मेवाड़ के महाराणा प्रताप को भारत समेत दुनियाभर में वीर योद्धा और शौर्य के प्रतीक के तौर आज भी याद किया जाता है। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप 208 किलो के औजार लेकर दुश्मनों का सामना करते थे। उनकी तलवार के एक वार से घोड़ा भी दो हिस्सों में कट जाता था। महाराणा प्रताप की आज यानी 19 जनवरी को पुण्यतिथि है। हालांकि, महाराणा प्रताप के जयंती और पुण्यतिथि की तारीख को लेकर अलग अलग मत हैं।
दो शक्तिशाली सम्राट आमने सामने आए
भारत में एक समय पर दो शक्तिशाली सम्राट आमने सामने आ चुके थे। एक सम्राट को भारत पर राज करना था तो दूसरे को अपने राज्य को बचाना था। हम बात कर रहे हैं मुगल सम्राट अकबर और राजपूत वीर योद्ध महाराणा प्रताप के बारे में। मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच हमेशा से बादशाहत और स्वाभिमान की लड़ाई रही। दोनों के बीच हुए हल्दीघाटी के युद्ध को महाभारत के बाद दूसरा सबसे विनाशकारी युद्ध कहा जाता है।
महाराणा ने नहीं माना मुगलों का फरमान
प्रचलित कथाओं और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मुगल बादशाह अकबर ने मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने का फरमान भेजा गया। इस फरमान को महाराणा प्रताप ने अपने और राजपूतों के स्वाभिमान पर चोट करने के समान माना और खारिज कर दिया। इसके बाद 1576 में युद्ध के लिए दोनों ओर की सेनाएं उदयपुर के समीप हल्दीघाटी के मैदान पर आ डटीं।
महाभारत के बाद सबसे विनाशकारी हल्दीघाटी युद्ध
कुछ इतिहासकार कहते हैं कि युद्ध को टालने और अधीनता स्वीकार कराने के लिए अकबर ने महाराणा प्रताप के पास 6 बार अपने दूत भेजे और मुगलों के अधीन मेवाड़ का सिंहासन चलाने की पेशकश की लेकिन महाराणा प्रताप ने इसे मानने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि महाराणा प्रताप बेहद बलशाली और युद्धकौशल में निपुण थे कि उनके मैदान में आते ही विपक्षी सैनिकों की हवा टाइट हो जाती थी। युद्ध में वह अपने चहेते घोड़े चेतक पर सवार होकर पहुंचे थे।
208 किलो के औजार लेकर लड़ते थे महाराणा प्रताप
प्रचलित कथाओं के अनुसार महाराणा प्रताप इतने बलशाली और ताकतवर थे कि वह युद्ध के दौरान अपने सीने पर लोहे, पीतल और तांबे से बना 72 किलो का कवच पहनते थे। इसके अलावा वह 81 किलो का भाला चलाते थे। उनकी कमर में दो तलवारें भी बंधी रहती थीं। इस तरह युद्ध के दौरान वह कुल 208 किलो वजन के औजार लेकर लड़ते थे। कहा जाता है कि वह अपने एक वार से ही घोड़े के दो टुकड़े कर देते थे।
अकबर को नहीं दिया मेवाड़ पर बेटे ने दे दिया
राजस्थान के मेवाड़ राजघराने में 9 मई 1540 को महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। वह मेवाड़ के राजा उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। उदय सिंह अपने नवें नंबर के बेटे जगमाल सिंह को प्रेम करते थे और उन्होंने मरने से जगमाल को ही अपना उत्तराधिकारी बना दिया था। हालांकि, बड़े पुत्र के ही सिंहासन पर बैठने के नियमों का पालन करते हुए प्रताप सिंह के चाहने वाले मंत्री और दरबारियों ने उन्हें राजा बना दिया। मुगल बादशाह अकबर से कभी हार नहीं मानने वाले महाराणा प्रताप अपने बेटे की दगाबाजी से हार गए और मेवाड़ आखिर में अकबर के अधीन हो गया।…NEXT
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