भारतीय सेना का ऐसा गौरवशाली इतिहास रहा है, जिससे जुड़े हुए कई किस्से ऐतिहासिक है। अपनी जान की परवाह किए बिना सरहद पर लड़ने का जज्बा सभी में नहीं होता, ऐसा सिर्फ अपनी जान की बाजी लगा देने वाले सैनिक ही कर सकते हैं। इजराइल में सौ साल पहले हुए युद्ध में शहीद हुए भारतीय जवानों को श्रद्धाजंलि दी गई।
100 साल पहले का इतिहास ‘बैटल ऑफ हाइफा
इजराइल के हाइफा शहर में सौ साल पहले लड़े गए युद्ध में विजयी होने को लेकर हाइफा शहर में स्थित वार मेमोरियल पर गुरुवार को ‘बैटल ऑफ हाइफा दिवस’ मनाया गया। भारतीय थल सेना की ओर से आयोजित समारोह में हाइफा के शहीदों के पराक्रम को याद किया गया। यहां पर भारत दल का प्रतिनिधित्व कर रहे सेना के मेजर जनरल वीडी डोगरा व जोधपुर के पूर्व नरेश गजसिंह ने पुष्पचक्र अर्पित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
हाइफा में बना है शहीदों का स्मारक
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान (1918) भारतीय सैनिकों ने अप्रतिम साहस का परिचय देते हुए इजरायल के हाइफा शहर को आजाद कराया था। भारतीय सैनिकों की टुकड़ी ने तुर्क साम्राज्य और जर्मनी के सैनिकों से मुकाबला किया था। माना जाता है कि इजरायल की आजादी का रास्ता हाइफा की लड़ाई से ही खुला था जब भारतीय सैनिकों ने सिर्फ भाले, तलवारों और घोड़ों के सहारे ही जर्मनी-तुर्की की मशीनगन से लैस सेना को धूल चटा दी थी। इस युद्ध में भारत के 44 सैनिक शहीद हुए थे। भारतीय सेना की ओर से तत्कालीन जोधपुर, मैसूर व हैदराबाद रियासत के सैनिकों ने भाग लिया था। इस दौरान जोधपुर रिसाला के मेजर दलपतसिंह देवली अदम्य साहस का परिचय देते हुए शहीद हो गए थे। हाइफा में भारतीय शहीदों का स्मारक बना है।
इजराइल की स्कूली किताबों में भारतीय सेना के किस्से
हाइफा नगरपालिका ने भारतीय सैनिकों के बलिदान को अमर करने के लिए वर्ष 2012 में उनकी बहादुरी के किस्सों को स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल करने का फैसला किया था। करीब 402 सालों तक तुर्कों की गुलामी के बाद शहर को आजाद कराने में भारतीय सेना की भूमिका को याद करते हुए नगरपालिका ने हर साल एक समारोह के आयोजन का भी फैसला किया था। इजरायल में आज भी इस दिन को ‘हाइफा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है…Next
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