महात्मा गांधी आम दिनों की तरह उस दिन भी शाम पांच बजकर पंद्रह मिनट पर जब गांधी लगभग भागते हुए बिरला हाउस के प्रार्थना स्थल की तरफ़ बढ़ रहे थे, तो उनके स्टाफ़ के एक सदस्य गुरबचन सिंह ने अपनी घड़ी की तरफ़ देखते हुए कहा था, ‘बापू आज आपको थोड़ी देर हो गई।’ गांधी ने चलते-चलते ही हंसते हुए जवाब दिया था, ‘जो लोग देर करते हैं उन्हें सजा मिलती है।’ दो मिनट बाद ही नाथूराम गोडसे ने अपनी बेरेटा पिस्टल की तीन गोलियां महात्मा गांधी के सीने में उतार दी। यह दिन था 30 जनवरी 1948, जब महात्मा गांधी के मुंह से ‘हे राम’ निकला और वो दुनिया को अलविदा कह गए।
‘राम’ नाम पर भरोसा और डर पर विजय
बड़ी से बड़ी परेशानियों में महात्मा गांधी हमेशा मुस्कुराते रहते थे, लेकिन हमेशा से उन्हें राम-नाम पर भरोसा था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि महात्मा गांधी को अंधेरे से डर लगता था। यह तब की बात है, जब महात्मा गांधी करोड़ों लोगों की प्रेरणा नहीं बल्कि किसी आम बच्चे की तरह स्कूल जाते थे।
अंधेरी रातों में मोहन को अकेली और अंधेरी जगहों से बहुत डर लगता था। घर में मोहन को लगता था कि अगर वह अंधेरी जगहों पर बाहर निकलेंगे तो भूत-प्रेत और आत्माएं उन्हें परेशान करेंगी। एक रात मोहनदास को अंधेरी रात में कहीं काम से जाना पड़ा था। जैसे ही, मोहन ने अपने कमरे से अपना पैर बाहर निकाला उनका दिल जोरों से धड़कने लगा और उन्हें ऐसा लगा जैसे कोई उनके पीछे खड़ा है।
अचानक उन्हें अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ जिसकी वजह से उनका डर और ज्यादा बढ़ गया। वह हिम्मत करके पीछे मुड़े तो उन्होंने देखा कि वो हाथ उनकी नौकरानी, जिसे वो दाई कहते थे, उनका था। दाई ने उनका डर भांप लिया था और हंसते हुए उनसे पूछा कि वो क्यों और किससे इतना घबराए हुए हैं। मोहन ने डरते हुए जवाब दिया ‘दाई, देखिए बाहर कितना अंधेरा था, मुझे डर है कि कहीं कोई भूत ना आ जाए’। इस पर दाई ने प्यार से मोहन के सिर पर हाथ रखा और मोहन से कहने लगी कि ‘मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम्हें जब भी डर लगे या किसी तरह की परेशानी महसूस हो तो सिर्फ राम का नाम लेना’। राम के आशीर्वाद से कोई तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकेगा और न ही तुम्हें आने वाली परेशानियों से डर लगेगा।राम हर मुश्किल में तुम्हारा हाथ थाम कर रखेंगे’।
इस घटना के बाद डर को जीता इस नाम से
दाई के इन आश्वासन भरे शब्दों ने मोहनदास करमचंद गांधी के दिल में अजीब सा साहस भर दिया। उन्होंने साहस के साथ अपने कमरे से दूसरे कमरे में गए और बेहिचक अंधेरे में आगे बढ़ते गए। इस दिन के बाद बालक मोहन कभी न तो अंधेरे से घबराए और ना ही उन्हें किसी समस्या से डर लगा। वह राम का नाम लेकर आगे बढ़ते गए और जीवन में आने वाली सारी समस्याओं का सामना किया।
आखिरी वक्त में भी बापू के मुंह से ‘हे राम’ निकला तो उसकी मौत के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया। महात्मा की ऑटोबॉयोग्राफी ‘सत्य के प्रयोग’
(The Story of My Experiments with Truth) में उनसे जुड़े कई किस्से लिखे हैं…Next
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