शहरी भाग-दौड़ से कुछ समय के लिए शांति और राहत की तलाश में हर नगरवासी गांव की ओर रुख करता है और जब गांव मावलिननांग जैसा हो, तो मजा ही कुछ और है। यह मजा और भी दुगुना हो जाता है, जब आप कुछ नया देखने का शौक रखते हैं। अक्सर घूमने-फिरने के शौकीन लोग पहाड़, नदियां और बीच घूम लेते हैं। ऐसे में उनका मन कुछ नया देखने का करने लगता है। मेघालय का मावलिननांग गांव ऐसी ही अनोखी जगह है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि एशिया में सबसे साफ-सुथरे गांव का खिताब 2003 भारत के मावलिननांग गांव को मिला है। इस गांव का एक और नाम भी है- भगवान का अपना बगीचा (God’s own garden)। इस गांव की तारीफ भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी कर चुके हैं।
उत्तर पूर्व के इस छोटे से गांव में अगर आप प्लास्टिक से बनी चीजें ले जाते हैं, तो संभल जाइए क्योंकि यहां प्लास्टिक बैन है। यहां के लोग साफ-सफाई के लिए प्रशासन पर निभर्र नहीं हैं बल्कि खुद ही पूरे गांव की सफाई करते हैं। यहां सफाई के प्रति जागरुकता न केवल बड़ों में बल्कि बच्चों में भी है। यहां के लोग कचरे को बांस से बने कूड़ेदान में डालते हैं, जिसे हर गली और चौराहों पर बांधकर रखा जाता है। जमा किए गए कूड़े को खाद के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मावलिननांग गांव जाने के बाद आपको ऐसा लगेगा, जैसे यहां के लोग साफ-सफाई के अलावा और कुछ नहीं जानते।
मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग से कुछ ही दूरी पर स्थित मावलिननांग गांव 2003 से पहले भारत सहित पूरे विश्व के लिए एक अपरिचित गांव था। यहां पर्यटक भी नहीं आते थे लेकिन जैसे ही इस गांव की चर्चा पूरी दुनिया में होने लगी बड़ी संख्या में यहां पर्यटक आने लगे। पूरे साल पर्यटकों का यहां जमावड़ा लगा रहता है, इससे इस गांव की आमदनी भी होती है। साल 2014 की गणना के अनुसार, यहां 95 परिवार रहते हैं। यह गांव न केवल साफ-सफाई के मामलों में अव्वल है बल्कि यहां कि साक्षरता दर भी सौ फीसदी है।
इस गांव की एक और खास बात है, भारतीय समाज में जहां पिता की संपत्ति पर पुरुष का अधिकार माना जाता है, वहीं इस गांव में पिता के पास संपत्ति रहती ही नहीं बल्कि मां से पुत्री के पास संपत्ति जाती है। यहां के बच्चों को मां का सरनेम दिया जाता है…Next
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