मुगल शहंशाह जलाल-उद-दीन मुहम्मद अकबर के पुत्र, मुहम्मद सलीम जिन्हें इतिहास ने शहंशाह जहांगीर के नाम से नवाजा है वे मुगल साम्राज्य के चौथे सम्राट थे। इनका जन्म 30 अगस्त, 1569 को हुआ था व इन्होंने 22 वर्षों तक अपनी प्रजा पर राज करने के बाद 8 नवंबर, 1627 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
जहांगीर को काफी कम आयु में अकबर के बाद मुगल शासन की गद्दी पर बैठने वाला शहंशाह घोषित कर दिया गया था जिसे मुगल भाषा में ‘वालिहाद’ कहा जाता है, लेकिन असल में उन्हें सत्ता में आने के लिए काफी समय लगा था जिसका कारण काफी कम लोग जानते हैं। कहा जाता है कि कम आयु में ही सलीम को नशे में रहने की बुरी लत लग गई थी। वो शराब का अत्यधिक सेवन करते थे और साथ ही उसे अफ़ीम की भी बुरी लत थी। कुछ लोगों का कहना है कि उनकी इस हालत का जिम्मेदार शहंशाह अकबर के हरम की ऐसी शख्सियत थी, जो उन्हें गलत दिशा में लेकर जाने की योजना बनाए बैठी थी लेकिन वक्त आने पर अकबर ने यह अन्याय होने से रोक दिया।
कला, चित्रकारी में रुचि रखने वाले शहंशाह जहांगीर की नजर एक बार एक स्त्री पर आकर रुक गई जो उनकी आंखों से हट ही नहीं रही थी। वो एक पारसी एवं विवाहित स्त्री थी जिससे इस मुगल शहंशाह को एकतरफा प्यार हो गया. जहांगीर उसे पाने के लिए कुछ भी कर जाने का इच्छुक था। कुछ लोगों का कहना है कि उस पारसी स्त्री से विवाह करने के लिए जहांगीर ने उसके पति को मरवा दिया जिसके बाद उन्होंने उस विधवा से सहानुभूति जताते हुए विवाह किया। यह स्त्री और कोई नहीं बल्कि जहांगीर के हरम की सबसे बड़े ओहदे वाली बेगम थी, जिसे शहंशाह ने ‘नूरजहां’ के नाम से नवाजा था। इतिहास कहता है कि नूरजहां राजनीतिक पैंतरों में काफी कुशल समझी जाती थी, जिसके फलस्वरूप उन्होंने हरम में अपने मन मुताबिक अनगिनत मनमानियां की थी। हरम में भविष्य में भी अपना ओहदा बनाए रखने के लिए नूरजहां ने अपने एक पुत्र का निकाह खुद की एक पुत्री से करा दिया और अपने एक और पुत्र ‘शाहजहां’ का निकाह अपनी भतीजी ‘मुमताज महल’ से कर दिया। इससे उसकी ताकत और भी बढ़ गई थी लेकिन अंत कुछ ठीक ना रहा।
इतिहास के अनुसार सन् 1627 में उनके ही एक रक्षक ने शाहजहां के साथ मिलकर मुगल शहंशाह के खिलाफ बगावत कर दी। इसके बाद जहांगीर व नूरजहां दोनों को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया गया। यह सभी तथ्य कितने सच हैं यह कोई नहीं जानता लेकिन जहांगीर की मौत के पीछे काफी कहानियां दफन है पर यह जरूर सत्य है कि उनकी मृत्यु के बाद उनके तीसरे पुत्र ‘कुर्राम’ उर्फ़ शाहजहां ने मुगल तख्त की बाघडोर संभाली थी।…Next
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