 के बाद हुआ हो। इसके अलावा बेटी सहभागीदार तभी बन सकती है, जब पिता और बेटी दोनों 9 सितंबर 2005 को जीवित हो।…Next 

 

 

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