‘मिरे सलीके से मेरी निभी मोहब्बत में, तमाम उम्र मैं नाकामियों से काम लिया’
कई शायर ऐसे होते हैं, जिनकी एक खास किस्म की शायरी उनकी पहचान होती है लेकिन मीर ताकी मीर की शेरों-शायरी को देखकर यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि कभी वो मुहब्बत में बेवफाई करके गए आशिक को खुश और आबाद रहने की दुआ करते हैं, तो कभी वो नाकाम मुहब्बत में रजिंश से भरी शायरी लिख देते हैं। कुछ ऐसे ही थी मीर ताकी मीर। आज उनकी पुण्यतिथि है, ऐसे में जानते उनसे जुड़ा किस्सा और उनकी मशहूर शायरी-
प्रतीकात्मक तस्वीर, Pic credit : clipdealer
मीर के पिताजी सूफी फकीर थे। मीर का बचपन गरीबी में बीता। वहीं, अपनी मां के बारे में मीर ने कुछ खास नहीं लिखा और अपने सौतेले भाई मुहम्मद हसन का जिक्र इस ढंग से किया है कि साफ पता चलता है उनका घर खुश तो कतई नहीं रहा होगा। एक जगह तो ये जिक्र भी मिलता है कि जब मीर के के पिता की मौत हई, तो वो अपने पीछे 300 का कर्जा और लगभग 200 किताबें छोड़ गए थे। उन किताबों पर भी मीर के भाई हसन ने कब्जा कर लिया था। एक बार उनके बाप के किसी मुरीद ने 500 रुपये की एक हुंडी भेजी, जिसे भी उनके सौतेले भाई ने हड़प लिया। इस तरह मीर हमेशा फकीर रहे और अपने लिए नए रास्ते तलाशते रहे।
उनकी मशहूर शायरी-
1.जम गया ख़ूँ कफ़-ए-क़ातिल पे तिरा ‘मीर’ ज़ि-बस
उन ने रो रो दिया कल हाथ को धोते धोते
2. आग थे इब्तिदा-ए-इश्क़ में हम
अब जो हैं ख़ाक इंतिहा है ये
3. मीर’ के दीन-ओ-मज़हब को अब पूछते क्या हो उन ने तो
क़श्क़ा खींचा दैर में बैठा कब का तर्क इस्लाम किया
4. यारो मुझे मु’आफ़ रखो मैं नशे में हूं
अब दो तो जाम खाली ही दो मैं नशे में हूं
5. चारागरी बीमारी-ए-दिल की रस्म-ए-शहर-ए-हुस्न नहीं
वर्ना दिलबर-ए-नादां भी इस दर्द का चारा जाने है…Next
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